TMC vs BJP: पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)के वरिष्ठ नेता एवं सांसद सौगत रॉय ने कहा है कि भाजपा और माकपा के नेता अगर चंद नेताओं की गलतियों के लिये पार्टी पर हमला करने में शालीनता की हद पार करते हैं तो उन्हें इस बात की शिकायत नहीं करनी चाहिये कि उन्हें जूतों से पीटा गया और इलाके से खदेड़ दिया गया. रॉय ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्थ चटर्जी और अनुव्रत मंडल को अलग-अलग मामलों में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किये जाने के बाद पार्टी के प्रत्येक नेता के खिलाफ ‘अपमानजनक हमलों’ से वह भौंचक हैं.


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सौगत राय के बिगड़े बोल


हालांकि, बाद में उन्होंने कहा कि ‘जूते’ वाली टिप्पणी बयानबाजी थी और इसे शब्दश: नहीं लिया जाना चाहिये. एक नुक्कड़ सभा को संबोधित करते हुये रॉय ने कहा, ‘यहां अगर कोई भी भाजपा और माकपा का कार्यकर्ता है तो वह ध्यानपूर्वक सुन ले. पार्टी पर हमला बोलने के दौरान आप में से कोई भी शालीनता की हद को पार करते हुये टीएमसी के प्रत्येक नेता को चोर बताते हैं, इस पर अगर हमारी पार्टी के लोग जूतों से आपकी पिटाई करते हैं, तो इसके लिये हमें दोष न दें .’


भाजपा पर बोला हमला


उन्होंने कहा, ‘हमारे लोग अगर आपको आपके इलाके से भी खदेड़ देते हैं तो इसके लिये भी आप शिकायत नहीं करें.’ रॉय की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुये भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि सेवानिवृत्त प्राध्यापक की इस तरह की टिप्पणी से पता चलता है कि पार्टी में अभद्र भाषा के इस्तेमाल का चलन बढ़ गया है.


'रॉय टीएमसी में अपना कद बढाना चाहते हैं'


मजूमदार ने कहा कि सभ्यता का मुखौटा हटाते हुये सौगत रॉय ने लंपटों की भाषा को अपना लिया है . बहुत जल्दी बंगाल की जनता भ्रष्ट तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ सार्वजनिक रूप से सामने आयेगी और रॉय जैसे नेताओं को इसका परिणाम भुगतना होगा. माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने दावा किया कि इस तरह की टिप्प्णी कर रॉय टीएमसी में अपना कद बढाना चाहते हैं.


टिप्पणी के लिये अफसोस प्रकट किया


उन्होंने कहा, ‘अगर वह हमें धमकी देना चाहते हैं तो मैं उन्हें बता दूं कि हमारे कार्यकर्ता सड़कों पर टीएमसी की गुंडई का सामना करने के लिये तैयार हैं .’ टीएमसी के प्रदेश प्रवक्ता कुणाल घोष ने अपनी पार्टी के नेता का बचाव करने का प्रयास किया . बाद में रॉय ने कहा कि जूते वाली टिप्पणी '1970 के दशक की शुरुआत में नक्सलियों द्वारा इस्तेमाल की गई एक बयानबाजी थी. इसे शाब्दिक रूप में नहीं लिया जाना चाहिए.' हालांकि, बाद में उन्होंने अपनी इस टिप्पणी के लिये अफसोस प्रकट किया.



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(एजेंसी इनपुट के साथ)