नई दिल्ली. Supreme Court Promotion Reservation: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्रमोशन में रिजर्वेशन (Reservation in Promotion) के मामले में मंगलवार को सुनवाई की. कोर्ट ने इसे परेशान करने वाला बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC / ST) के लोगों के लिए पदोन्नति में आरक्षण को बंद नहीं किया, भले ही नौकरियों के कुछ वर्गों में उनकी संख्या क्रमशः 15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से अधिक हो गई. 


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से किया सवाल


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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र से पूछा कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने के फैसले को उचित ठहराने के लिए उसने किस तरह के कदम उठाए हैं. इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा है कि वह प्रमोशन में रिजर्वेशन (Reservation in Promotion) के मामले में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व संबंधित डेटा और आंकड़े कोर्ट के सामने रखे. इस मामले में पीठ बुधवार को भी सुनवाई जारी रखेगी.


रिजर्वेशन को कैसे सही ठहराते हैं: सुप्रीम कोर्ट


पीठ ने कहा, 'कृपया सिद्धांतों पर बहस न करें और हमें आंकड़ें दिखाएं. आप बताए कि एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन को कैसे सही ठहराते हैं. निर्णयों को सही ठहराने के लिए आपने क्या प्रयास किए हैं. कृपया निर्देश लें और इस बारे में हमें बताएं.' न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि यदि किसी नौकरी के विशेष संवर्ग में एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण को न्यायिक चुनौती दी जाती है तो सरकार को इसे इस आधार पर उचित ठहराना होगा कि किसी विशेष संवर्ग में उनका अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है और कोटा प्रदान करने से समग्र प्रशासनिक दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा.


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अटॉर्नी जनरल ने इन मामलों का किया जिक्र


सुनवाई की शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने 1992 के इंद्रा साहनी मामले का जिक्र किया, जिसे मंडल आयोग मामले के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा उन्होंने 2018 के जरनैल सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी जिक्र किया. मंडल फैसले में पदोन्नति में आरक्षण से इंकार किया गया था. 


पिछड़े वर्गों से था इंदिरा साहनी के फैसले का संबंध


विधि अधिकारी ने कहा, 'प्रासंगिक बात यह है कि इंदिरा साहनी के फैसले का संबंध पिछड़े वर्गों से था, न कि एससी और एसटी से.' उन्होंने कहा, 'यह फैसला इस प्रश्न से संबंधित है कि क्या प्रत्येक वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाना चाहिए. यह (फैसला) कहता है 'नहीं, ऐसा नहीं दिया जाना चाहिए' क्योंकि तब यह 50 प्रतिशत की सीमा से कहीं अधिक हो जाएगा.' उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समानता की आवश्यकता है और यदि केवल योग्यता ही मानदंड है तो सामाजिक रूप से वंचित, एससी और एसटी प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.


अटॉर्नी जनरल की दलील


अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कि 1975 तक 3.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 0.62 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति सरकारी रोजगार में थे और यह औसत आंकड़ा है. उन्होंने कहा अब 2008 में सरकारी रोजगार में एससी और एसटी का आंकड़ा क्रमशः 17.5 और 6.8 प्रतिशत हो गया, जो अभी भी कम है और इस तरह के कोटा को उचित ठहराते हैं.


पुराने मामले फिर से खोलने नहीं जा रहे: SC


इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर को कहा था कि वह एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन (Reservation in Promotion) देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा, क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं. पीठ ने कहा, 'हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हम नागराज या जरनैल सिंह (मामलों) को फिर से खोलने नहीं जा रहे हैं, क्योंकि विचार केवल इन मामलों को अदालत द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार तय करना था.'


नागराज और जरनैल सिंह संबंधित विवाद में फैसला


2006 के नागराज जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सीलिंग लिमिट 50 फीसदी, क्रीमीलेयर के सिद्धांत को लागू करने, पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए डेटा एकत्र करने और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में देखना होगा. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने 26 सितंबर 2018 को जरनैल सिंह से संबंधित वाद में दिए फैसले में पिछड़ेपन का डेटा एकत्र करने की शर्त हटा दी थी.


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