chandra grahan 2023: साल के पहले चंद्र ग्रहण से इन राशियों पर पड़ेगा बड़ा असर, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका समेत इन देशों में दिखेगा ग्रहण
Lunar Eclipse 2023: ज्योतिष में किसी भी तरह के ग्रहण को शुभ नहीं बताया गया है. साल2023 का पहला चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) जल्द लगने जा रहा है. तो चलिए जानते हैं इस चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) से लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा.
Chandra Grahan 2023, Lunar Eclipse Effects: ज्योतिष शास्त्र (Astrology) में चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) को बहुत विशेष माना गया है. इसके जानकार बताते हैं कि ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है. बता दें कि चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) में चांद ग्रसित हो जाता है, जिसकी वजह से इसका असर हर किसी की मानसिकता पर पड़ता है.
साल 2023 का पहला चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) शुक्रवार को यानी कि 5 मई को लगेगा. जानकार बताते हैं कि ग्रहण 5 मई की रात में 8:46 से शुरू होकर आधी रात को 1:2 पर खत्म होगा. बता दें कि यह ग्रहण एक उपछाया चंद्रग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse) होगा. जो करीब 4 घंटे 15 मिनट तर रहेगा. इससे पहसे 20 अप्रैल को साल 2023 का पहला सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) लगा था. जानकार बताते हैं कि यह चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) इंडिया में दिखाई नहीं देगा. यह एशिया (Asia), न्यूजीलैंड (new zealand), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और दक्षिण-पूर्वी यूरोप (south eastern europe) के कुछ हिस्सों में दिखाई पड़ेगा.
बताया जा रहा है कि चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) का सूतक काल (Sutak Kaal) 9 घंटे पूर्व ही शुरू हो जाता है. लेकिन इस बार का चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) इंडिया में दिखाई नहीं देगा, इसलिए यहां इसका सूतक काल नहीं माना जाएगा. इसकी वजह से भारत में पूजा-पाठ या धार्मिक कामों किसी तरह की रोक नहीं होगी और चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) के दौरान सभी शुभ काम किए जा सकेंगे.
यहां-यहां दिखाई देगा चंद्रग्रहण
जानकार बताते हैं कि यह उपछाया चंद्रग्रहण यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, महासागर, हिंद महासागर और नॉर्थ पोल में दिखाई देगा.
क्या होता है उपछाया चंद्रग्रहण क्या होता है? (UP Chaya Chandra Grahan)
ग्रहण लगने के दौरान चंद्रमा, पृथ्वी की उपछाया में इंटर हो जाता है. जिसको चन्द्र मालिन्य भी कहते हैं. इंग्लिश में इसे (Penumbra) बोलते हैं. इसके बाद चंद्रमा धरती की असली सेडो में करता है. जब ऐसा होता है तो तब सही मायने में ग्रहण होता है. लेकिन कई दफा चांद उपछाया में इंटर कर उपछाया शंकु से ही निकल जाता है. इसके बाद पृथ्वी की वास्तविक छाया में इंटर नहीं करता है. इसलिए उपछाया चंद्र ग्रहण में चांद का बिंब बस धुंधला पड़ता है और पूरा काला नहीं होता है. इसी वजह से इसे उपछाया चंद्रग्रहण बोला जाता है.
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