नई दिल्ली: मराठा आरक्षण मामले में बाॅम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी.


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एक एनजीओ की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर 50% की समयसीमा तय की थी. ऐसे में हाई कोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ है. दरअसल, बाॅम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण पर मुहर लगा दी थी.


हाईकोर्ट ने सरकार के निर्णय पर मुहर लगाते हुए कहा था कि उसे एक अलग श्रेणी बनाकर सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े मराठों को इस प्रकार आरक्षण देने का अधिकार है, लेकिन न्यायमूर्ति द्वय रंजीत मोरे एवं भारती डांगरे की खंडपीठ ने सरकार द्वारा दी गई 16 फीसदी की सीमा को कम करने का आदेश देते हुए इसे 12-13 फीसदी पर लाने को कहा है.


आपको बता दें कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी मराठा समुदाय को 12-13 फीसदी आरक्षण देने की ही सिफारिश की थी. इससे पहले महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट अर्जी दायर की थी, जिसमें राज्य सरकार ने कहा था कि अगर हाईकोर्ट फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कोई भी अपील आती है तो महाराष्ट्र सरकार का पक्ष सुने बिना सुप्रीम कोर्ट कोई भी फैसला न लें.


मराठों को 16 फीसदी आरक्षण दिए जाने के सरकार के निर्णय के विरुद्ध दायर याचिका पर करीब डेढ़ महीने की बहस के बाद हाईकोर्ट का निर्णय आया था. एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कोर्ट में तर्क दिया था कि सरकार द्वारा किया गया 16 फीसदी आरक्षण का प्रावधान पूरी तरह संविधान के विरुद्ध है. क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई 50 फीसद की सीमा के अधिक नहीं हो सकता. 


उनका कहना था कि महाराष्ट्र में 52 फीसदी आरक्षण पहले से लागू है.16 फीसदी और दिए जाने के बाद यह 68 फीसद पर पहुंच जाएगा. जबकि एक अन्य अधिवक्ता सतीश तलेकर ने इसे संविधन के 102वें संशोधन का उल्लंघन बताया था. जिसमें किसी समुदाय को शैक्षणिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े की श्रेणी में रखने या हटाने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है.


महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार में ही महाधिवक्ता रह चुके श्रीहरि अणे ने भी इसे दो समुदायों के बीच दरार डालनेवाला एवं मराठों को ‘स्थायी बैसाखी’ थमाने वाला करार दिया था.


गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल 29 नवंबर को शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी. यह आरक्षण राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट एवं उसकी सिफारिशों के आधार पर दिया गया था. महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में निर्विरोध आरक्षण विधेयक पारित होने के तीसरे दिन ही राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने उस पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. लेकिन सरकार के इस फैसले को कुछ ही दिनों बाद बाॅम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.