Jaipur : असत्य का साथ देने वाले मानवीय द्वन्द को दिखाता द्रोणाचार्य
Jaipur News: नार्थ जोन कल्चरल सेंटर के सहयोग से स्माइल एंड होप संस्था के जरिए आयोजित रंगनाट्यम इंटिमेट थिएटर फेस्टिवल के दूसरे दिन रवींद्र मंच ने किया.
Ja.pur News: नार्थ जोन कल्चरल सेंटर के सहयोग से स्माइल एंड होप संस्था के जरिए आयोजित रंगनाट्यम इंटिमेट थिएटर फेस्टिवल के दूसरे दिन रवींद्र मंच पर चंडीगढ़ के संवाद नाट्य ग्रुप ने नाटक एक और द्रोणाचार्य का भावपूर्ण मंचन किया गया. नाटक में मुख्य अतिथि आईएएस उर्मिला राजोरिया रहीं. जिन्होंने इंटिमेट थिएटर फेस्टिवल के कॉन्सेप्ट को काफी सराहा.
वहीं शंकर शेष के जरिए लिखित और मुकेश शर्मा के जरिए निर्देशित इस नाटक में असत्य का साथ देने वाले मानवीय द्वन्द को खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया गया .
नाटक का कथानक, अरविंद एक ईमानदार और आदर्शवादी शिक्षक है जो कि कॉलेज के अध्यक्ष के बेटे को अनुराधा छात्रा के साथ दुष्कर्म करते हुए पकड़ लेते है. साथ ही अध्यक्ष का बेटा नकल करते हुए भी पकड़ा जाता है. बात को दबाने के लिए अध्यक्ष अरविंद को लालच देता है और धमकाता है. विवश होकर अरविंद सत्ता के आगे झुक जाता है और रिपोर्ट वापस कर लेता है. इसके पश्चात अरविंद अपने मन के द्वंद्व में फँसा रहता है,जिसके कारण वो चिड़चिड़ा हो जाता है.
सत्ता के आगे आदर्श केवल मूक दृष्टि बना रह जाता है. विमलेन्दु भी एक शिक्षक ही है किंतु उसने अपने आदर्शों के आगे समझौता नहीं किया, किंतु उसे जान गवांनी पड़ गयी. यह स्थिति जानकर अरविंद अपने मन - ही - मन खुद में ग्लानि भाव से जूझता है. विमलेन्दु का संघर्ष उससे कहता है कि आओ तुम भी समझौता करो. यदि समाज तुम्हें भौंकने वाला कुत्ता बनाना चाहता है, तो तुम बनो, क्योंकि तुम व्यवस्था के विपरीत नहीं चल सकते. यदि चलोगे तो तुम्हें भी मेरी ही भांति मार दिया जाएगा. नाटक में शिक्षक को ही अपने सवालों में फँसा दिखाया है जैसे युद्धभूमि में द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा था कि कौन मारा गया – अश्वत्थामा नाम का हाथी या पुत्र…..
विमलेन्दु का अंतिम वाक्य से नाटक समाप्त होता है कि तू द्रोणाचार्य है. व्यवस्था और कोड़ो से पिटा हुआ द्रोणाचार्य, इतिहास की धार में लकड़ी के ठूठ की भांति बहता हुआ, वर्तमान के कगार से लगा हुआ, सड़ा गला द्रोणाचार्य. व्यवस्था के लाइट हाउस से अपनी दिशा माँगने वाला टूटे जहाज-सा द्रोणाचार्य. इस नाटक का उद्देश्य केवल पौराणिक कथा को दुहराना ही नहीं बल्कि सूक्क्षतम मानवीय सत्य को खोजना है. जिससे मनुष्य पौराणिक घटना को आज के परिपेक्ष्य में देखने की चेष्टा करेंगे और उसे समझने की कोशिश करेंगे . (Reporter: Anoop Sharma)
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