Rajasthan - मीरा जिस कृष्ण मूर्ति में समाई वो मंदिर कहां है, यहां राधा की नहीं होती पूजा
Janmashtami Special: हाथी घोडा पालकी जय कन्हैयालाल की. ऐसे ही उदघोषों से जन्माष्टमी पर छोटी काशी गुंजयामान है.मथुरा वृंदावन से लेकर जयपुर के आरध्य गोविंददेवजी,गोपीनाथजी मंदिर में जहां जन्माष्टमी पर आस्था का सैलाब उमडे़गा. वहीं आमेर में मीरा के गिरधर पूजे जाएंगे., गिरधर की प्रतिमा, जिसे मीरा ने पूजा था.
Janmashtami Special: आमेर के जगत शिरोमणि मंदिर में मीरा के इसी गिरधर के जन्माष्टमी पर जन्म दर्शन होंगे.,मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा और रुक्मणी के साथ ही देखा होगा. जयपुर में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में दीवानी हुई मीरा बाई के संग विराजे हुए हैं. आमेर में सागर रोड पर स्थित जगत शिरोमणि के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर 478 साल पुराना है. इस मंदिर में कृष्ण के साथ मीरा की प्रतिमा स्थापित है.
महाराजा मानसिंह लाए थे आमेर मीरा की यह प्रतिमा
बताया जाता है कि मेवाड़ की मीरा की यह प्रतिमा चित्तौड़ से महाराजा मानसिंह (प्रथम) हल्दीघाटी युद्ध (जून 1576) के बाद आमेर ले आए थे. मंदिर पुजारी पं.गौरी शंकर शर्मा ने धार्मिक दस्तावेज के आधार पर यह तथ्य बताया कि मानसिंह की रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया., पुरातत्व विभाग के अनुसार मन्दिर 1599 ईस्वी से 1608 ईस्वी के दक्षिण भारतीय शैली में यह मंदिर बनवाया गया.
मीराबाई मेवाड़ में 600 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण की जिस मूर्ति को पूजा करती थी. इस मंदिर में श्रीकृष्ण की वही प्रतिमा है., हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मानसिंह प्रथम इस प्रतिमा काे चित्तौड़गढ़ से लेकर आमेर आए थे.आमेर में जिस मंदिर में प्रतिमा की स्थापना की गई. वह मंदिर विष्णु भगवान का जगत शिरोमणि मंदिर है. मंदिर में श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ भक्त के रूप में मीराबाई की प्रतिमा भी रखी गई.
दक्षिण भारतीय शैली पर बनाया मंदिर
15 फीट ऊंचे चबूतरे पर संगमरमर से निर्मित मंदिर में पीले पत्थर, सफेद और काले संगमरमर से बने मंदिर में पौराणिक कथाओं के आधार पर गढ़ा शिल्प दर्शनीय है. इस मन्दिर में उंचाई पर हाथी, घोड़े और पुराणों के दृश्यों का कलात्मक चित्रांकन है. इस मंदिर का मंडप दो मंजिल का है.यह मंदिर हिंदु-वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है.मंदिर के तोरण, द्वार-शाखाओं, स्तंभों आदि पर बारीक कारीगरी है., मुख्य उपासना गृह में राधा, गिरिधर, गोपाल और विष्णु की मूर्तियां हैं., एक विशाल कक्ष उत्कृष्ट रूप से निर्मित कला और शिल्प की शोभा को प्रदर्शित करता है., मंदिर के सामने हाथ जोड़े खड़ी गरुड़ की मूर्ति इस मंदिर की शोभा और बढ़ा देती है.,
बताया जाता है कि 1599 ईस्वी से 1608 ईस्वी में निर्माण कार्य पूरा हुआ जिस पर उस समय 11.77 लाख रुपये.खर्च हुए थे. मंदिर के निर्माण में करीब 9 लाख 72 हजार रूपये खर्च हुए तो वहीं गरूड़ की छतरी निर्माण में 1.25 लाख रूपये और तोरण गेट में करीब 80 हजार रूपये खर्च पर कुल 11.77 लाख रूपये खर्च होना बताया जाता है.बताया जाता है कि रानी कनकावती की इच्छा थी कि इस मंदिर के द्वारा उनके पुत्र जगतसिंह को सदियों तक याद रखा जाए, मंदिर वैश्विक पहचान बनाए. इसलिए उन्होंने इसका नाम जगत शिरोमणि रखा, यानी भगवान विष्णु के मस्तक का गहना. यह मंदिर राजपूत स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है.जानकारों के मुताबिक मुगल शासनकाल में भी यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुशिल्प में बनाया गया., तत्कालीन समय के अन्य मंदिरों की भांति इस पर मुगल शिल्पकला का प्रभाव कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता है.
बहरहाल , मंदिर में जन्माष्टमी की धूम रहेगी, लेकिन यहां बॉलीवुड फिल्मों की धूम नजर आती है. जगत शिरोमणी मंदिर बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग के लिए अपनी एक अलग पहचान रखता है. मंदिर में भुलभुलैया से लेकर धड़क मूवी की शूटिंग भी हो चुकी है.