नई दिल्ली: विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा सितंबर तक कराने के खिलाफ दाखिल याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई के दौरान कहा, 'एक बात हमें ध्यान रखनी होगी कि छात्र अपना कल्याण खुद तय नहीं कर सकते. वो इस योग्य नहीं हैं.' कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में दो बिंदु हैं, एक यह कि राज्य परीक्षा कर सकते हैं, और दूसरा यह कि राज्य परीक्षा का रिजल्ट पहले के अंक के आधार पर जारी कर सकते हैं. 


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यूजीसी की तरफ से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि महाराष्ट्र में परीक्षाओं को ना करवाने का फैसला महाराष्ट्र सरकार की राजनीति से प्रेरित है. उन्होंने कहा कि युवा सेना ने परीक्षाओं के आयोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री का बेटा इसका मुखिया है. इस टिप्पणी के बाद महाराष्ट्र सरकार ने एक बार फिर कोर्ट में कहा कि वह परीक्षा आयोजित नहीं करा सकते. 


क्या राज्य सही कह रहे हैं कि परीक्षाओं के बिना हर छात्र पास करेंगे? क्या इससे नियमों का उल्लंघन नहीं होगा? अगर हम उन्हें किसी भी परीक्षा के बिना छात्रों को पास करने की अनुमति देते हैं, तो क्या इससे समस्याएं नहीं होगी? क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम इस तरीके से व्याख्या किया जा सकता है? 


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मान लीजिए कि UPSC कहे कि वह परीक्षाएं आयोजित कराएगा, तो क्या राज्य कह सकते है कि परीक्षा के बिना सभी छात्रों को पास करें? क्या राज्य आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत परीक्षाओं के मानक के बारे में फैसला ले सकते हैं? क्या राज्य छात्रों को पास करने का फैसला कर सकते हैं? इस पर जवाब देते हुए वकील अरविंद दत्रा ने कहा कि IIT ने भी कहा है कि वह छात्रों को बिना परीक्षा के डिग्री देगा, अगर एक प्रमुख संस्थान ऐसा कर सकती है तो इसका कोई जरूरी कारण होगा. अंतिम परीक्षा न करने से मानक कम नही होंगे. 


वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि बहुत से छात्र कंटेंमेंट जोन में रह रहे है. वहीं दक्षिणी बंगाल में साइक्लोन (Cyclone) की वजह से बहुत से स्कूल कॉलेज में लोगों को ठहराया गया था. इसलिए बंगाल में फिजिकल परीक्षा नहीं कराई जा सकती है. गुप्ता ने यह भी कहा कि जिन छात्रों को अभी अंतिम परीक्षा देनी होती है, उनकी मूल्यांकन का महत्वपूर्ण हिस्सा पहले ही पूरा हो चुका होता है, अन्य परीक्षाओं और अंतिम परीक्षा में कोई अंतर नहीं है. वकील ने कहा कि बहुत से यूनिवर्सिटी का अपना कैम्पस नहीं होता है, उनका परीक्षा केंद्र दूसरी जगह होता है. ऐसे में ट्रासंपोर्ट का इंतजाम कराना भी एक मुद्दा है.


वरिष्ठ वकील दत्ता ने कहा कि महामारी के UGC का परीक्षा कराने का फैसला एकतरफा है. इस पर जस्टिस भूषण ने कहा कि UGC ने दिशानिर्देशों दिया है कि सभी स्वास्थ्य से संबंधित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए, आप यह नहीं कह सकते कि उन्होंने जन-स्वास्थ्य पर विचार नहीं किया है. दिशानिर्देशों में इसका जिक्र है. बताते चलें कि शुक्रवार को पिछली सुनवाई के दौरान छात्रों के वकील अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा कि कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल 'जीवन के अधिकार' का है.


सिंधवी ने आगे कहा था कि कोरोना महामारी विश्वस्तरीय समस्या है, यह एक असाधारण स्थिति है. महामारी से सभी सेक्टर प्रभावित हैं और अधिकतर बंद हैं. ऐसे वक्त में कोई भी रेगुलर परीक्षा के खिलाफ नहीं है, हम महामारी के दौरान परीक्षा के खिलाफ हैं. सिंधवी ने आगे कहा कि UGC ऐसी असाधारण स्थिति के दौरान कोई परीक्षा आयोजित नहीं कर सकता. 


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