नई दिल्ली  : उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में एनआईए द्वारा विशेष लोक अभियोजक को हटाए जाने के खिलाफ दायर आवेदन पर सुनवाई से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया कि उन्होंने मामले में कुछ आरोपियों की पैरवी की थी ।


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न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले में सुनवाई से खुद को अलग करते हुए कहा, ‘मैंने मामले में कुछ आरोपियों की पैरवी की थी ।’ न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसपर कहा, ‘‘मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए जो इसे किसी दूसरी पीठ को सौंपेंगे ।’ जनहित याचिका दायर करने वाले हर्ष मंडेर की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यदि वर्तमान पीठ मामले की सुनवाई करने का फैसला करती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है । बहरहाल, न्यायालय ने इस आग्रह को खारिज कर दिया ।


याचिका में आरोप लगाया गया है कि राजग सरकार अभियोजक पर आरोपियों के प्रति ‘‘नरमी’’ बरतने के लिए ‘दबाव’ डाल कर अभियोजक के काम-काज में हस्तक्षेप कर रही है । इसमें आरोप लगाया गया कि कार्यपालिका न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है । जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों ने ‘संभवत:’ अपने ‘राजनीतिक आकाओं’ के निर्देश पर मामले में पूर्ववर्ती विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियन पर दबाव डाला था ।


आरोपपत्र में कहा गया था कि पांडेय ने पुरोहित को आरडीएक्स का इंतजाम करने के निर्देश दिए थे, जबकि प्रज्ञा की मोटरसाइकिल विस्फोट के लिए इस्तेमाल की गई । इसमें आरोप लगाया गया था कि एक अन्य आरोपी अजय राहिरकर ने कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों के लिए धन का इंतजाम किया था । राकेश धावड़े, रमेश उपाध्याय, श्यामलाल साहू, शिवनारायण कालसंग्रा, सुधाकर चतुर्वेदी, जगदीश म्हात्रे और समीर कुलकर्णी अन्य आरोपी हैं। वर्ष 2008 में 29 सितंबर को हुए विस्फोट में चार लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 80 अन्य घायल हुए थे ।