नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जज जस्टिस आर भानुमति (R Banumathi) भी हमारी न्यायिक व्यवस्था में देरी से न्याय मिलने की पीड़ित रही हैं. रविवार को रिटायर होने जा रही जस्टिस आर भानुमति ने सुप्रीम कोर्ट में आयोजित अपने वर्चुअल विदाई समारोह में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों और जजों के सामने 60 साल पहले अपने बचपन के दिनों के दर्द का खुलासा किया. उन्होंने समारोह में संबोधन के दौरान बताया कि अपने शुरुआती जीवन में वह न्यायिक देरी और जटिल प्रक्रिया का शिकार बनी थीं.


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जस्टिस भानुमति ने बताया कि- 'मैंने अपने पिता को एक बस दुर्घटना में खो दिया, जब मैं 2 साल की थी. उन दिनों हमें पिता की मौत पर मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करना पड़ा. मेरी मां ने दावा दायर किया और अदालत ने फैसला सुनाया, लेकिन हमें मुआवजे की राशि नहीं मिल पाई. न्याय की काफी जटिल प्रक्रियाएं थी. स्वयं, मेरी विधवा मां और मेरी दो बहनें, हम न्यायालय में सुनवाई की देरी और न्यायिक प्रकिया में जटिलताओं के शिकार थे.'


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जस्टिस भानुमति ने बताया कि उनकी माता जी की मेहनत से उनकी तीनों बहनों ने पढ़ाई की और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज की कुर्सी पर बैठकर लोगों को न्याय देने का मुकाम हासिल किया. जस्टिस भानुमति सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ऐसी अकेली जज हैं जो निचली अदालत में जज की कुर्सी से तरक्की करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत की कुर्सी पर पहंचीं.