राकेश टिकैत के खिलाफ BKU में कैसे हुई बगावत, क्या है भारतीय किसान यूनियन का इतिहास
Rakesh tikait के खिलाफ उनके ही संगठन भारतीय किसान यूनियन में बगावत हो गई है. बीजेपी के खिलाफ लगातार प्रचार करने की वजह से राकेश टिकैत पर राजनीतिक होने का आरोप लगा है. ऐसे में bharatiya kisan union ने राजनीतिक होने का आरोप लगाते हुए अलग से संगठन का गठन किया है.
ये बात नवंबर 2021 की है. उस वक्त उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तैयारियों में सभी दल लगे हुए थे. किसान आंदोलन के जरिए देश में अपनी पहचान बना चुके भारतीय किसान यूनियन ( BKU ) के नेता नरेश टिकैत इन दिनों काफी लाइम लाइट में थे और बीजेपी विरोध में लगातार प्रचार कर रहे थे. नवंबर 2021 में ही यूपी के सिसौली में भाकियू के कार्यालय पर बीजेपी के विधायक उमेश मलिक पर हमला हुआ था. इस हमले के नामजद आरोपी भी तय किए गए. लेकिन राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत इनकी गिरफ्तारी के खिलाफ अड़ गए. और कहा कि किसी भी हाल में बीजेपी विधायक पर हमले के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. बताया जाता है कि यहीं से भाकियू के टूटने और राकेश टिकैत के खिलाफ बगावत की भूमिका तैयार हो गई थी.
भारतीय किसान यूनियन का इतिहास
साल 1972 में पंजाब में किसान हितों के लिए एक संगठन बनाया गया था. जिसका नाम रखा पंजाब खेतीबाड़ी जमींदारी यूनियन. लेकिन ये संगठन किसानों को एकजुट करने में कामयाब नहीं रहा. इसके कुछ साल बाद इसके दायरे का विस्तार किया गया. इसमें हरियाणा के साथ साथ तमिलनाडु और कर्नाटक के किसान संगठनों को भी जोड़ा गया. और इसे बीकेयू नाम दिया गया. लेकिन 1982 में बीकेयू दो गुटों में बंट गया. नारायण सामी नायडू के नेतृत्व में बीकेयू (N) और भूपेंद्र सिंह मान के नेतृत्व में बीकेयू (M) बना. इसके बाद शरद अनंतराव जोशी ने इस संगठन को फिर से एकजुट करने की कोशिश की. परिणाम ये रहा है कि 1986 में उत्तर प्रदेश के सिसौली में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के रुप में इसे पुनर्गठित किया गया. लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत ने इसे हमेशा अराजनैतिक रखा. मतलब ये संगठन किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ेगा. परिणाम ये रहा कि तमाम दलों के नेता और प्रधानमंत्री से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री तक को सिसौली जाकर किसानों के हितों में बड़े बड़े ऐलान करने पड़े.
राकेश टिकैत और राजेश सिंह चौहान में दूरियां
तीन कृषि कानूनों के बाद जब पंजाब से किसान आंदोलन की शुरुआत हुई. और फिर जब आंदोलनकारी किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाला. तो महेंद्र टिकैत के बेटे राकेश टिकैत एक प्रमुख चेहरा बनकर सामने आए. लाल किले पर झंडा फहराना हो या 26 जनवरी की हिंसा हो. टिकैत एक प्रमुख चेहरा बने. 26 जनवरी की घटना के बाद जब दिल्ली की सीमाओं से किसानों को हटाया जाने लगा तो राकेश टिकैत के आंसुओं ने इस आंदोलन में फिर से जान फूंकी और उनके भाई नरेश टिकैत भी खुलकर सामने आ गए. कुछ वक्त बाद भारत सरकारने कृषि कानून तो वापिस ले लिए लेकिन टिकैत बंधुओं का बीजेपी के खिलाफ प्रचार जारी रहा. बिहार से लेकर बंगाल और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को घेरने तक बीजेपी के खिलाफ प्रचार जारी रहा.
ऐसे में अब भारतीय किसान यूनियन दो फाड़ हो गया है. राजेश सिंह चौहान के नेतृत्व में नए संगठन का गठन किया गया है जिसका नाम- भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक रखा गया है. राजेश सिंह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष और हरीनाम सिंह वर्मा को इसका यूपी प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. अलग संगठन बनाते समय राकेश टिकैत पर भी गंभीर आरोप लगाए. आरोप लगाया कि टिकैत परिवार ने संगठन के नाम पर राजनीति की और भरपूर पैसा बनाया.
ये भी पढ़ें-
भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर लगाई रोक, जानिए आम आदमी पर क्या असर पडे़गा
क्या कांग्रेस ही अब हार्दिक पटेल को पार्टी से बाहर कर देगी ?
अब मदरसों में राष्ट्रगान गाना होगा अनिवार्य, जारी हुआ सरकारी आदेश