PFI: सुप्रीम कोर्ट ने देश विरोधी गतिविधियों के लिए प्रतिबंधित संगठन पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ) की याचिका पर सुनवाई से इनकार किया है. पीएफआई ने केंद्र सरकार की ओर से लगाये गए पांच साल के प्रतिबंध को बरकरार रखने के यूएपीए ट्रिब्यूनल के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. दरअसल, ये मामला जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच के सामने लगा. बेंच ने कहा कि पीएफआई को इस मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट आने के बजाए हाई कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए थी. पीएफआई की ओर से वकील श्याम दीवान ने कोर्ट की इस राय से सहमति जताई. इसके बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. इसके साथ ही कोर्ट ने पीएफआई को छूट दी कि वो चाहे तो ट्रिब्यूनल के आदेश को पहले दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं.


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केंद्र सरकार ने लगाया था बैन
पिछले साल 28 सितंबर को केंद्र सरकार ने पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों को UAPA के सेक्शन 3(1) के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए 5 साल के लिए बैन लगा दिया था. सरकार ने पीएफआई के अलावा रेहाब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम कॉउन्सिल, नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल वीमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रेहाब फाउंडेशन केरल पर भी प्रतिबंध लगाया था.


सरकार का कहना था कि इन संगठनों के ISIS और जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश  जैसे वैश्विक आतंकी संगठनों से सम्बन्ध है. पीएफआई के कई संस्थापक सदस्य सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठनों के नेता रहे  हैं. जाहिर है कि पीएफआई और उससे जुड़े संगठन देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता को नुकसान पहुंचाने के मकसद से लगातार  ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों में शामिल रहे हैं.


UAPA ट्रिब्यूनल ने बैन को सही ठहराया
इस साल मार्च में दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस दिनेश शर्मा की अध्यक्षता वाले यूएपीए ट्रिब्यूनल ने भी पीएफआई और दूसरे संगठनों पर लगे बैन को सही ठहराया था. नियमों के मुताबिक किसी संगठन पर  केन्द्र सरकार की ओर से लगाए प्रतिबंध की यूएपीए ट्रिब्यूनल से पुष्टि करानी ज़रूरी होती है. यूएपीए के सेक्शन 3 के मुताबिक किसी संगठन को ग़ैरकानूनी करार दिए जाने के 30 दिन के अंदर इस बारे में जारी नोटिफिकेशन को सरकार ट्रिब्यूनल के पास भेजती है. इसके बाद ट्रिब्युनल ये तय करता है कि क्या वाकई उस संगठन को ग़ैरकानूनी करार दिए जाने के लिए पर्याप्त वजह है.


केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस दिनेश शर्मा को यूएपीए ट्रिब्यूनल का पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया था ताकि  ये ट्रिब्यूनल पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों पर केंद्र सरकार की ओर से लगाये गए प्रतिबंध की समीक्षा कर सके.