Pratapgarh News: राजस्थान का एक ऐसा मंदिर,जहां मनोकामना पूरी करने के लिए अग्नि कुंड पर चलते हैं भक्त
Pratapgarh News: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के अरनोद उपखंड क्षेत्र के निनोर गांव में पद्मावती माता मंदिर के प्रति लोगों की आस्था का आलम ऐसा है कि श्रद्धालु माता का नाम लेकर अग्नि कुंड पर चलना शुरू कर देते है.इसको देखकर हर कोई पहली नजर में अचरज में पड़ जाता है.
Pratapgarh News: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के अरनोद उपखंड क्षेत्र के निनोर गांव में पद्मावती माता मंदिर के प्रति लोगों की आस्था का आलम ऐसा है कि श्रद्धालु माता का नाम लेकर अग्नि कुंड पर चलना शुरू कर देते है.इसको देखकर हर कोई पहली नजर में अचरज में पड़ जाता है, लेकिन माता के प्रति आस्था के चलते अग्नि कुंड में चलने वाले श्रद्धालु को आंच तक नहीं आती है.यहां माताजी के पंडित के अगारों पर निकलने के बाद सभी गाँव वाले इस अग्नि से गुजर कर माता के दर्शन करते है.
बच्चे-बूढ़े,महिलाएं-पुरुष, सभी अंगारों पर नंगे पैर माता के दर्शन के लिए चल रहे है. न कोई आह, न जलने का डर. मन में अग्नि पर इतनी गहरी आस्था कि श्रद्धालु बेखौफ अंगारों पर गुजरते है. हजारों श्रद्धालु दहकते अंगारों पर नंगे पांव इस तरह चलते है,जैसे किसी मखमली गलीचे या फूलों की चादर पर चल रहे हो.
दरअसल,प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे-से कस्बे निनोर में माता पद्मावती का मंदिर है,जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है. यहां मां पद्मावती की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है.किंवदंति है कि प्रतिमा दिन में तीन रुप धारण करती है.इसलिए इसे त्रिरूपधारिणी भी कहते है. इस मंदिर और निनोर कस्बे का उद्गम उत्तर महाभारत काल से माना जाता है. उस काल के प्रसिद्ध चरित्र नल-दमयंती से इस कस्बे का जुड़ाव है.
नल-दमयन्ती का उल्लेख उत्तर महाभारत काल के समय का है. जो करीब 3300 साल पुराना माना जाता है.वर्तमान का निनोर गांव उस समय का नैनावती नाम का समृद्ध नगर था.नेनावती में ही नैनसुख तालाब, पद्मावती मां का मंदिर और मन्दिर के पास गुरु-शिष्य की जीवित समाधि प्रसिद्ध है. मन्दिर आज भी पद्मावती के नाम से ही प्रसिद्ध है.
यहा प्रति वर्ष चैत्र रंग पंचमी को मेला लगता है.इसमे मन्दिर प्रागण में अंगारों की चूल का आयोजन होता है.मन्दिर पुजारी धधकते अंगारो पर चलकर मां पद्मावती के दर्शन करता है.जिसके बाद मेले में आने वाले भक्त अंगारो पर चल मां की प्रतिमा के दर्शन करते है.
इस मंदिर में प्रतिमा को स्थानीय लोग दुर्गा के रूप में भी पूजते है. यहां चंडी का यज्ञ भी होता है, लेकिन यह प्रतिमा कमल पर विराजित है. कहा जाता है कि यह प्रतिमा भगवान विष्णु की पत्नी और धन की देवी लक्ष्मी का रूप है. यह प्रतिमा मां और पुत्र के रूप में है.
देवी की गोद में बालक भी है.यह इस मंदिर की विशेषता है.यहां आने वाले श्रद्धालुओं की भी इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था है.श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां उनकी सारी मुराद पूरी होती है साथ ही चूल पर चलने से वर्ष पर्यंत निरोग भी रहते हैं.
अंगारों पर चलने के वैज्ञानिक तर्क चाहे कुछ भी हो लेकिन इन तर्कों पर भी आस्था भारी पड़ती नजर आती है और यही कारण है कि यहां हर साल लोगों की आस्था लगातार बढ़ती जा रही है.
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