Jaipur: बुधवार को पूरे देश में कांग्रेस मौन थी. सात घंटे के मौन सत्याग्रह के जरिये कांग्रेस ने अपने नेता राहुल गांधी के प्रति समर्थन जताया तो केन्द्र की एनडीए सरकार के प्रति विरोध भी जताया. अब सवाल यह उठता है कि जब समर्थन जताने के लिए बयान दिए जाते हैं और विरोध के लिए भी शब्द बाण चलाये जाते हैं, तो मौन के जरिये आखिर कांग्रेस क्या साबित करना चाहती थी? 


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अपने मौन सत्याग्रह के दौरान कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता काली पट्टी बांधकर विरोध जताते हुए भी दिखे. दरअसल कहा जाता है कि कई बार जब कोई आपकी आवाज नहीं सुनता तब मौन को भी हथियार बनाया जाता है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या कांग्रेस ने मौन को हथियार बनाने की? कोशिश की? और सवाल यह भी कि क्या कांग्रेस इसमें कामयाब हो पाई? और सवाल यह भी कि आखिर सियासत में इस मौन के क्या मायने?


कविवर रहीम ने कहा है कि - 'पावस देख रहीम मन, कोयल साधी मौन, अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछत कौन?'


कवि अब्दुल रहीम खानखाना की यह पंक्तियां मौन का महत्व बताने के लिए पर्याप्त हैं.  इसके जरिये वे कहते हैं कि जब आपकी आवाज़ दबाई जा रही है और उसे कोई नहीं सुन रहा तो कई बार मौन हो जाना चाहिए. लेकिन देश-प्रदेश में आज इस मौन से ज्यादा कांग्रेस के मौन की चर्चा रही. दरअसल कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के मोदी वाले बयान के मामले में गुजरात हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया और इस बार विरोध नारे, हो-हल्ले या पैदल मार्च के जरिये नहीं, बल्कि मौन सत्याग्रह के जरिये था. कांग्रेस का कहना है कि राहुल गांधी ने जो बात कही वह सही थी. 


कांग्रेस ने किया मौन सत्याग्रह 


उनकी आवाज़ को दबाने के विरोध में कांग्रेस ने मौन सत्याग्रह किया. पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा और प्रदेश प्रभारी सुखजिन्दर रंधावा की अगुवाई में राजधानी के शहीद स्मारक पर प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम हुआ. रंधावा ने कहा कि अगर ललित मोदी और नीरव मोदी जैसे देश छोड़कर भागने वाले लोगों के खिलाफ़ आवाज़ उठाना भी गलत है क्या? वहीं डोटासरा ने कहा कि राहुल गांधी संविधान, किसान और नौजवान की बात करता है इसलिए उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है.  उन्होंने कहा कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं. 


शहीद स्मारक पर डटे रहे तीनों नेता


मौन सत्याग्रह के जरिये कांग्रेस ने अपना संयम दिखाया. कई नेता सात घंटे एक ही जगह पर डटे रहे. रंधावा और डोटासरा के साथ ही सचिन पायलट, भंवर जितेन्द्र, हरीश चौधरी, सरकार के कई मन्त्री, तीनों सह-प्रभारी समेत कई नेता शहीद स्मारक पर डटे रहे. जहां सचिन पायलट ने इस मौन के जरिये जनता के बीच जाने और लोकतन्त्र की जीत का दावा किया, तो पूर्व मन्त्री हरीश चौधरी ने मौन की उपयोगिता के सवाल पर कहा कि जब देश चुप है तो कांग्रेस का मौन बोल रहा है. 


उधर महेश जोशी ने सीधे एनडीए पर निशाना साधते हुए कह दिया कि बीजेपी और उसके नेताओं से सत्य के प्रति आग्रह कांग्रेस ने किया है.  हालांकि इस आयोजन में कांग्रेस को अपेक्षित भीड़ को लेकर बोलने से नेता बचते रहे. लेकिन जोशी ने कहा कि सत्याग्रह तो सत्य का आग्रह है. और इससे भीड़ का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है. जोशी ने कहा कि अब एक नई लड़ाई शुरू हो गई है और वह है झूठ के खिलाफ़ लड़ाई. 


राजनीतिक तापमान बढ़ा रहे नेताओं के बयान


चुनावी साल में नेताओं के बयान लगातार राजनीतिक तापमान बढ़ा रहे हैं. लेकिन अब कांग्रेस ने अपने मौन के जरिये जवाब देने की कोशिश की है. लेकिन सवाल यह है? कि क्या राजनीति में मौन कारगर है? सवाल यह है? कि क्या मौन के जरिये कांग्रेस अपने विरोधियों को जवाब दे पाएगी.  सवाल यह कि क्या कांग्रेस का मौन राहुल गांधी की आवाज़ बनकर उन्हें मजबूत करेगा? . और सवाल यह भी कि क्या मौन रहकर कांग्रेस अपने विरोधियों को चुप करा सकेगी.


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