Sirohi: मुगल काल मे जब अकबर से लोहा लेते हुए अपना स्वराज चित्तौड़ छोड़ कर के कही और अज्ञात स्थान पर शरण लेनी पड़ी थी , तो वह था माउंट आबू का शेर गांव. ऐसा इतिहासकार बताते है कि, अपने अज्ञातवास के समयावधि में महाराणा प्रताप माउंट आबू में दूर-दराज के जंगलों में रह कर घास-फूस की रोटी खाकर के जीवन व्यतीत किया था.


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लेकिन तब से हम और आप सभी महाराणा प्रताप की जीवनी तो खूब पढ़ते -पढ़ाते आए है. लेकिन, किन्तु-परन्तु से लेकर के शायद तक, हम यह भी कोशिश कर जाएं कि, हम जो कहते हैं उसे ठीक उसी रूप में कुछ कर भी पाएं.


अलबत्ता ऐसा ही सबकुछ हो रहा है माउंट आबू में, जहां प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप की जयंती पर उनकी आदमकद प्रतिमा यहीं लगेगी और उनके जीवन से सम्बंधित जानकारी प्रदान करने वाली लाइब्रेरी यहां बनेगी. अफसोस कहें या फिर इसे श्मशान वैराग्य कि, जब जब जिस महापुरूष को जयन्ती आएं. तब तब रस्म अदायगी वाले औपचारिक कार्यक्रम आयोजित करो, तालियां बजवाओ , सबसे बड़े सृजनकर्ता का ताज अपने सिर पर करने वाला काज दूसरे के सिर पर.


राज्यपाल ने किया था महाराणा चौक का नामकरण 


बहरहाल हर साल की तरह इस बार भी वही हाल और चाल नजर आया. चुंगी नाके पर महाराणा चौक जिसका नामकरण स्वयं राज्यपाल अंशुमान सिंह ने किया था. तब से केवल प्रतीकात्मक मूर्ति अवश्य यहां लगी. लेकिन वो कुछ भी नही हुआ जो करने व करवाने की यहां के नेताओं ने कसमें खाई, वादे किए , इरादे भी दर्शाए. लेकिन सब कुछ ढाक के तीन पात , न वह काम हुआ, न ही मिला राम. बस केवल और  केवल थोथा नाम ही नाम. इसलिए यह पूछना आज लाजिमी है , जहां रहे राणा प्रताप वहीं पर उनकी निशानी क्यो नहीं.


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