Jaisalmer: राजस्थान के जैसलमेर में साल 2014 में मिला दुर्लभ डायनासोर के फुटप्रिंट (Dinosaur footprints) अपनी जगह से गायब हो चुके हैं. थईयात गांव की पहाड़ियों से यह निशान अब नहीं मिल रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि 1 महीने पहले गायब हुए इन निशानों के बारे में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों तक को नहीं पता है. 


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जानकारी के अनुसार, पहले भी इसका संरक्षण नहीं किया गया और अब यह वहां से यह गायब हो गया. जियोलोजिकल सर्वे (Geological Survey) में भी इस पंजे के निशान का जिक्र है.


जैसलमेर में साल 2014 में राजस्थान यूनिवर्सिटी की ओर से 9th इंटरनेशनल कांग्रेस ऑन जूरेसिक सिस्टम (International Congress on Jurassic System) का आयोजन किया गया था. इसमें इस बात को लेकर संभावना जताई गई थी कि राजस्थान के जैसलमेर (Jaisalmer News) इलाके में डायनासोर के प्रमाण मिल सकते हैं. इसके बाद इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ साइंटिस्ट के 20 वैज्ञानिकों ने थाईयात गांव की पहाड़ियों पर इसकी खोज शुरू की, जहां इन वैज्ञानिकों को डायनासोर के 2 पैरों के निशान मिले. इनकी मार्किंग कर इन्हें सुरक्षित किया गया और  इस खोज को 2015 में पब्लिश किया गया. इसमें जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक डॉ नारायण दास इनखिया भी इसमे शामिल थे. इस पर स्टडी की गई तो सामने आया कि ये इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड नामक डायनासोर के फुटप्रिंट है. 


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थईयात गांव की पहाड़ियों में मिली इस बड़ी खोज का संरक्षण नहीं करने की वजह से करीब एक महीने पहले यह अपनी जगह से गुम हो गया या कोई इसे लेकर चला गया है. जैसलमेर में गुम हुए इस डायनासोर के पंजे के निशान को लेकर जब तत्कालीन खोजकर्ता डॉक्टर धीरेंद्र कुमार पांडे से बात की गई तब उन्होंने बताया कि उनको एक महीने पहले इस बारे में पता चला था. 


किसी स्टूडेंट ने उन्हें मैसेज कर इसकी जानकारी दी थी. वहीं, पहले तो यकीन नहीं हुआ लेकिन जब जानकारी जुटाई तो सामने आया कि पैर के निशान वहां से गायब हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि मैं सबसे बात कर रहा हूं और इसकी जानकारी  जुटाई जा रही है कि कहीं कोई स्टूडेंट या खोजकर्ता अपनी लैब में रखने तो नहीं ले गया. हम पूरी कोशिश में है कि यह वापस मिल जाए. उन्होंने बताया कि मैं पहले भी प्रशासन को यह बोल चूका था कि जैसलमेर में होने वाली खोज का संरक्षण होना चाहिए लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और इतनी बड़ी खोज गायब हो गई. 
 
इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड डायनासोर के फुटप्रिंट 
जैसलमेर में मिले निशान की जब स्टडी में पता चला कि पैर में तीन मोटी उंगलियां थीं. इस प्रकार के डायनासोर एक से तीन मीटर ऊंचे और पांच से सात मीटर होते थे. इस डायनासोर के जीवाश्म इससे पहले फ्रांस, पोलैंड, स्लोवाकिया, इटली, स्पेन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में मिले हैं. 


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पैरों के निशान की स्टडी से अंदाजा लगाया कि यह इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड डायनासोर का पंजा था. भारत में डायनासोर के जीवाश्म कच्छ बेसिन और जैसलमेर बेसिन में मिलने की संभावनाएं जताई जाती रही हैं. अब यह तय हो गया है कि राजस्थान में खोजने पर चट्टानों से डायनासोर के जीवाश्म भी मिल सकते हैं. 


डायनासोर के पंजे का निशान गायब होना चिंता का विषय
जैसलमेर के भूजल वैज्ञानिक डॉ नारायण दास इनखिया ने जानकारी देते बताया कि जैसलमेर में मिले इस दुर्लभ पदचिन्ह का इस तरह से गायब होना एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है, जब इसकी खोज हुई उस समय में भी वहीं मौजूद था।. वहीं इसकी जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों तक को नहीं है. कलेक्टर आशीष मोदी को जब इसके बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि मुझे इस बारे में जानकारी नहीं थी कि डायनासोर का पंजा यहां से गायब हो गया है. इतनी बड़ी खोज कहां और कैसे गायब हो गई इसकी जानकारी जुटाई जाएगी. 


Reporter- Shankar Dan