Bhinmal: नाडी वाले गणपति मंदिर में होगा मेले का आयोजन, विनायक को लगेगा 500 किलो के लड्डू का भोग
जालोर जिले के भीनमाल की महिमा का वर्णन अनेकों अभीलेखों और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. स्कंधपुराण श्रीमाल महात्म्य में भी इस नगर के बारे में काफी जानकारी मिलती है. कालांतर में इसका नाम भीनमाल हो गया.
Bhinmal: जालोर जिले के भीनमाल की महिमा का वर्णन अनेकों अभीलेखों और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. स्कंधपुराण श्रीमाल महात्म्य में भी इस नगर के बारे में काफी जानकारी मिलती है. कालांतर में इसका नाम भीनमाल हो गया. इस नगर का विस्तार 5 योजन तक बताया गया है. प्राचीन काल के अवशेष भीनमाल में चारों तरफ मरुस्थल में दबे हुए है. भीनमाल ने कई उत्थान-पतन देखे हैं. इतिहास और जनश्रूतियों के अनुसार यह नगर चार बार नष्ट हुआ.
इसी उत्थान-पतन की वजह से भीनमाल के कई नाम हुए; पुष्पमाल, आलमाल, रत्नमाल, श्रीमाल, भील्लमाल, भीनमाल आदि. आज हम शहर के खजूरिया नाले के पास एकांत जगह पर स्थित सिद्धि विनायक (नाडी वाले गणपति) का मंदिर के बारे में बता रहे है. शहर से दो किमी की दूरी पर है यह मंदिर गणेश भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां हर बुधवार को मंदिर परिसर में मेला भरता है. गणेश भक्तों की मान्यता है कि बुधवार के दिन जो भक्त मन्नत मांगते हैं, उसे नाडी वाले गणपति पूरी करते हैं.
50 वर्ष पूर्व हुआ मंदिर का निर्माण
मान्यता अनुसार कई साल पुराने इस मंदिर जो मुगल शासन के समय अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर ध्वस्त कर दिया था, जिसके अवशेष आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है. मंदिर का करीबन 50 वर्ष पूर्व निर्माण करवाया गया. शहर सहित आस-पास के गांवों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. भीनमाल शहर के तलबी रोड निवासी रामसिंह पेशे से कारीगर हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि चार वर्ष पूर्व मंदिर में रंगरोगन का कार्य कर रहा था. इस दौरान मंदिर का शिखर नीचे गिर गया, जहां काफी पत्थर रखे हुए थे, लेकिन उनके शरीर में कहीं पर खरोंच तक नहीं आई.
मानव शरीर जैसी दिखती है मूर्ति में नसें
इसके अलवा इस मंदिर की अलग पहचान है. एक प्रशासनिक अधिकारी ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि इस मंदिर में बुधवार के दिन आकर पदोन्नति की मन्नत मांगी थी. इसके दूसरे दिन ही उनकी पदोन्नति का आदेश आ गया. गणेश भक्तों की मान्यता है कि मंदिर में विराजित मूर्ति की विशेषता यह है कि शरीर के समान इसमें नसें तक दिखाई पड़ती हैं.
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यह भी है मान्यता, मंदिर में अवशेष मौजूद
क्षेंममूर्ति राजा ने की पूजा तो हुए श्रापमुक्त, फिर गणेश प्रतिमा की स्थापित की. सिद्धि विनायक मंदिर विकास समिति के अध्यक्ष हरिसिंह सोलंकी ने बताया कि श्रीमाल पुराण के अनुसार एक समय क्षेंममूर्ति नामक राजा श्रीमाल क्षेत्र (भीनमाल) कीर्ति सुनकर यहां आए थे. उस दरम्यान वे स्नान के लिए इसी नाडी पर रूके थे. राजा ने इसी नाडी के पास एक वर्ष विनायक की तपस्या की. मान्यता है कि तपस्या से प्रसन्न होकर नाडी से विनायक अवतरित हुए और राजा को श्राप मुक्त किया. इसके पश्चात राजा ने यहां मूर्ति स्थापित कर गणपति का पूजन किया था. पहले यहां भव्य मंदिर हुआ करता था, जिसे 13वीं शताब्दी के समय अलाउदीन खिलजी ने ध्वस्त कर दिया था. उस मंदिर के अवशेष आज भी यहां मौजूद है.
2007 में हुई ट्रस्ट की स्थापना
सिद्धि विनायक मंदिर विकास समिति के सचिव अमृतलाल डी प्रजापत ने बताया कि मंदिर को विकसित करने के लिए 2007 में ट्रस्ट की स्थापना की गई. इसके पश्चात मंदिर जीर्णोद्धार, चारदीवारी, नाडी का सौंदर्यीकरण, मंदिर परिसर में विभिन्न प्रजाति वृक्ष लगाकर विकसित किया गया है. यहां पर प्रत्येक बुधवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन को लेकर आते है.
500 किलो लड्डू का लगेगा भोग
इस ऐतिहासिक नाडी वाले सिद्धी विनायक मंदिर में गणेश चतुर्थी के अवसर पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मंदिर में मेले का आयोजन होगा. मेले को लेकर मंदिर को आर्कषक रोशनियों से सजाया गया है. ट्रस्ट की ओर से श्रद्धालुओं के दर्शन को लेकर पूर्ण व्यवस्था की गई है. गणेश चतुर्थी को लेकर नाडी वाले गणपति को 500 किलों के मोदक का भोग लगाया जाएगा. इसके बाद मंदिर में हवन का होगा और इस दौरान मंदिर में कई धार्मिक आयोजन होंगे.
Reporter: Dungar Singh
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