सोशल मीडिया ने चुराई लाखों नौजवानों की नींद, अब लगाने पड़ रहे हैं हॉस्पिटल के चक्कर
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. तरुण कुमार साहनी से जानिए कि किस तरह सोशल मीडिया के चलते नींद न आने की समस्या उत्पन्न हो रही है.
नई दिल्ली: सोशल मीडिया इन दिनों हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बना गया है. आलम यह है कि अपनी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी से छोटी बात लोग सोशल मीडिया के जरिए साझा करने लगे हैं. ज्यादातर लोग अपने खाली समय का इस्तेमाल सोशल मीडिया में पोस्ट करने या पोस्ट पढ़ने में करने लगे हैं. नतीजतन, व्यक्तिगत जीवन में सोशल मीडिया के बढ़ते हस्तक्षेप ने हमारे शरीर में कुछ कुप्रभाव भी डालना शुरू कर दिए हैं.
इन्हीं कुप्रभावों में एक नींद न आने की समस्या भी है. हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि इस समस्या से परेशान हो चुके लोग इन दिनों अस्पतालों के चक्कर लगा अपनी नींद खोजने की कोशिश करने लगे हैं. सोशल मीडिया के चलते नींद आ आने की समस्या के बारे में हमने इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. तरुण कुमार साहनी से बात की. आइए जानते हैं कि किस तरह सोशल मीडिया के चलते नींद न आने की समस्या उत्पन्न हो रही है.
इस तरह खुद ही नींद को खुद से भगाने में तुले हैं लोग:
तरुण कुमार साहनी के अनुसार, मेडिकल साइंस में नींद की नींद की पूरी प्रक्रिया को स्लीप रिदम बोलते हैं. स्लीप रिदम के दो चरण होते हैं, जिसमें पहला चरण नॉन-रेम स्लीप (NREM) और दूसरा चरण रेम (REM) स्लीप का है. नॉन रेम स्लीप वह प्रक्रिया है जिसमें आप धीरे धीर गहरी नींद की तरफ जा रहे होते हैं. वहीं, जब आप गहरी नींद में चले जाते हैं, उस अवस्था को मेडिकल की भाषा में रेम स्लीप बोला जाता है.
नॉन रेम स्लीप से रेम स्लीप की तरफ जाने के लिए पहली सबसे बड़ी जरूरत है कि दिमाग पूरी तरह से शांत हो. सोशल मीडिया आजकल इसी प्रक्रिया को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है. सोशल मीडिया के चलते, लोगों की नॉन-रेम स्लीप की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है और वह रेम स्लीप यानी गहरी नींद की तरफ नहीं जा पाते हैं. अक्सर, यह भी देखा जाता है कि इस समस्या से परेशान लोग गहरी नींद आने के इंतजार में सोशल मीडिया के इस्तेमाल कर खुद ही अपनी नींद को भगाने में तुले रहते हैं.
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सोशल मीडिया इस तरह नींद को आपसे भगाती है दूर
डॉ. तरुण कुमार साहनी के अनुसार, अच्छी नींद के लिए दिमाग का शांत और एकाग्र होना बहुत जरूरी है. अक्सर हम देखते हैं कि सोने से पहले, लोग अपने बेड रूम की सभी लाइट को बंद देते हैं और अपने मोबाइल पर सोशल मीडिया के पोस्ट चेक कराना शुरू कर देते हैं. लोगों की यह आदत हमारे शरीर मे दो तरह से नकारात्मक प्रभाव डालती है. पहला नकारात्मक प्रभाव सोशल मीडिया में मौजूद कंटेंट की वजह से हमारी नींद पर पड़ता है.
दरसअल, जैसे जैसे हमारा मस्तिष्क शांत और एकाग्र होता है, वैसे वैसे हमे नॉन रेम स्लीप से रेम स्लीप की तरफ जाना शुरू कर देते हैं. नॉन रेम स्लीप को आप आम भाषा में नींद की हल्की झपकी भी बोल सकते हैं. लेकिन, सोशल मीडिया में मौजूद पोस्ट हमारे मस्तिष्क को शांत करने की जगह और तेज से चलाना शुरू कर देते हैं. पोस्ट पढ़ने के बाद, उसके बारे में हम अपनी राय सोंचना शुरू कर देते हैं. जिसके चलते दिमाग के शांत और एकाग्र होने की प्रक्रिया रुक जाती है. जिसका असर हमारी नींद पर पड़ता है.
वहीं, अंधेरे कमरे में मोबाइल फोन पर सोशल मीडिया के पोस्ट पड़ने का दूसरा नकारात्मक असर हमारी आंखों पर पड़ता है. दरअसल, कमरे में पूरी तरह से अंधेरा होने के चलते मोबाइल फोन की तेज रोशनी हमारी आंखों पर पड़ती है. जिसके चलते, आंखे की तंत्रिकाएं दिमाग को भी सक्रिय कर देती है. नतीजतन ऐसा करने से हमारी आंख की रोशनी कमजोर होती है, दिगाम शांत नहीं होता और नींद भी हमसे कोसों दूर चली जाती है.
प्रकृति से दूर कर शरीर को बीमार का घर बना रहा है सोशल मीडिया
डॉ तरुण कुमार साहनी के अनुसार, ज्यादातर लोग सुबह हो या शाम सोशल मीडिया पर लगे रहते हैं. सुबह जागने के बाद, उनका पहला काम मोबाइल पर आए मैसेज और सोशल मीडिया के पोस्ट चेक करना होता है. यदि हम सुबह के समय अपने जीवन से मोबाइल फोन कर निकाल दें तो लोग सुबह जग कर घर से बाहर निकलेंगे, वॉक करेंगे, थोडा फ्रेश एयर लेगें. जिसका सकारात्मक असर हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा.
इसी तरह, दिन में लोग काम के दौरान हर दो मिनट पर अपना मोबाइल फोन और उसमें आए मैसेज पढ़ना शुरू कर देते हैं. ऐसा करने से डिस्ट्रैक्शन पैदा होता है, जिससे हमारा काम, रेस्ट और हमारी स्लीप पर निगेटिव इंपैक्ट पड़ता है. डॉ. तरुण कुमार साहनी की सहला है कि सोशल मीडिया यूज करिए लेकिन एक इंस्टूमेंट की तरह, यह आदम हमारे कंट्रोल में होना चाहिए, उनका हमारे कंट्रोल में नहीं होना चाहिए.