मध्य प्रदेश की भोजपुर विधानसभा सीट रायसेन जिले में आती है.  ये राजधानी भोपाल से ज्यादा दूर नहीं है.  भोजपुर, राजा भोज के बनाए प्रसिद्ध शिव मंदिर और विशाल शिवलिंग के लिए विश्व विख्यात है. इस विधानसभा क्षेत्र की एक और बड़ी पहचान औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप है. यहां पर कुल 2 लाख 18 हजार 195 मतदाता हैं. यहां एक लाख 20 हजार 121पुरुष, 103434 महिला एवं 7 अन्य मतदाता शामिल हैं. इस सीट का कभी पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता स्व. सुंदरलाल पटवा प्रतिनिधित्व करते थे. बता दें कि सुंदरलाल पटवा यहां से तीन बार विधायक रह चुके हैं. अब उनके भतीजे सुरेंद्र पटवा विधायक हैं. लंबे समय से इस सीट पर बीजेपी का कब्ज़ा है.


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2013 में दी थी कांग्रेस को पटखनी
सुरेंद्र पटवा वर्तमान में संस्कृति और पर्यटन मंत्री भी हैं. 2013 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश पचौरी को हराया था. पटवा को जहां 80491 वोट मिले थे तो वहीं पचौरी को 60342 वोट मिले थे. पटवा ने पचौरी को 20 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था.


बैंक ने घोषित किया डिफाल्टर
आम जनता के बीच में बेशक से पटवा परिवार का डंका बजता हो, लेकिन आर्थिक मामलों में यह परिवार अब भी काफी पीछे है. चुनावी बिगुल बजने के साथ ही पटवा परिवार को बैंक ऑफ बड़ौदा की ओर से नोटिस जारी कर विलफुल डिफाल्टर घोषित किया था. बैंक का कहना था पटवा परिवार में कर्ज चुकाने की क्षमता है, लेकिन वह जानबूझकर कर्ज नहीं चुका रहे हैं. 


चुनाव में जीत हो या हार, जाना होगा जेल!
इससे पहले फरवरी 2018 में भी मंत्री सुरेंद्र पटवा पर केस दर्ज हो चुका है. उनके खिलाफ धारा 138 के तहत प्रकरण दर्ज हुआ था. पटवा पर 10 लाख रुपए का चेक बाउंस हो गया था. इंदौर के हरीश ट्रेडर्स ने 2015 में मंत्री सुरेंद्र पटवा को ब्याज पर 10 लाख रुपए दिए थे. चेक बाउंस होने के बाद इंदौर की जिला कोर्ट ने केस दर्ज करने के आदेश दिए थे. माना जा रहा है कि बैंक जल्द ही पटवा पर कोई बड़ी कार्रवाई कर सकती है.


क्या है चुनावी मुद्दा?
2008 के चुनाव की  बात करें तो इस बार भी सुरेंद्र पटवा को जीत मिली थी. पटवा को जहां 42960 वोट मिले थे, तो वहीं राजेश पटेल को 29294 वोट मिले थे. पटवा ने राजेश पटेल तो 13 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. इस इलाके में विस्तार की रफ़्तार बहुत धीमी है. यहां पर बिजली, रोजगार, सड़क और पानी की समस्या है. औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप होने के बाद भी यहां स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिलता. पटवा विधानसभा सीट पर इस बार ये मुद्दे अहम हैं. 


कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी ये सीट
यह सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता थी, लेकिन 1985 में जब सुंदरलाल पटवा यहां से पहली बार चुनाव लड़े, उसके बाद यहां कांग्रेस सिर्फ 2003 में ही चुनाव जीत पाई है.  1967 में अस्तित्व में आई इस विधानसभा सीट पर पहली बार कांग्रेस की जीत हुई. कांग्रेस के गुलाबचंद ने इस चुनाव में जीत हासिल की. गुलाबचंद यहां से लगातार दस साल विधायक रहे.  लेकिन 1985 के बाद इस सीट पर पटवा परिवार का कब्जा हो गया.


कांग्रेस के सुरेश पचौरी के सामने बड़ी चुनौती
बीजेपी के लिए जहां पर यह जीत नाक का सवाल है तो वहीं केंद्र के विभिन्न विभागों की कमान संभाल चुके सुरेश पचौरी के लिए यह चुनाव जीतना बेहद अहम है. यह पहला मौका है जब कांग्रेस ने भोजपुर सीट पर सुरेश पचौरी पर दांव खेला है. पचौरी की राजनीतिक पारी बेशक से लंबी हो, लेकिन चुनाव लड़का उनके लिए नया है. चुनावी जीत क्‍या होती है, इसका अनुभव पचौरी को अब तक नहीं हुआ है. वे पांच बार राज्‍यसभा के सदस्‍य रह चुके हैं. 


पचौरी होंगे कांग्रेस का सीएम चेहरा?
पचौरी के बारे में कहा जा रहा है कि वह विधानसभा चुनावों में जीत की बाजी मार जाते हैं तो कांग्रेस का सीएम चेहरा होंगे. यह सीट जितनी पटवा परिवार की अपनी है, उतनी ही पचौरी की भी. स्थानीय होने के नाते उन्हें चुनावों में फायदा मिलने की पूरी उम्मीद है. 1985 से 1998 तक सुंदरलाल पटवा ने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. इसके बाद 2003 में उनके भतीजे सुरेंद्र पटवा यहां से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े. लेकिन वो कांग्रेस प्रत्याशी राजेश पटेल से हार गए.