Deedwana: आज देश कारगिल विजय दिवस की 23वीं वर्षगांठ मना रहा है. जम्मू कश्मीर की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे कैप्टन सौरभ कालिया सहित नागौर जिले के दो वीर सपूतों के अपहरण और उसके बाद उनके साथ की गई बर्बरता के बाद कारगिल युद्ध शुरू हुआ था, लेकिन यह युद्ध  भारतीय सेना के वीरता, अदम्य साहस और पराक्रम से समाप्त हुआ. ऑपरेशन विजय के बाद ऑपरेशन रक्षक में घायल हुए सूबेदार रोशन खां ने अपनी कहानी बताई. 


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कारगिल में ऑपरेशन विजय में देश के वीर जवानों ने भारत के लिए अपने प्राणों की प्रवाह किए बगैर दुश्मन को धूल चटाई. ऑपरेशन विजय खत्म होने के बाद सेना ने कश्मीर में छिपे बैठे आतंकियों को खत्म करने के लिए ऑपरेशन रक्षक लॉन्च किया.


इसमें भी सेना के जवानों ने अपना अदम्य साहस दिखाया और सैकड़ों आतंकियों को नर्क का रास्ता दिखाकर देश की हिफाजत की. ऑपरेशन विजय के दौरान जम्मू कश्मीर के बनिहाल में तैनात रहे सूबेदार रोशन खां ने ऑपरेशन विजय में तो दुश्मनों को धूल चटाई ही थी, उसके बाद हुए ऑपरेशन रक्षक में भी उन्होंने अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया. 


सूबेदार रोशन खां डीडवाना के नजदीकी गांव कुड़ली के रहने वाले हैं और ऑपरेशन रक्षक के दौरान उन्हें बनिहाल में एक मस्जिद में कुछ आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिलने पर पेट्रोलिंग के लिए निकली टीम ने उच्चाधिकारियों को इसकी जानकारी दी. अधिकारियों के निर्देश पर मस्जिद के आप सर्च ऑपरेशन चलाया गया. इस दौरान एक दर्रे में एक आतंकवादी को ग्रेनेड से सूबेदार रोशन खां ने मार गिराया. थोड़ी दूरी पर एक और आतंकवादी को भी साथी सैनिकों के साथ मिलकर खत्म कर दिया गया. 


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बाद में मस्जिद को घेर कर जैसे ही हमले की तैयारी की गई, उसी वक्त आतंकियों ने ब्रस्ट फायर कर दिया, जिसमें एक जवान और एक मेजर के साथ सूबेदार रोशन खां भी गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन सेना के जवानों ने 24 घंटे चले इस ऑपरेशन में आधा दर्जन से ज्यादा आतंकियों को खत्म कर दिया.


ऑपरेशन के दौरान फायरिंग में रोशन खां को तीन गोली लगी. सूबेदार रोशन खां का मानना है कि कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन कारगिल की विजय ने हमारा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था. आज भी कारगिल को याद करके दुश्मन की रूह तक कांप जाती है.  


Reporter- Hanuman Tanwar 


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