kesarbai Kerkar birth anniversary: हिंदुस्तानी संगीत में जयपुर घराना का योगदान हमेशा सहरानीय रहा है.  रागों को अत्यधिक जटिल और कठिन पद्धति से संगीतकारों को आसान बनाते हुए उनमें सरस्वती का वास करवाने में  जयपुर घराना(jaipur Gharana)  की पहल हमेशा काबिले तारीफ रही है.  उसी घराने के चंद लोकप्रिय संगीतकारों में से एक, केसरबाई केरकर (kesarbai Kerkar),  रही है जिन्होंने  इस शैली में  निपुणता हासिल कर  हमेशा अपनी प्रसतुति को  श्रोताओं के दिल पर छाप  छोड़ी है. उनकी इसी बेजोड़ गायकी के लिए नासा ने भी उनकी आवाज को अपने संगीत कोष में संजो कर रखा है.  


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गोवा से मुंबई तक का सफर
केसरबाई केरकर ( kesarbai Kerkar birth anniversary) का जन्म 13 जुलाई 1892 में  गोवा के केरी में हुआ था.केसरबाई केरकर का परिवार देवदासी परंपरा के अधीन आता था. इसलिए वह स्थानीय मंदिरों में गाए जाने वाले भजन और कीर्तन सुनकर बड़ी हुईं थी. बचपन से ही संगीत की दुनिया में खुद को रमाने वाली केसरबाई ने संगीत में शिक्षा लेने की सोची. उनकी इसी लग्न ने गोवा जैसे छोटे राज्य से उन्हें निकालकर मुंबई तब (बॉम्बे) की फिल्मी गलियों में ले आया. 


 सितार वादक बरकत उल्लाह खान से ली संगीत की शिक्षा
16 साल की उम्र में केसरबाई भी अपनी मां और चाचा के साथ मुंबई आ गईं. जहां  एक स्थानीय व्यवसायी सेठ विट्ठलदास द्वारकादास ने उन्हें पटियाला राज्य के सितार वादक और दरबारी संगीतकार बरकत उल्लाह खान से मिलवाया और उनकी संगीत की शिक्षा को पूरा करने में सहायता की. सपनों के शहर बॉम्बे की अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने उसे दो साल तक रुक-रुक कर पढ़ाया। हालांकि, जब खान मैसूर राज्य में दरबारी संगीतकार बनीं, तो उन्होंने थोड़े समय के लिए भास्करबुवा बखले और रामकृष्णबुवा वाजे से भी प्रशिक्षण लिया.


जयपुर-अतरौली घराने  से चमकी किस्मत
16  साल की उम्र से शुरू हुआ  केसरबाई का संगीत का सफर 1921 में जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक उस्ताद अल्लादिया खान की शिष्या के रूप में आकर खत्म हुआ. जहां उन्होंने  अगले ग्यारह सालों  तक उनके सानिध्य में रहकर  कठोर प्रशिक्षण लिया, हालांकि उन्होंने 1930 में पेशेवर रूप से गाना शुरू किया, लेकिन 1946 में उनकी मृत्यु तक, उनके खराब स्वास्थ्य के बावजूद, उन्होंने खान से सीखना जारी रखा.


 20वीं सदी की ख्याल गायिकाओं  में से एक थी केसरबाई केरकर
संगीत में पारंगत होते होते उन्होंने 1900  के दशक के पूर्व में  देवदासी परंपरा से अलग हो गईं और अपने समय की एक अत्यंत प्रतिष्ठित और प्रख्यात कलाकार बन गईं. उनकी पहचान 
 जयपुर-अतरौली घराने की एक बेहतरीन भारतीय शास्त्रीय गायिका  के रूप में बनी थीं. अपनी मेहनत और लगन के दम पर  वह 20वीं सदी के उत्तरार्ध की सबसे प्रसिद्ध ख्याल गायिकाओं में से एक बन गईं थी. उनकी बेजोड़ गायकी के कारण ही 1953 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1969 में भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.


नासा के 'द साउंड्स ऑफ अर्थ' में है केसर बाई केरकर की आवाज
भारतीय शास्त्री संगीत को एक अलग पहचान दिलाने के कारण ही साल 1977 में नासा की तरफ से भेजे  वोयाजर I अंतरिक्ष यान में 12 इंच की सोने की परत चढ़ी तांबे की डिस्क है जिसमें बीथोवेन से लेकर बाख से लेकर मोजार्ट तक के गाने हैं, जिसे विश्व सांस्कृतिक विविधता की झलक मिलती है इन गानों को अमेरिकी खगोलशास्त्री कार्ल सागन के जरीए काफी गहनता के साथ चुना गया है। जिसे 'द साउंड्स ऑफ अर्थ'  एल्बम का नाम दिया गया है. जिसमें भारतीय आवाज के तौर पर हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में  हिंदुस्तानी गायिका 'सुरश्री' केसरबाई केरकर की आवाज भी है. और इसी साल उनकी मृत्यु भी हुई थी. 


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