Jaipur News: राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के साथ साथ अन्य दलों के लिए भी चुनौतियां हैं. भाजपा को भीतरघात, कांग्रेस और BAP को बागियों से खतरा है. वहीं BAP और RLP एक एक सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी हुई है. राजनीतिक दलों के तमाम दावों के बीच 13 नवम्बर को इन सभी प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला मतदाता करेंगे.


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प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव हो रहा है. उप चुनाव में सात में से दो सीटें चौरासी और सलूम्बर ऐसी है, जहां बीजेपी और बाप में सीधा मुकाबला दिख रहा है. वहीं खींवसर सीट पर बीजेपी का मुकाबला आरएलपी से है. अन्य सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला नजर आ रहा है, लेकिन दो सीटों पर निर्दलीय भी दोनों ही पार्टियों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस बाप को बागियों से बीजेपी को भितरघात से खतरे का डर सता रहा है.


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प्रदेश में सात सीटों पर हो रहे चुनाव में सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा तथा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की प्रतिष्ठा जुड़ी है. वहीं कांग्रेस में पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा, सचिन पायलट, अशोक गहलोत के लिए परीक्षा है. चुनाव टिकट घोषित होने के साथ ही भाजपा में बगावती तेवर दिखाई दिए, लेकिन सत्ता और संगठन ने मिल कर डैमेज कंट्रोल कर लिया. सीएम-अध्यक्ष ने रामगढ़ से जय आहूजा और सलूम्बर से नरेंद्र मीणा, झुंझुनू से बबलू चौधरी, देवली - उनियारा से विजय बैंसला को मनाते हुए उन्हें बागी नहीं होने दिया. वहीं दूसरी ओर लेकिन कांग्रेस और भारत आदिवसी पार्टी अपनों को मामने में कामयाब नहीं हो सकी. देवली - उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा मैदान में डटे हैं. चौरासी सीट पर बीएपी के बागी बादमी लाल समीकरण बिगाड़ रहे हैं. कांग्रेस में तो नाराजगी साफ़ दिख रही है, लेकिन बीजेपी में इस बार छिपी हुई नाराजगी और लोकल समीकरणों से छिपे हुए भितरघात डर है. हालांकि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ और महामंत्री श्रवण सिंह बागड़ी ने किसी तरह की भीतरघात से इंकार कर रहे हैं.


बागड़ी ने कहा कि पार्टी एकजुट है कहीं कोई न नाराजगी है और न भीतरघात. वहीं बागियों की नाराजगी से गुजर रही कांग्रेस को नहीं लगता कि उन्हें बागियों से नुकसान होगा. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने कहा कि पार्टी में कहीं कोई नाराजगी नहीं है , जो बागी होने का दिखावा कर रहे हैं उनसे चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ये वो लोग है जो जनता के हित के लिए नहीं बल्कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए चुनाव लड़ते हैं.


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दौसा विधानसभा सीट
प्रदेश की हॉट सीट मानी जा रही दौसा में कांग्रेस और बीजेपी को बागियों का डर नहीं, लेकिन बीजेपी में परिवारवाद और सामान्य सीट पर एसटी को टिकट देने से सर्व समाज में नाराजगी बात की बात सामने आ रही है. 2 लाख 63 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके किराड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा चुनावी मैदान में है, वहीँ कांग्रेस के लिहाज से कभी पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की लोकसभा सीट रही है. पायलट इस सीट पर मजबूती से चुनावी प्रचार में जुट गए है, ऐसे में यह सीट हाई प्रोफ़ाइल बन गई है.


चौरासी विधानसभा सीट- बीएपी के बागी बादमी लाल ने मुकाबले को रोचक बना दिया|
राजकुमार रोत के सांसद बनने से खाली हुई इस आदिवासी बाहुल्य चौरासी सीट पर बीएपी के बागी बादमी लाल ने मुकाबले को रोचक बना दिया है. 2 लाख 51 हजार से ज्यादा मतदाताओं वाली इस सीट पर 2023 के चुनाव में रोत 61 से अधिक वोटों के बड़े अंतराल से जीते थे. यहां बीएपी उम्मीदवार अनिल कटारा, बीजेपी से कारीलाल ननोमा, कांग्रेस उम्मीदवार महेश रोत और बीएपी के बागी बादामी लाल के बीच मुकाबला है.


