Success Story: कहते हैं कि हिम्मते मर्दा मददे खुदा, मतलब जब आप कुछ जीवन में करने की ठान लें तो फिर भगवान भी आपकी मदद के लिए तैयार हो जाते हैं, जहां राजस्थान की भूमि अपनी शौर्य वीर गाथाओं के लिए जानी जाती है तो वहीं आज देश की प्रतिष्ठित सिविल सेवाओं की तैयारी में राजस्थान के युवा न केवल बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं बल्कि आज देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में राजस्थान के युवा अपनी सफलता का डंका बजा रहे हैं. 


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आज हम आपको जो सक्सेस स्टोरी बताने जा रहे हैं उसमें कामयाब होने वाले शख्स ने दुखों, मुसीबतों और बाधाओं को पार करके सफलता की एक ऐसी कहानी लिखी जो तमाम युवाओं के लिए एक मोटीवेशनल स्टोरी का काम करेगी. 


आज हम बात कर रहे हैं करौली जिले के जाखोदा गांव निवासी आईपीएस अधिकारी राजेंद्र प्रसाद मीणा की, जिनका बचपन बेहद दुखों और संघर्षों के साथ बीता. राजेंद्र शुरू से ही पढ़ाई-लिखाई में मेधावी छात्र थे और बचपन से ही उनकी तमन्ना सिविल सेवा में जाने की थी लेकिन उनकी जिंदगी में एक दिन ऐसा पल आया जिसके बारे में उन्होंने खुद सोचा भी नहीं था. 


राजेंद्र के सपनों को ढंग से पंख भी नहीं लगे थे और नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले राजेंद्र और उनके 5 भाइयों और 3 बहनों के ऊपर से पिता का साया उठ गया. एक हादसे में अपने पिता को खो चुके राजेंद्र और उनके भाई बहन बुरी तरह से टूट गए थे. एक गरीब किसान पिता की मौत से परिवार बिल्कुल टूट चुका था और राजेंद्र को ऐसा लगा कि अब शायद अब उनके सपने अधूरे रह जाएंगे.  पिता का असमय निधन पूरे परिवार के लिए वज्रपात जैसा था लेकिन इस मुश्किल वक्त में उनके बड़े भाइयो नें उनका साथ दिया. उनके बड़े भाई हरिकेश ,भरतलाल, ओम प्रकाश खेती संभालते रहे. 


हरिकेश अपनी पढ़ाई के साथ पूरी तरह खेती में जुट गए ताकि छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई में बाधा न आए तो वहीं भरत लाल और ओमप्रकाश खेती में हाथ बंटाने के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते रहे. पिता के निधन के ठीक एक साल बाद राजेंद्र प्रसाद की दसवीं की बोर्ड की परीक्षा थी. परिवार टूट चुका था लेकिन राजेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की. इसी दौरान जहां बड़े भाई हरिकेश पूरी तरह खेती संभालने लगे तो वहीं भरतलाल और ओमप्रकाश सरकारी टीचर बन चुके थे. 
 
राजकीय महाविद्यालय करौली से बीकाम करने के बाद राजेंद्र के मन में आया कि अफसर बनना है तो जयपुर का रुख करना पड़ेगा क्योंकि उनके तमाम स्कूल के सीनियर और परिचित सिविल सर्विस की तैयारी करने जयपुर जा कामयाबी पा चुके थे. जयपुर की राजस्थान यूनिवर्सिटी से एम कॉम करने के बाद साल 1992 में उनका जूनियर रिसर्च फेलोशिप में सलेक्शन हो गया और पढ़ाई और बाकी खर्चों के साथ उनको दस हजार रुपये महीने की आर्थिक मदद मिलने लगी. इससे उन्हें हिम्मत मिली और साल 1995 में राजेंद्र ने जूनियर एकाउंटेंट की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोटा के एसपी ग्रामीण दफ्तर में नौकरी ज्वाइन कर ली. 


सरकारी नौकरी भले ही लग चुकी थी लेकिन राजेंद्र का सफर जूनियर एकाउंटेंट तक सीमित थोड़े ही रहना था. एसपी के दफ्तर में नौकरी करते करते खुद एसपी बनने की इच्छा जाग चुकी थी. इसके ठीक एक साल बाद सन 1996 में RPSC की प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर राजेंद्र कॉर्मिशियल टैक्स इंस्पेक्टर बन चुके थे लेकिन राजेंद्र का लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ था.


इसके बाद 1998 में एक बार फिर RPSC की परीक्षा पास कर वो तहसीलदार बन चुके थे लेकिन अभी और बड़ा मुकाम कायम करना था और साल आया 1999 और राजेंद्र    DANIPS  ( Delhi, Andaman and Nicobar Islands Police Service) की परीक्षा पास करके दो साल की ट्रेनिंग करने के बाद साल 2001 में  देश की सबसे तेज तर्रार मानी जाने वाली पुलिस यानि दिल्ली पुलिस में एसीपी यानि अस्सिटेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस बन चुके थे. 


पुलिस सेवा में आने के बाद  भी राजेंद्र का कारवां रुका नहीं. सालों तक अपने साफ सुफरे रिकार्ड के बाद साल 2022 में डीसीपी की जिम्मेदारी संभालेते हुए उन्हें  President Police Medal for meritorious service  के लिए चुना गया और सम्मानित किया गया. यही नहीं इसी साल राजेंद्र को गृह मंत्री अमित शाह द्वारा उत्कृष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया. इसी साल उनके अच्छे सेवा रिकार्ड को देखते हुए  उनका प्रमोशन DANIPS से भारतीय पुलिस सेवा यानि आईपीएस के लिए हो गया. 


राजेंद्र प्रसाद मीणा कहते हैं कि जीवन में कई बार बुरा वक्त आता है लेकिन ऐसे वक्त में हिम्मत नहीं तोड़नी चाहिए क्योंकि सेल्फ कांफिडेंस और विपरीत परिस्थितियों में की गई मेहनत इंसान को उच्च शिखर पर ले जाती है. राजेंद्र प्रसाद मीणा आज केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुके हैं. 


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