Unique Holi Tradition : होली का लोगों साल भर इंतजार रहता है. इन रंगों के त्यौहार में हर कोई गीले शिकवे मिटा कर एक दूसरे के रंग में रंगना चाहता है. हमारे देश में होली के त्यौहार भी अलग अलग राज्य और इलाकों में अलग-अलग रूप से मनाया जाता है. कहीं होली पर लड़का और लड़की एक दूसरे को रंग लगा कर एक दूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुन लेते हैं तो वहीं कहीं अगर लड़का गलती से भी किसी लड़की को लाल रंग लगा देता है तो उसे उससे शादी करनी पड़ती है. 


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दरअसल संथाल आदिवासी समाज में फूलों और पानी से होली खेलने की परंपरा है. यह आदिवासी समाज होली को बाहा पर्व के रूप में मनाता है. यहां अलग-अलग रंगों के कई मायने होते हैं. यहां होल के दौरान अगर अगर किसी लड़के ने समाज की किसी कुंवारी लड़की पर रंग डाल दिया तो, उसे लड़की से शादी करनी पड़ती है और ऐसा ना करने पर उसे सजा दी जाती है. जिसमें उसे भारी जुर्माना भरना पड़ता है. 


दरअसल झारखण्ड के आदिवासी समाज में रंगोत्सव की धूम पहले से ही शुरू हो जाती है. इस दौरान संथाल आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा अर्चना करते हैं. ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर थिरकते हैं और एक-दूसरे पर पानी डालते हैं. बाहा के दिन पानी डालने को लेकर भी नियम है. जिस रिश्ते में मजाक चलता है, पानी की होली उसी के साथ खेली जा सकती है.


अगर किसी भी लड़के ने किसी कुंवारी लड़की पर रंग डाल दिया तो समाज की पंचायत लड़की से उसकी शादी करवा देती है. अगर लड़की को शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो समाज रंग डालने के जुर्म में युवक की सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा सुना सकता है. यह नियम झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी तक के इलाके में चलन में है. यही कारण है कि संथाल समाज का लड़का किसी लड़की के साथ रंग नहीं खेलता. परंपरा के मुताबिक पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है.


वहीं आदिवासी समाज प्रकृति के प्रति भी पूरा मान सम्मान रखता है., लिहाजा इस दिन प्रकृति की पूजा का रिवाज है. इस दिन महिला और पुरुष फूल और पत्ते कान में लगाते हैं. संथाल समाज का मानना है कि जिस तरह पत्ते का रंग नहीं बदलता, हमारा समाज भी अपनी परंपरा को अक्षुण्ण रखेगा. बाहा पर्व पर पूजा कराने वाले को नायकी बाबा के रूप में जाना जाता है. पूजा के बाद वह सुखआ, महुआ और साल के फूल बांटते हैं. इस पूजा के साथ संथाल समाज में शादी विवाह का सिलसिला शुरू होता है. संथाल समाज में ही कुछ जगहों पर रंग खेलने के बाद वन्यजीवों के शिकार की परंपरा है. शिकार में जो वन्यजीव मारा जाता है उसे पका कर सभी साथ बैठ कर खाना खाते हैं.