Peace Accord With ULFA: असम के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है. आज उल्फा (ULFA) के बातचीत समर्थक गुट, केंद्र और असम सरकार के बीच त्रिपक्षीय शांति समझौता (ULFA Peace Accord) होगा. पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने में लगी केंद्र सरकार को आज एक और बड़ी सफलता मिलने जा रही है. इस समझौते पर नई दिल्ली में साइन किए जाएंगे. उम्मीद है कि इससे पूर्वोत्तर के राज्यों में दशकों पुराने उग्रवाद का अंत हो पाएगा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पूर्वोत्तर की शांति पर मुहर आज?


बता दें कि शांति समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और उल्फा के अरबिंद राजखोवा समर्थक गुट के एक दर्जन से ज्यादा टॉप नेता मौजूद रहेंगे. अधिकारियों के मुताबिक, इस समझौते में असम से लंबे समय से जुड़े राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर गौर किया जाएगा. इसके अलावा समझौते के तहत मूल निवासियों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार भी दिया जाएगा.


उल्फा का कट्टरपंथी धड़ा नहीं माना


जान लें कि परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा गुट का कट्टरपंथी धड़ा इस समझौते का हिस्सा नहीं होगा. क्योंकि वह सरकार के प्रस्तावों को लगातार अस्वीकार करता रहा है. 1979 में उल्फा का गठन किया गया था. हालांकि, विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहने के बाद केंद्र सरकार ने 1990 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था.


शांति समझौते पर कैसे पहुंचा उल्फा?


सूत्रों के अनुसार, राजखोवा ग्रुप के दो प्रमुख नेता- अनूप चेतिया और शशधर चौधरी पिछले हफ्ते से दिल्ली में हैं. वे सरकारी वार्ताकारों के साथ शांति समझौते को आखिरी रूप दे रहे हैं. सरकार की तरफ से उल्फा गुट से बातचीत करने वाले अधिकारियों में खुफिया ब्यूरो के डायरेक्टर तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के एडवाइजर एके मिश्रा शामिल हैं.


पहली बार कब शुरू हुई बातचीत?


बता दें कि परेश बरुआ के नेतृत्व वाले गुट के कड़े विरोध के बावजूद, राजखोवा धड़े ने 2011 में केंद्र सरकार से बिना शर्त बातचीत शुरू की थी. बरुआ के बारे में माना जाता है कि वह चीन-म्यांमार बॉर्डर के पास किसी जगह पर रहता है. 'संप्रभु असम' की मांग के साथ साल 1979 में उल्फा का गठन हुआ था.