Jaipur news: भारतीय किसान संघ के प्रदेशव्यापी आह्वान के तहत मंगलवार को राजस्थान के किसान राजधानी जयपुर में जुटे. किसानों ने विद्याधर नगर स्टेडियम में अपना डेरा डाला. यहां सभा के बाद सचिवालय घेराव के लिए कूच किया. जिसे पुलिस ने कुछ दूरी पर ही डबल बैरिकेडिंग के द्वारा रोक दिया. इस दौरान किसानों ने वहीं बैठ कर पड़ाव डाल दिया. प्रशासन की समझाइश पर किसान वापस पांडाल में लौटे. जबकि सरकार से वार्ता करने के लिए प्रतिनिधिमंडल सचिवालय गया. जब तक वार्ता चल रही थी, पांडाल में किसान भजन, कीर्तन, लोककला, गीत-संगीत के कार्यक्रम करते रहे. दूसरी ओर भोजन की पंगत भी सज गई. 


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सभा के दौरान अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य मणिलाल लबाणा ने कहा कि किसान अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि देश और विश्व का पेट भरने के लिए मेहनत करता है. किसान रामटेरिअल तैयार करता है, तब कारखाने चलते हैं. सरकार का सरोकार किसानों से नहीं है. सरकार की नीयत में खोट है. इसलिए दूसरी पंचवर्षीय योजना में लिखा गया कि किसानों को लाभकारी मूल्य दे दिया गया तो शासन नहीं करने देंगे. आज किसान दगा और ठगी के शिकार हो रहे हैं. किसान को उपज का मूल्य नहीं मिल रहा और उपभोक्ता को भी महंगा प्राप्त हो रहा है. 


सामूहिक शक्ति से ही होगा समाधान-मणिलाल 
सरकार मुगालते में न रहें कि अब उसका किसानों पर कोई जादू चलने वाला है. उन्होंने कहा कि सामूहिक शक्ति से ही किसानों की समस्याओं का समाधान हो सकता है. किसान मंजू दीक्षित ने कहा कि किसानों को कमजोर मत समझो. किसानों को बर्बाद करने की साजिशें हो रही हैं. इसलिए देश का पेट भरने वाला किसान खुद भूखा सोने पर मजबूर है. प्रदेश महामंत्री प्रवीण सिंह चौहान ने कहा कि भारतीय किसान संघ लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन करता है. चितौड़ प्रांत के महामंत्री अंबालाल शर्मा ने कहा कि राजस्थान में 5 प्रकार से बिजली का उत्पादन होता है.


अभी भी किसान आत्महत्या को मजबूर- सांवरमल 
इसके बावजूद सबसे महंगी बिजली राजस्थान को मिलती है. उत्पादित बिजली दूसरे राज्यों को बेच दी जाती है. राममूर्ति मीणा ने कहा कि किसान के बेटे को पता है कि भयंकर और भीषण गर्मी में काम कैसे किया जाता है. उन्होंने कहा कि किसानों की मांगे पूरी नहीं हुई तो किसी भी नेता को गांव में घुसने नहीं दिया जाएगा. सांवरमल सोलेट ने कहा कि आजादी के अमृत काल के बाद भी किसान आत्महत्या को मजबूर है. यह अब तक शासन करते आए राजनीतिक दलों के लिए शर्म की बात है.


कालूराम बागड़ा ने कहा कि खेत का पानी के लिए किसान लंबी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार है. उन्होंने कहा कि सरकार ने संपूर्ण कर्जमाफी का वादा किया था. लेकिन, साढे 4 साल बाद भी किसानों को केवल बरगलाया जा रहा है. लोगों को महंगाई राहत के नाम से बरगला रहे, लेकिन किसी को कुछ लाभ नहीं मिल रहा. सरकार डोडा चूरा नष्ट कराती है, लेकिन उसका मुआवजा किसानों को नहीं दिया जाता. आंदोलन के सहसंयोजक जगदीश कलमंडा ने कहा कि सरकार किसानों को उपज के मूल्य का अधिकार, बिजली का अधिकार, सिंचाई का अधिकार दे. 


इस दौरान किसानों ने हाथों में "सरकार से एक ही मांग, फसलों का दे सही दाम दे सरकार. " कर्जमाफी का वादा पूरा करें, आधी अधूरी नहीं पूरी बिजली दे सरकार, हर खेत को पानी दो, हर किसान को बिजली दो, सूखी धरती करे पुकार, सिंचाई का पानी दे सरकार सरीखे नारे लिखी तख्तियां ले रखी थीं. सींवर ने बताया कि आंदोलन के तहत ग्राम समितियों की बैठकों में और गांव ढाणी से आई समस्याओं को मिलाकर मांग पत्र तैयार किया गया था. जिसके बाद 34 सूत्रीय मांगपत्र सरकार को सौंपा है.


जिसमें सस्ते और टैक्समुक्त कृषि आदान, उपज के आधार पर लाभकारी मूल्य देने, हर खेत को सिंचाई का पानी, 8 घंटे सस्ती व निर्बाध बिजली देने समेत विभिन्न मांगें की गई. उन्होंने बताया यह तो अभी पदाधिकारी आए हैं जब गांव गांव से किसान आएंगे तो सरकार की चूलें हिला देंगे. इससे पहले किसान शिवदासपुरा, ठीकरिया, बस्सी, टाटियावास टोल नाके पर रुके और वहां से सामूहिक रुप से रवाना हुए.