Ratan Tata Passes away: 'बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया'. किसी शायर की ये पंक्तियां आज लोगों को खूब याद आ रही हैं. रतन टाटा पंचतत्व में विलीन हो गए. रतन टाटा का अंतिम संस्कार गुरुवार शाम मध्य मुंबई स्थित एक शवदाह गृह में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. मुंबई पुलिस ने उन्हें श्रद्धांजलि और गार्ड ऑफ ऑनर दिया. वर्ली स्थित शवदाह गृह में टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा समेत उनके परिवार के सदस्य और टाटा समूह के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन समेत शीर्ष अधिकारी मौजूद थे. सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक उनकी पार्थिव देह पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की. मुंबई में उनकी पार्थिव देह के अंतिम दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा रहा. 


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पारसी रीति से हुआ अंतिम संस्कार


महाराष्ट्र और झारखंड में एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान हुआ है. उनके पार्थिव शरीर को वर्ली श्मशान घाट ले जाया गया, जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस, कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे सहित अन्य लोग भी शवदाह गृह में उपस्थित थे. शवदाह गृह में मौजूद एक धर्म गुरु ने बताया कि अंतिम संस्कार पारसी परंपरा के अनुसार किया गया. उन्होंने बताया कि अंतिम संस्कार के बाद दिवंगत उद्योगपति के दक्षिण मुंबई के कोलाबा स्थित बंगले में तीन दिन तक अनुष्ठान किए जाएंगे.



कम लोगों को मालूम होगी ये जानकारी


आपको बताते चलें कि पारसी लोगों का अंतिम संस्कार हिंदुओं के दाह संस्कार और मुसलमानों के सुपुर्दे खाक या इसाइयों की तरह दफनाने की प्रथा से काफी अलग तरह से होता है. पारसी लोग मानते हैं कि मानव शरीर प्रकृति का दिया तोहफा है. ऐसे में मौत के बाद उसे प्रकृति को लौटा दिया जाना चाहिए. पूरी दुनिया में पारसी अपने परिजनों का अंतिम संस्कार इसी तरह से करते हैं. इस प्रथा में पार्थिव देह को 'टावर ऑफ साइलेंस' में रखा जाता है.


क्या है टावर ऑफ साइलेंस?


'टावर ऑफ साइलेंस' को आप श्मसान या कब्रिस्तान की तरह वह जगह समझ सकते हैं, जहां पारसी लोग किसी की मृत्यु के बाद उसका शव प्रकृति की गोद में छोड़ देते हैं. यह प्रथा सदियों से पारसी लोगों में चली आ रही है. इसे दखमा भी कहा जाता है. पारसी समुदाय के लोगों के शवों को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर छोड़ने की परंपरा रही है. वहां गिद्ध शव को खा जाते हैं. इसे शव को 'आकाश में दफनाना' भी कहा जाता है. नई पीढ़ी के पारसी अब ऐसे अंतिम संस्कार की प्रथा को कम मानते हैं. इसलिए उनका अंतिम संस्कार मुंबई स्थित एक शवदाह गृह में हुआ.