Rajasthan politics : राजस्थान में 22 विपक्षी विधायकों ने थामा कांग्रेस का हाथ, कहानी प्रदेश में हुए पहले दलबदल की
Rajasthan politics : राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने है. अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे ( Ashok gehlot and Vasundhara raje ) से लेकर सचिन पायलट और हनुमान बेनीवाल ( Hanuman Beniwal ) जैसे नेताओं की साख दांव पर है. आज बात प्रदेश की सियासत में हुए पहले दलबदल की. जब राजस्थान विधानसभा चुनाव 1952 में जीते 22 विधायकों ने कांग्रेस का दामन थामा था.
Rajasthan election : राजस्थान में आजादी के समय दो धड़े थे. पहला कांग्रेस, और दूसरा गैर कांग्रेस. जिसमें राम राज्य परिषद से लेकर जनसंघ जैसे दल शामिल थे. लेकिन उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कांग्रेस को राजस्थान में ही सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा. यहां जागीरदार और सामंत काफी ताकतवर थे. जनता में भी उनका काफी प्रभाव था. इसका असर चुनाव परिणामों में स्पष्ट देखा जा सकता था. 160 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 82 सीटें मिली. मतलब केवल 2 सीटों के बहुमत से सरकार बनाई. जय नारायण व्यास से लेकर माणिक्यलाल वर्मा जैसे तमाम दिग्गज चुनाव हार गए थे. व्यास जोधपुर और जालोर दोनों सीटों से हारे थे.
राजपूत विधायकों का बोलबाला
राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम 1952 में सबसे ज्यादा राजपूत विधायक जीतकर सदन पहुंचे. 160 सीटों में से 54 सीटों पर राजपूत जीते. इसमें से सिर्फ 3 कांग्रेस के टिकट पर जीते. बाकी सभी कांग्रेस के विपक्ष में जीतकर सदन पहुंचे. इधर कांग्रेस प्रदेश में खुद को मजबूत करने की कोशिशें कर रही थी.
जयनारायण व्यास चुनाव हार गए. तो मुख्यमंत्री उनके मंत्रीमंडल के सबसे वरिष्ठ मंत्री टीकाराम पालीवाल को बनाया गया. पालीवार अंतरिम सरकार के दौर में हीरालाल शास्त्री और जयनारायण व्यास, दोनों सरकारों में रेवन्यू मिनिस्टर थे. दिल्ली से लेकर जयपुर तक इस बात की चर्चा शुरु हुई कि क्या व्यास को मुख्यमंत्री बनाया जाए. आखिरकार फैसला हुआ कि अजमेर की किशनगढ़ सीट से व्यास को फिर से विधानसभा भेजा जाएगा. व्यास ने उपचुनाव जीता. मुख्यमंत्री बने. लेकिन प्रदेश में राजपूत विरोधी छवि के चलते कांग्रेस का काफी मुश्किलें हो रही थी.
विधानसभा चुनाव से पहले गठजोड़
हालांकि ऐसा नहीं है कि चुनावों से पहले गठजोड़ की कोशिशें हुई नहीं थी. चुनावों से पहले जब मारवाड़ किसान सभा के साथ समझौता हुआ. उसी वक्त जय नारायण व्यास और द्वारका दास पुरोहित जैसे नेताओं की टिकट बंटवारे को लेकर क्षत्रिय महासभा के साथ वार्ता हुई. लेकिन समझौता हो नहीं पाया.
एक कोशिश महाराजा हनवंत सिंह ने भी की थी. जोधपुर महाराजा हनवंत सिंह ने दिल्ली में कांग्रेस नेता रफी अहमद किदवई से मुलाकात की थी. जोधपुर से वो अपने निजी विमान से दिल्ली गए थे. किसी को इसकी खबर नहीं लगी थी. चुनावों के बाद गठबंधन पर बात हुई थी. हालांकि चुनाव परिणामों के समय ही महाराजा का विमान हादसे में निधन हो गया था. दिल्ली में हुई इस मुलाकात का जिक्र विजय भंडारी ने अपनी पुस्तक राजस्थान की राजनीति में भी किया है. और रिचर्ड सिसन ने अपनी किताब द कांग्रेस पार्टी इन राजस्थान में भी लिखा है.
कांग्रेस के करीब हुए राजपूत लीडर
एक और घटना थी जो राजपूत विधायकों और जागीरदारों को कांग्रेस के नजदीक लाई. वो थी जागीर पुनर्ग्रहण विधेयक. इस मामले में राजस्थान क्षत्रीय महासभा ने दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात कर उनको ज्ञापन दिया था. महासभा का कहना था कि इस मुद्दे पर कोई कानून बने. उससे पहले हमसे भी चर्चा हो. हमारी राय भी जानी जाए. पंडित नेहरू ने यूपी के सीएम गोविंद वल्लभ पंत को वार्ता के लिए नियुक्त किया. पंत ने इस मौके का फायदा राजपूत नेताओं को कांग्रेस के प्रति आकर्षित करने में उठाया.
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फरवरी 1954 में क्षत्रीय महासभा ने एक फैसला लिया. कि उनके संगठन के सदस्य किसी भी राजनीतिक दल में शामिल हो सकते है. थोड़े ही समय बाद राजस्थान के 43 बड़े जागीरदारों ने कांग्रेस में शामिल होने की अपील की. इसमें पोकरण के ठाकुर भवानीसिंह और नवलगढ़ के रावल मदन सिंह भी शामिल थे.
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जय नारायण व्यास भी लगातार कोशिशें कर रहे थे. कुछ समय बाद 22 जागीरदार विधायक भैरोसिंह खेजड़ला के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हो गए. ये 22 विधायक थे, भैरोसिंह कलवा, जूझारसिंह, भानुप्रतापसिंह, भीमसिंह मंडावा, देवीसिंह मंडावा, दुर्लभसिंह, महेंद्र सिंह, कानसिंह, केसरीसिंह, जयसिंह शेखावत, माधोसिंह, मंगलसिंह, मानसिंह महार, प्रतापसिंह, रघुवीरसिंह, बिशनसिंह, सज्जनसिंह, तेजराजसिंह, उम्मेदसिंह, भैरोसिंह खेजड़ला, दिलीपसिंह और विजयसिंह.
राजस्थान में हुए इस सियासी घटनाक्रम से मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास से कई लोग नाराज जरूर हुए. विशेष तौर से जाट नेता. जिनको लगने लगा कि व्यास पार्टी में हमारी ताकत को कम करने राजपूत विधायकों को ला रहे है. इसमें बीकानेर संभाग के प्रभावशाली नेता कुंभाराम आर्य से लेकर मोहनलाल सुखाड़िया और माथुरदास माथुर जैसे दूसरे नेता भी शामिल थे.