बैंसला के निधन से गुर्जर विभाजन ! बीजेपी कांग्रेस को अब गुर्जर वोट लेना क्यों लग रहा है आसान ?
Rajasthan : राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी भीलवाड़ा दौरा करते है. अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ घेराबंदी के लिए गुर्जर वोटर को साधने की कोशिश मानी जाती है. लेकिन जो गुर्जर वोटर पिछले 20 सालों से कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला की छतरी तले एकजुट नजर आता था. जिसे साधना किसी पार्टी के लिए उतना आसान नहीं होता था. क्या अब बीजेपी कांग्रेस को ये आसान लगने लगा है ?
Rajasthan politics : राजस्थान की राजनीति में बीजेपी हो या कांग्रेस. गुर्जर वोटर को लेकर ये कहना इतना आसान नहीं था कि वो परंपरागत रुप से किस पार्टी का वोटर है. राजस्थान में 15 विधानसभा सीटें ऐसी है जहां गुर्जर वोटर ही सबसे ज्यादा है. 50 से ज्यादा ऐसे विधानसभा क्षेत्र है जहां गुर्जर वोटर संख्या के लिहाज से दूसरे या तीसरा स्थान पर है. कुल मिलाकर सूबे की 75 के करीब सीटों पर वो प्रभाव डालते है. जनसंख्या के लिहाज से 5.5 प्रतिशत गुर्जर वोटबैंक माना जाता है. क्योंकि पिछले 20 सालों में प्रदेश की राजनीति में गुर्जर वोटर मोटे तौर पर पार्टी की बजाय जातीय ध्रुवीकरण पर रहा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भीलवाड़ा के आसींद का दौरा किया तो उनके निशाने पर गुर्जर वोटर था. चुनावी साल में पीएम मोदी ने अपने पहले दौरे में भगवान देवनारायण जी के 1111वें जन्मोत्सव पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया. हालांकि इस कार्यक्रम में मंच पर किसी भी गुर्जर नेता को जगह नहीं दी गई. सचिन पायलट से लेकर देवनारायण बोर्ड के अध्यक्ष जोगेंद्र अवाना और गुर्जर नेता विजय बैंसला को भी जगह नहीं दी गई.
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विजय बैंसला से जब इस बारे में मीडिया ने बात की. तो वे पीएम मोदी को परिवर्तन परिवर्तन का प्रतीक बताते नजर आए. उन्हौने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में गुर्जरों ने एकसाथ होकर वोट किया. बीजेपी का एक भी विधायक नहीं जीता. लेकिन काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती. इस बार बदलाव होगा.
राजस्थान में गुर्जर वोटर पिछले 20 सालों में आरक्षण आंदोलन की वजह से एकजुट रहा. कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला के कुशल नेतृत्व का परिणाम ये था. कि प्रदेश में जब गुर्जर पटरियों पर बैठते थे. तो सरकारों को समझौते की टेबल पर बैठना पड़ता था. वसुंधरा राजे सरकार ( 2003-2008 ) में शुरु हुआ आंदोलन साल 2019 में अशोक गहलोत सरकार में हुए एक फैसले तक लगातार चलता रहा. बैंसला के फैसले का मोटे तौर पर समाज में कभी विरोध नहीं हुआ. उन्हौने अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, पढ़ी लिखी मां और कर्ज मुक्त समाज का नारा दिया था. 31 मार्च 2022 को उनका निधन हो गया.
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राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में सचिन पायलट कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष थे. माना जाता है कि गुर्जर समाज ने एकजुट होकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान दिया. लेकिन उसके बाद कई तरह के राजनीतिक हालत बदले. देवनारायण बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर जोगिंदर अवाना तो कभी अशोक चांदना जैसे नेताओं को गुर्जर लीडर को तौर पर खड़ा करने के प्रयास हुए. लेकिन किरोड़ी बैंसला के निधन के बाद मोटे तौर पर गुर्जर नेताओं के अलग अलग धड़े खड़े हुए. जिससे बीजेपी और कांग्रेस दोनों को अब गुर्जर वोटर को साधना आसान लग रहा है. इसके लिए पीएम मोदी के चेहरे पर बीजेपी तो राजस्थान सरकार में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अलग अलग फैसलों के जरिए गुर्जर मतदाता को साधने में लगे है. ऐसे में अब ये देखना रौचक होगा कि इस चुनावी समर में गुर्जर वोटर एकजुट होकर वोट करता है. या बिखराव नजर आता है.