नई दिल्ली: सरकार ने गुरु पूरब के पावन अवसर पर तीन कृषि कानूनों (New Farm Law) को निरस्त करके किसान आंदोलन (Farmers Protest) की आड़ में भारत को अस्थिर करने के लिए काम कर रहे खालिस्तानी (Khalistani Terrorist) और पाकिस्तानी शक्तियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है.


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प्रवासी भारतीय समुदाय और भारत की सुरक्षा एजेंसियां चिंता जताती रही हैं कि किसान आंदोलन का इस्तेमाल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने और सामरिक हितों को चोट पहुंचाने के लिए किया जा रहा था.


पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 11 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में जोर देकर कहा था कि किसान आंदोलन (Farmers Protest) पंजाब के साथ-साथ पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है. पंजाब के तत्काकालीन मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, 'कैप्टन सिंह ने प्रधानमंत्री को आगाह किया कि किसान आंदोलन में पंजाब और देश के लिए सुरक्षा खतरा पैदा करने की क्षमता है. जिसमें पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी ताकतें सरकार से असंतुष्ट किसानों का शोषण करने की कोशिश कर रही हैं.' 


कैप्टन अमरिंदर और बिट्टू ने जताई थी आशंका


कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह कांग्रेस नेता और लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने भी इसी तरह की आशंका जताई थी. बिट्टू ने खालिस्तानियों के हाथों अपने दादा और पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह को खो दिया था. मीडिया से बात करते हुए बिट्टू ने कहा था कि किसान आंदोलन पर निहित स्वार्थों का कब्ज़ा हो गया था. उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से हस्तक्षेप करने और स्थिति को नियंत्रित करने का आग्रह भी किया था. 


द ट्रिब्यून से बातचीत करते हुए बिट्टू ने कहा था, 'आंदोलन नियंत्रण (Farmers Protest) से बाहर हो गया है. किसान नेताओं से मेरी अपील है कि अपनी पकड़ वापस स्थापित करें. स्थिति अस्थिर होती जा रही है क्योंकि किसानों के विरोध का फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है. मैं गृह मंत्री अमित शाह से हस्तक्षेप करने का आग्रह करता हूं.'


सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि सिख फॉर जस्टिस (SFJ) भी विरोध प्रदर्शन में शामिल था. एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने 11 जनवरी 2021 को कहा, 'लोगों के एक बड़े समूह की ओर से शांति को खतरा है. वैंकूवर के संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने पोस्टर लगाए हैं कि विरोध में शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति को 10,000 रूपये का भुगतान किया जाएगा.'


खालिस्तानियों की किसान आंदोलन में घुसपैठ


जनवरी 2021 में ही सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी यही दलीलें दोहराई थीं. जब न्यायधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूछा कि क्या विरोध के पीछे सिख फॉर जस्टिस का हाथ था. इस पर वेणुगोपाल ने कहा, 'इस प्रकार के आंदोलन (Farmers Protest) खतरनाक हो सकते हैं. इन आंदोलनों में हमने कहा है कि खालिस्तानियों ने किसान आंदोलन में घुसपैठ की है. हम इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के साथ कल तक हलफनामा दाखिल कर सकते हैं.' 


प्रदर्शनकारियों की भारत विरोधी भावना 25 सितंबर को तब परिलक्षित हुई, जब भारतीय सेना के एक काफिले को अंबाला में ‘किसानों’ ने रोक दिया और किसान संगठनों के विरोध के दौरान खालिस्तान (Khalistan) समर्थक नारे लगाए गए. 30 से अधिक संगठनों ने संयुक्त रूप से दिए गए भारत बंद के आह्वान पर सैकड़ों किसान अंबाला में एकत्र हुए थे. दंगा रोधी दस्ते और भारी पुलिस बल के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बड़ी मशक्कत से काफिले को बाहर निकाला.


विदेश में बैठे खालिस्तानी जुटा रहे थे संसाधन


प्रवासी भारतीय समुदाय में सक्रिय खालिस्तानी तत्व वर्ष 2020 में खालिस्तानी तत्व किसान आंदोलन (Farmers Protest) जैसा कुछ जल्द ही करने वाले हैं. खालिस्तानी तत्व बहुत पहले से ही संसाधन जुटा रहे थे और अपनी गतिविधियों को तेज कर रहे थे. खुफिया रिपोर्टों से सामने आया था कि किसान आंदोलन के ठीक पहले दुनिया भर में खालिस्तानी तत्वों द्वारा कई ऑनलाइन और ऑफलाइन बैठकें, बाइक रैलियों और कार रैलियों का आयोजन किया जा रहा था. 


