RSS Chief Mohan Bhagwat Speech: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन राव भागवत ने शुक्रवार को गुरुग्राम में कहा कि विकास का मतलब मन और भौतिक दोनों का समग्र विकास होना चाहिए. वर्ना सब वैभव के बाद भी सुख नहीं मिलता. आजकल सत्य बताने के लिए चुनावी रैलियों में लोग बोलते हैं कि मैंने गरीबी झेली है, मैं आपके कष्ट को समझ सकता हूं. भागवत ने कहा कि भारतीय तरीके से विकास नहीं होने से ऐसा होता है.


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शिक्षा को 3 ट्रिलियन का उद्योग बताना काफी दुखद बात


भारतीय शिक्षण मंडल के विजन फॉर विकसित भारत- (विविभा) 2024 सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि कुछ दिन पहले कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी आए. उन्होंने शिक्षा पर बढ़िया बोला. उसमें 17 तरह की करने लायक बातें निकलीं, लेकिन काम सिर्फ सोचने से नहीं, करने से होता है. उन्होंने कहा कि आज शोध करने वाले बहुत हैं, लेकिन लालफीताशाही की वजह से कुछ कर नहीं पाते. आजकल सारा उद्देश्य पेट भरने का है. यह बहुत दुखद बात है कि लोग शिक्षा को 3 ट्रिलियन का उद्योग बताते हैं. 


16वीं सदी तक भारत हर क्षेत्र में सबसे आगे, फिर क्यों पिछड़े


मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया अब मानती है कि ईस्वी सन 1 से 16वीं सदी तक भारत हर क्षेत्र में सबसे आगे था. हमने बहुत सी चीजें खोजीं, लेकिन फिर हम रुक गए और इस तरह हमारा पिछड़ना शुरू हो गया. लेकिन, उस समय तक हम दुनिया भर को सबको साथ लेकर चलने का उदाहरण दे चुके थे. उन्होंने कहा कि आज समय विकसित भारत की मांग कर रहा है. उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया में बहस छिड़ी है कि विकास चुनें या पर्यावरण. विकास हुआ तो पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई. भारत विकास और पर्यावरण दोनों को साथ लेकर चलता है. 



दुनिया में 4% जनसंख्या वालों को 80 प्रतिशत संसाधन क्यों चाहिए


संघ प्रमुख ने कहा कि आज दुनिया में 4 प्रतिशत जनसंख्या वालों को 80 प्रतिशत संसाधन चाहिए. ऐसे विकास के लिए लोगों को पूरी मेहनत से काम करना पड़ता है. नतीजे न मिलने पर निराशा होती है. ऐसी स्थिति में कभी-कभी कठोर कदम उठाने पड़ते हैं. अपने ही लोगों पर डंडा चलाना पड़ता है. आज की स्थिति में साफ तौर से ऐसा देखा जा रहा है. भारत में 10 हजार वर्षों से खेती हो रही है, लेकिन उर्वरा जैसी समस्या कभी नहीं आई. भागवत ने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान के बीच कोई टकराव नहीं है. दोनों का मकसद मानवता की भलाई है. 


विकास की दृष्टि की समग्रता ही भारत की विशेषता, अन्धानुकरण नहीं 


मोहन भागवत ने कहा कि विकास की दृष्टि की समग्रता ही भारत की विशेषता है. हर भारतवासी को अपना भारत विकसित और समर्थ भारत चाहिए. विकास के कई प्रयोग 2000 सालों में हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि तकनीक आनी चाहिए, लेकिन निर्ममता नहीं होनी चाहिए. हर हाथ को काम मिले. दुनिया हमसे सीखे कि ये सारी बातें साथ लेकर कैसे चलते हैं. अनुकरण करने लायक चीजें ही लें, लेकिन अन्धानुकरण नहीं करना चाहिए. 


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सामर्थ्य होगी तभी दुनिया हमको सुनेगी, 20 साल में बन सकते हैं नंबर-1


भागवत ने जोर देकर कहा कि सामर्थ्य होगी तभी दुनिया हमको सुनेगी. हमें सामर्थ्यवान बनना पड़ेगा. मन, बुद्धि, धन और बल का सामर्थ्य होना चाहिए. हमें भारत को नंबर-1 बनाकर विश्व के सामने प्रतिमान रखना है. हम हर फील्ड में नंबर-1 हों. हम दुनिया को कॉपी न करें बल्कि खुद प्रतिमान बनें. तभी सही मायने में विकसित भारत होगा. संघ प्रमुख ने कहा कि शिक्षा का बाजारीकरण नहीं होना चाहिए. अगर हम ठीक से चलें तो आने वाले 20 साल में हम विश्व में नंबर-1 बन सकते हैं.


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