Deedwana : इंसान अपने भौतिक सुखों की पूर्ति के लिए जिस प्रकार पर्यावरण (Envirement) के साथ छेड़छाड़ कर रहा है, वो भविष्य में पूरी दुनिया के लिए बेहद ही घातक सिद्ध होने वाला है. जैसा की हम देख पा रहे कि सर्दियों (Winter) में रिकॉर्ड तोड़ सर्दी, गर्मियों में रिकॉर्ड तोड़ झुलसा देनेवाली गर्मी (Summer), बारिश के दिनों में रेगिस्तान में बाढ़ तो मैदानी इलाकों में भी कहीं बिल्कुल सूखा, ग्लेशियर (Glacier) लगातार पिघल रहे हैं, समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, बाढ़, भूकम्प, आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है? 


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क्या प्रकृति हमें कोई संकेत दे रही है? क्या हम किसी अनजान खतरे की तरफ बढ़ते जा रहे हैं? क्या होगा हमारा हस्र अगर यही रहे हालात? जिस प्रकार से इंसान अपने भौतिक सुखों की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहा है प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध विदोहन कर रहा है. उससे हम जितना विकास कर रहे हैं, वो हमें विनाश के पथ पर ले जा रहा है. प्रकृति हमें बार-बार इशारा कर रही है, बार-बार चेतावनी दे रही है, लेकिन फिर भी इंसान सुधरने का नाम नहीं ले रहा. जो आने वाले समय में एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रहा है. 


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ग्लोबलाइजेशन (Globalization)और अंधाधुंध उद्योग धंधे लगाने में हमने पर्यावरण और प्रकृति से भरपूर छेड़छाड़ की और लगातार करते जा रहे हैं. पहाड़ों के सीना चीरकर हमने अपने सुख के लिए आलीशान सड़के बना ली. नदियों की धाराओं को रोककर हमने बिजली परियोजनाएं शुरू कर ली. जंगल के जंगल काट कर हमने राख कर दिए, लेकिन कभी यह नहीं सोचा कि जब यह खत्म हो जाएंगे तो क्या होगा. हरे भरे जंगलों की जगह आज कॉन्क्रीट के जंगल खड़े हैं लेकिन वहां ऑक्सीजन देने वाले पेड़ नहीं है. 


राजस्थान के लिहाज से अगर बात की जाए तो यहां हमेशा से ही मरुस्थलीय प्रदेश होने के कारण वर्षा जल का अभाव रहा है. लेकिन पुराने समय में राजस्थान के लोग पानी का महत्व जानते थे, इसलिए पानी का संचय करते थे. जितने पानी की जरूरत थी उतना ही उपयोग किया जाता था, लेकिन समय के साथ आधुनिकीकरण हावी हुआ और हम अपनी परंपराओं को भूल गए. जिसका नतीजा आज सामने है. पहले बरसात के सीजन को 4 महीने का माना जाता था, इसीलिए इसे चौमासा कहा जाता था. अब वही रेनी सीजन घटकर 15-20 दिन का राह गया. लेकिन इन 15-20 दिनों में ही पुराने ओसत के जितना ही पानी बरस जाता है. जो फसलों के लिए हर लिहाज से खराब रहता ही. पहले अतिवृष्टि से फसल खराब हो जाती है और बाद में बची खुची पानी की कमी से मर जाती है. यह बदलाव ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की ही देन माने जा रहे हैं. 


थीम: ओनली वन अर्थ 


संयुक्त राष्ट्र ने इस साल की थीम ओनली वन अर्थ रखी है. जिसके मायने हैं कि दुनिया के राजनेता और राजनीति भलेही ही अलग-अलग जमीन के टुकड़ों को अपने-अपने देश का नाम देते हों लेकिन वास्तव में धरती एक ही है. कहीं न कहीं इस बार की थीम प्राचीन भारतीय थ्योरी वसुधेव कुटुम्बकम को भी पुष्ट कर रही है. संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ दुनियाभर के वे संगठन जो पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं और वैज्ञानिक जो पर्यावरण को लेकर चिंतित हैं. अब समय आ गया है कि वो दुनिया को जागरूक करें पर्यावरण संरक्षण के प्रति.


अगर हमने समय रहते अपनी आदतों को नहीं सुधरा और प्रयावरण संरक्षण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाया तो परिणाम समूचे विश्व के लिए घातक होगें. जानकारों के अनुसार इंसान जिस प्रकार से प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ कर के विकास के रास्ते पर बढ़ रहे हैं, वह विनाश का रास्ता है एक और महाविनाश का रास्ता. 


Reporter: Hanuman Tanwar


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