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक SFJ सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू ने किसान आंदोलन के नाम पर क्राउडफंडिंग की और अपने लिए पैसा कमाना शुरू कर दिया था. किसान आंदोलन से ठीक पहले, इन समूहों ने पंजाब में व्याप्त जन-भावना का फायदा उठाने के लिए कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में कई कार्यक्रम आयोजित किए.


प्रवासी भारतीय शुरुआत से ही किसान आंदोलन (Farmers Protest) में भारत विरोधी तत्वों की भूमिका को स्पष्ट रूप से देख पा रहे थे. विरोध प्रदर्शनों में खालिस्तानियों और आईएसआई की संलिप्तता को बेनकाब करने के लिए कनाडा में भारतीय संगठनों ने अथक प्रयास किए. फरवरी 2021 में कनाडा में रह रहे भारतीय लोगों के लगभग 350 वाहनों ने भारत सरकार के समर्थन में वैंकूवर में एक 'तिरंगा रैली' निकाली. यह रैली भारतीय गणतंत्र दिवस पर खालिस्तानी प्रदर्शनकारियों की ओर से की गई नाकेबंदी के विरोध में थी. रैली में भाग लेने वालों पर खालिस्तानियों ने शारीरिक हमला भी किया था. 


दिल्ली में 26 जनवरी को की गई हिंसा


रैली का आयोजन भारतीय गणतंत्र दिवस पर खालिस्तानी (Khalistan) रैली के जवाब में भी किया गया था, जिसमें खालिस्तान के झंडे लहराए गए थे. उस खालिस्तानी रैली के मुख्य आयोजकों में से एक पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का संस्थापक मो धालीवाल था, जिसका नाम टूलकिट विवाद में सामने आया था. पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ अपने संबंधों के लिए जाना जाता है. 


एक वीडियो के अनुसार, धालीवाल ने 26 जनवरी को भारतीय वाणिज्य दूतावास के सामने दिए अपने उग्र भाषण में कहा था, 'आपको उस भावना और भाव को समझना होगा, जो खालिस्तान आंदोलन की वजह से किसान आंदोलन (Farmers Protest) से जुड़ रहा है. मैं चाहता हूं कि लोग इसे सुनें. खालिस्तानी लोगों में इसके प्रति इतनी दीवानगी का कारण यह है कि 40-50 साल बाद, हम उस सच्चाई को देख रहे हैं, जिसकी उन्होंने 1970 के दशक में भविष्यवाणी की थी. 1970 के दशक में वे एक स्वतंत्र भूमि चाहते थे, ताकि हमें इस आंदोलन के माध्यम से नहीं रहना पड़े.' 


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इसी तरह के घटनाक्रम अमेरिका में भी घटित हुए. आईएसआई समर्थित सिख फॉर जस्टिस (SFJ) के खिलाफ जांच के लिए भारत ने अमेरिका सरकार से आग्रह किया था. SFJ अपने भारत विरोधी प्रोपगैंडा के लिए कुख्यात है और किसान आंदोलन की शुरुआत से ही हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा था. भारत सरकार ने एसएफजे के ‘रेफरेंडम 2020’ के मामले की जांच के लिए अमेरिका को एक पारस्परिक कानूनी सहायता अनुरोध या म्यूच्यूअल लीगल असिस्टेंस रिक्वेस्ट (एमएलएआर) भेजा था. गौरतलब है कि एसजेएफ सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू ने गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने वाले को इनाम देने की घोषणा की थी.


पन्नू ने किसानों को उकसाने की कोशिश की


पन्नू ने किसान आंदोलन (Farmers Protest) की तुलना सिख दंगों से भी करने की कोशिश की. सिखों को हथियार उठाने और लड़ने के लिए उकसाते हुए एसएफजे सरगना ने प्रदर्शनकारियों को विदेशी नागरिकता देने का भी वादा किया था. उसने आगे कहा कि कानून आपके साथ है और अगर भारत सरकार आप पर उंगली उठाती है तो आपको और आपके परिवारों को संयुक्त राष्ट्र के कानूनों के तहत विदेशों में ले आया जाएगा.


3 फरवरी 2021 को तनमनजीत सिंह धेसी ने हाउस ऑफ कॉमंस में एक सवाल पूछा और कहा कि 'भारत में चल रहे किसान आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटेन के हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है.' उसने सदन से भारत के साथ रक्षा सौदों को समाप्त करने का आग्रह भी किया. तनमनजीत सिंह धेसी और प्रीत कौर गिल पहले भी उनके खालिस्तानी गुटों से नजदीकियां के चलते चर्चा में आ चुके हैं. दोनों ने किसान आंदोलन पर भारत पर हमला करने और ब्रिटेन सरकार से कार्रवाई करने का आग्रह करने के लिए सांसदों का एक पत्र भी प्रायोजित किया था.


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