Rajsamand: कांकरोली प्रज्ञाविहार तेरापंथ भवन युगप्रधान आचार्य श्रीमहाश्रमण की सुशिष्या साध्वी मंजुयशा ठाणा 4 के पावन सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस के रूप में मनाया गया.  पर्यूषण पर्व के आठ दिन में श्नमस्कार महामंत्र का अखण्ड जप चला. 


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आध्यात्मिक जप अनुष्ठान में बड़े उत्साह लिया हिस्सा
कार्यक्रम की शुरूआत साध्वी श्रीजी के नमस्कार महामंत्र से हुई. तेरापंथ सभा के विनोद बड़ाला, सूरज जैन, विनोद चोरडीया, बाबूलाल ईटोदिया, सुशील बड़ाला सहित अन्य सदस्यों ने एक समधुर गीत प्रस्तुत किया. साध्वी श्रीजी ने पहले जैन धर्म के चौबिसवें तीर्थकर भगवान महावीर के पूर्व भवों के बारे में विस्तार से बताते हुए नयसार एवं मरिची के भव पर प्रकाश डाला.


स्वाध्याय दिवस पर साध्वी श्री जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- स्वाध्याय का अर्थ है- स्वयं का विशेष अध्ययन तथा अध्यापन करना . ज्ञान प्राप्ति का यह अमोध साधन है . बार-बार आगम व साहित्य का पठन-पाठन से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है और भीतर में नए ज्ञान की प्राप्ति होते हुए नई-नई स्फुरणाएं पैदा होती है और विशेष अन्तरप्रज्ञा का जागरण होता है.


 भगवान महावीर से गौतम स्वामी ने पूछा श्सज्झाएण भंते जीवे किं जनथई यानि स्वाध्याय से जीव क्या प्राप्त करता है। भगवान ने जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा श्हे गौतम! स्वाध्याय से जीवन के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है. 


महर्षि पांताजलि ने लिखा ष्स्वाध्यादिष्ट देता सांप्रयोगश् स्वाध्याय से इष्ट देवता का साक्षात्कार होता है. आगम में स्वाध्याय के पांच प्रकार बताए गए है-वाचना, प्रच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा एवं धर्मकथाष इन पांच प्रकारों पर साध्वीश्री जी ने विस्तृत जानकारी देते हुए हर व्यक्ति को प्रतिदिन सदसाहित्य का गराई से स्वाध्याय करने की प्रबल प्रेरणा दी.


इस अवसर पर साध्वी चिन्मय प्रभा ने स्वाध्याय विषय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी.साध्वी चारु प्रभा ने एक समधुर गीत प्रस्तुत किया. साध्वियों ने निर्धारित विषय पर एक सुमधुर गीत प्रस्तुत किया.
Reporter: Devendra Sharma


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