नई दिल्ली: राज्य सभा ने बुधवार को आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान विधेयक (Institute of Teaching and Research in Ayurveda Bill) पारित कर दिया. बिल पर चर्चा के दौरान राज्य सभा सांसद सुभाष चंद्रा (Rajya Sabha MP Subhash Chandra) ने आयुर्वेद को दुनिया में और प्रचारित करने की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के विकास को राष्ट्रीय मिशन बनाना चाहिए. 


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उन्होंने कहा, 'आयुर्वेद एक प्राचीन विज्ञान है जिसका दायरा बहुत बड़ा है. शायद ही ऐसी कोई बीमारी हो जिसका इलाज आयुर्वेद से संभव न हो. कुछ लोग यह कहते हुए इसका विरोध करते हैं कि आयुर्वेद केवल कुछ ही बीमारियों का इलाज कर सकता है, गंभीर बीमारियों का नहीं. यह सही नहीं है. हर रोग का इलाज आयुर्वेद से संभव है.'


राज्य सभा सांसद सुभाष चंद्रा ने कहा, 'हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी से पहले अपने एक बयान में कहा था कि स्वतंत्रता मिलने के बाद आयुर्वेद को जन-चिकित्सा प्रणाली में पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए.' 


उन्होंने आगे कहा, 'कई वक्ताओं ने देश के 150 साल पुराने चिकित्सा संस्थानों की बात की है. निश्चित रूप से ये संस्थान बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. लेकिन समय के साथ इनका आधुनिकीकरण करना जरूरी है, जो कि नहीं हो रहा है. अंग्रेजों के शासन काल में आयुर्वेद संबंधी विज्ञान को लगभग पूरी तरह से खत्म कर दिया गया था.'   


विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए राज्य सभा सांसद सुभाष चंद्रा ने कहा, 'कुछ वक्ताओं ने सदन में कहा कि पिछले एक साल में आयुर्वेदिक दवाइयों का 80 मिलियन डॉलर निर्यात हुआ है. मेरा मानना है कि यह एक साल में 800 अरब डॉलर होना चाहिए. चीन ने आयुर्वेदिक दवाओं के मामले में वैश्विक बाजार में 28% हिस्से पर कब्जा जमा लिया है. जर्मनी और स्विटजरलैंड ने भी आयुर्वेद के क्षेत्र में हमारे देश से ज्यादा काम किया है. हमारे लिए यह शर्मिंदगी की बात है.' 


समस्या की ओर ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा, 'समस्या यह है कि स्वतंत्रता के बाद हमने आयुर्वेद के प्राचीन विज्ञान संबंधी ज्ञान पर ध्यान नहीं दिया और जिसके चलते यह हश्र हुआ है. 2014 में सरकार ने आयुष मंत्रालय बनाया. तभी से देश में आयुर्वेद को पहचान मिली. यही वजह है कि आज यह चर्चा के केंद्र में है.'


राज्य सभा सांसद सुभाष चंद्रा ने पांच सुझाव भी दिए: 
1. चिकित्सीय पौधों की बड़ी पैमाने पर खेती के लिए किसानों को वित्तीय मदद दी जानी चाहिए.  
2. आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण के लिए कच्चे माल को फॉर्मास्युटिकल इंडस्ट्री को भेजे जाने से पहले उसके मानक तय किए जाने चाहिए. 
3. इस क्षेत्र में शोध एवं विकास के लिए बड़े पैमाने पर बजट दिया जाना चाहिए.  
4.आयुर्वेदिक दवाओं की उत्कृष्टता के लिए केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA) खोला. यह प्रशंसनीय कार्य है. मेरा सुझाव यह है कि नेचर केयर और योग को भी इस संस्थान का हिस्सा बना देना चाहिए. .  
5. अंत में, आयुर्वेद केेविकास को राष्ट्रीय मिशन बनाना चाहिए ताकि हम अरबों डॉलर देश के बाहर जाने से बचा सकें. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी. 


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