Jaipur: चुनावी साल में राइट टू हेल्थ को बिल को विधानसभा से पारित कराकर कानूनी जामा पहनाने का एक बड़ा कदम राजस्थान सरकार ने बढ़ा दिया है. बिल फिलहाल राजभवन में है लेकिन कांग्रेस पार्टी (congress party) की नजरें साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव पर हैं. हालांकि चुनाव केवल राजस्थान में ही नहीं हैं, बल्कि उससे पहले कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में भी हो रहे हैं. लिहाजा राजस्थान कांग्रेस ने सरकार की योजनाओं को आधार बनाकर केंद्र सरकार और बीजेपी पर भी घेरा बढ़ाना शुरू कर दिया है. यही कारण है कि आरटीएच की जो चर्चा अब तक राजस्थान में सीमित थी, वह अब कांग्रेस के दिल्ली दरबार से होने लगी है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

शुक्रवार को राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा दिल्ली पहुंचे और एआईसीसी में पार्टी नेता पवन खेड़ा के साथ मीडिया से रूबरू हुए. यूं तो इस दौरान मुद्दा सिर्फ राइट टू हेल्थ (right to health) था, लेकिन घेरा बीजेपी पर था. इस दौरान परसादी लाल मीणा ने राइट टू हेल्थ की खूबियां बताइ. जनता को होने वाले फायदे गिनाए. तो साथ ही कांग्रेस ने इस बात की पैरवी करती दिखी, कि ऐसे कानून देश भर में लागू होने चाहिएं, जिससे लोगों को फायदा मिले.


दरअसल राइट टू हेल्थ तो सिर्फ एक उदाहरण है, जिसरके जरिए कांग्रेस पार्टी (congress party) केंद्र सरकार और बीजेपी पर घेरा बढ़ाने की कवायद कर रही है. खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) कई बार इस बात की मांग कर चुके हैं कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन और ओपीएस को देशभर में लागू किया जाना चाहिए.


इधर मंत्री परसादी लाल मीणा ने एआईसीसी के मंच से राइट टू हेल्थ के साथ अशोक गहलोत सरकार की दूसरी योजनाओं की तारीफ में भी खूब कसीदे गढ़े. मेडिकल सेवाओं के मामले में राजस्थान को मिसाल बताते हुए परसादी ने कहा कि राजस्थान में स्वास्थ्य सुविधाएं देश के अन्य किसी राज्य से बेहतर हैं. इतना ही नहीं उन्होंने गवर्नेन्स के गहलोत मॉडल को देशभर में लागू करने की मांग भी केंद्र सरकार के सामने रख दी.


दरअसल राजस्थान में राइट टू हेल्थ (right to health) बिल विधानसभा में पारित होने के बाद सड़कों पर उतरे डॉक्टर्स ने 18 दिन तक विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान डॉक्टर्स सीधे ही सिर्फ और सिर्फ सरकार के मुखिया से बात करने की मांग पर ही अड़े रहे. लेकिन आन्दोलन के दौरान कई जगह डॉक्टर्स के विरोध में जनता के नारे और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया भी दिखी. इस आन्दोलन ने सरकार को बिना मांगे ही योजना का के प्रचार को वो माइलेज दिया, जिसकी उम्मीद शायद सरकार को भी नहीं थी. इस आन्दोलन ने राइट टू हेल्थ के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ाई तो कांग्रेस भी अब इस आरटीएच को हथियार बनाकर आगामी चुनाव में बीजेपी के खिलाफ़ इस्तेमाल करने की कवायद करती हुई दिख रही है.


ऐसे में बड़ा सवाल यह हैं? कि ओपीएस, मुफ्त जांच, चिरंजीवी योजना में बीमा का बढ़ा हुआ दायरा और उसके बाद अब राइट टू हेल्थ... क्या बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने के हथियारों को धार देने की मंशा से ही विकसित किये गए या फिर यह देश में गहलोत के सुशासन मॉडल की नई तस्वीर बन कर उभर रहे हैं?


ये भी पढ़ें...


What is Good Friday: क्यों मनाते हैं गुड फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे का ईसा मसीह से क्या है संबंध


World Health Day 2023: वर्ल्ड हेल्थ-डे पर जानें क्या है 'हेल्थ फॉर ऑल', शुगर लेवल कम करने के लिए WHO ने सुझाए ये तरीके