देवली उनियारा विधानसभा सीट
देवली - उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. नरेश मीणा को मनाने के कांग्रेस के प्रयास कामयाब नहीं हुए, जबकि बीजेपी में बगावत नहीं होने से मजबूती से चुनावी मैदान में है, लेकिन पिछली बार के उम्मीदवार विजय बैंसला टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं. विजय बैंसला ने खुले रूप से बगावत भले न की हो, लेकिन उनके समर्थकों में नाराजगी बरकरार है. वहीं टिकट की उम्मीद में रहे पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी की ख़ामोशी भी इस सीट पर बीजेपी आंतरिक नुकसान पहुँचा रही है. वहीं कांग्रेस उम्मीदवार कस्तूरचंद मीणा को बागी चुनाव लड़ रहे नरेश मीणा से मीणा वोट बैंक में तो नुकसान होगा ही साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा की नारागजी से भी खामियाजा उठाना पड़ सकता है.


झुंझुनू विधानसभा सीट
झुंझुनू सीट पर कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र गुढ़ा के निर्दलीय मैदान में होने से इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. 2 लाख 70 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी अंदर खाने नाराज नेताओं के नुकसान का खतरा है. बीजेपी में टिकट कटने से नाराज बबलू चौधरी को पार्टी ने भले ही मना लिया हो, लेकिन उनके समर्थक मानने को तैयार नहीं हैं. वहीं कांग्रेस के परिवारवाद फैसले से स्थानीय कांग्रेसी नेताओं नाराजगी है, जिसका नुकसान पार्टी को हो सकता है. बीजेपी के रणनीतिकार निर्दलीय पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के मैदान में डटे रहने को खुद के लिए फायदेमंद मान रहे हैं. गुढ़ा मुस्लिम और दलित वोट लेने में कामयाब रहते हैं, लेकिन इसके साथ राजपूत समाज के वोट से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.


खींवसर विधानसभा सीट
पिछले तीन चुनाव से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के कब्जे वाली खींवसर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है. इस सीट पर 2 लाख 83 हजार से अधिक मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे. इस सीट पर आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, कांग्रेस से रतन चौधरी और बीजेपी से पिछले उम्मीदवार रेवंत राम डांगा के बीच मुकाबला है. 2023 के चुनाव में मुकाबला बेनीवाल और डांगा के बीच में रहा था, डांगा महज 2100 के करीब वोट के अंतर से हारी हुई थी, ऐसे में इस बार भी मुकाबला आरएलपी और बीजेपी के बीच दिखाई दे रहा है. हनुमान बेनीवाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.



रामगढ़ विधानसभा सीट
कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन से खाई हुई रामगढ़ सीट पर हो रहे चुनाव बीजेपी और कांग्रेस में कोई बागी नहीं है. बीजेपी ने पिछले उम्मीदवार और बागी तेवर दिखाने वाले जय आहूजा को मना लिया है, लेकिन बताया जा रहा है अंदरूनी नाराजगी अभी भी खत्म नहीं हुई है. यही कारण है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ लगातर दो दिन तक रामगढ़ में रुक कर नाराज नेताओं को मानाने में जुटे रहे. कांग्रेस ने दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन जुबेर को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड चला है, लेकिन परिवारवाद और धार्मिक गोलबंदी का फैक्टर बढ़ रहा है.


सलूंबर विधानसभा सीट
अमृत लाल मीणा के निधन से खाली हुई सलूंबर सीट पर कांग्रेस, बीजेपी और बीएपी से कोई बागी नहीं है. वहीं बीजेपी ने अमृतलाल की पत्नी शांता देवी को टिकट देकर 2 लाख 95 हजार से अधिक वोटरों वाली इस सीट पर सहानुभूति का दांव खेला है. भाजपा के साथ ही कांग्रेस में भी भितरघात की आशंका है. भाजपा में परिवार में टिकट देने से पार्टी के स्थानीय नेताओं की अंदरूनी नाराजगी है, वहीं कांग्रेस को पिछली बार के उम्मीदवार और पूर्व सांसद रघुवीर मीणा टिकट कटने से नाराज उनके समर्थक भी सक्रिय नहीं दिख रहे. मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी रेशमा मीणा 2018 में बागी लड़ी थीं, रेशमा की वजह से रघुवीर चुनाव हार गए थे. अब रघुवीर मीणा के समर्थक रेशमा का साथ नहीं दे रहे हैं. वहीं बाप ने उम्मीदवार जितेश कुमार उतारा है, जो 2023 विधानसभा चुनाव में 51 हजार से अधिक वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे.


 


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