Bagru: राजधानी जयपुर के बगरू कस्बे के पास स्थित श्री नारायण धाम गौशाला में गो सेवा परिवार समिति जयपुर ने गौ रक्षा और पर्यावरण संरक्षण का एक अभिनव प्रयोग किया गई. जहां गौ रक्षा और पर्यावरण रक्षा अभियान के तहत विगत पांच वर्षों से गाय के गोबर से लकड़ी (गौकाष्ठ) का निर्माण किया जा रहा है. गौकाष्ठ उत्पादन इकाई के प्रभारी विष्णु अग्रवाल बताते है कि करीब 5 वर्ष पूर्व 2017 में गोबर से लकड़ी बनाने का विचार पराली से अंतिम संस्कार करने का एक समाचार पढ़कर आया और उसके लिए अहमदाबाद गुजरात से मशीन बनवाई ओर गोशाला में उत्पादन शुरू किया. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पेड़ की लकड़ी का सर्वोत्तम विकल्प है गौकाष्ठ 
विश्व जलवायु व पर्यावरण समस्या को देखते हुए आज जहा ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है. वहीं, पेड़ो को कटने से बचाना ओर भी ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य है. इसी सोच को दृष्टिगत रखते हुए गो सेवा परिवार ने यह अभियान चलाया है. 


अंतिम संस्कार, होलिका दहन, यज्ञ और अन्य धार्मिक कार्यो में गौकष्ठा का उपयोग कर प्रतिवर्ष हजारों पेड़ो को कटने से बचाया जा सकता है. यदि गौकाष्ठ से एक व्यस्क व्यक्ति का अन्तिम संस्कार जाता है तो 15 वर्ष की आयु के 2 पेड़ो का जीवन बचाया जा सकता है. एक अंतिम संस्कार में जहां करीब 500 से 600 किलो लकड़ी का प्रयोग होता है, जिसकी कीमत 5 से 6 हजार रुपये तक चुकानी पड़ती हैं. वहीं, गौकाष्ठ में सिर्फ 300 किलो गौकाष्ठ से अंतिम संस्कार हो जाता है, जिसके लिए सिर्फ 3100 रुपये का खर्च आता है. गौकाष्ठ से अंतिम संस्कार आर्थिक रूप से भी लाभदायक है.


जयपुर शहर में गौकाष्ठ से अब तक 700 से अधिक अन्तिम संस्कार हो चुके है. गौकाष्ठ जलने से एक ओर जहा वायु प्रदूषण नहीं होता है. वही मान्यता है कि गाय का गोबर जलने से पर्यावरण का शुद्धिकरण भी होता है. गाय का गोबर जलाने से उत्पन्न धुंआ से मौसमी बीमारियों को पनपने वाले मच्छरों का भी खात्मा होता है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दिवंगत आत्मा को सदगति भी प्राप्त होती है. 


पिछले कुछ वर्षो में होलिका दहन में भी गौकष्ठा का इस्तेमाल किया जाने लगा है. वर्ष 2022 में जयपुर शहर में करीब 1500 जगह गौकाष्ठ से होलिका दहन किया गया. 
जयपुर शहर से प्रेरणा लेकर आज भारतवर्ष में सैकड़ों जगह गौकाष्ठ से अन्तिम संस्कार का प्रचलन शुरू हो चुका है और आमजन इसको सहजता से स्वीकार कर रहे हैं.
एक अनुमान है कि अगर पूरे भारत मे अन्तिम संस्कार सिर्फ गौकाष्ठ से ही किया जाए तो 5 करोड़ पेड़ सालाना बचाए जा सकते है और वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में भी भारी कमी लाई जा सकती है. 


वहीं, दूसरी तरफ गौकाष्ठ की बिक्री से प्राप्त आय से गोशालाओं में संरक्षित निराश्रित गोवंश के लिए चारे-पानी और अन्य व्यवस्थाओं के लिए आर्थिक मदद भी मिलेगी हम कह सकते है कि एक पंथ तीन काज और तीनों से ही मानव कल्याण. 


आज गोशालाओं में गोबर के निस्तारण की बहुत बड़ी समस्या है. गौकाष्ठ निर्माण करके गोरक्षा के साथ वन पर्यावरण को संरक्षित करने का काम सहजता से किया जा सकता है. जयपुर की कई गोशालाओं में गौकाष्ठ का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन उत्पादन की तुलना में मांग में कमी के कारण इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. आवश्यकता है सरकारी स्तर गौकाष्ठ को लेकर एक नीति बने और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए जनजागरण अभियान चले. इसके साथ आमजन से सकारात्मक सहयोग मिले तो हम पर्यावरण संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान दे सकते है. 


Reporter- Amit Yadav 


यह भी पढे़ंः राजस्थान की वो घिनौनी कुप्रथा जहां सुहागरात पर सफेद चादर तय करती है, Virginity Test


अपने जिले की खबर देखने के लिए यहां क्लिक करें