लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम अप्रत्याशित रहा. भाजपा की 'केसरिया सुनामी' के आगे सपा समेत सभी विरोधी दलों के पांव उखड़ गये और भगवा दल प्रचंडतम बहुमत के साथ सत्ता में आ गया.


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यह कहा जा सकता है कि इस बार के चुनाव में मंदिर लहर या रामलहर से ज्यादा मोदी लहर थी। 1991 की राम लहर में बीजेप ने 91 सीटें ज्यादा जीती थी और 1980 की इंदिरा लहर से 3 सीटें ज्यादा आई थी. पहली किसी पार्टी को 300 सीटें से ज्यादा मिली, 37 साल पहले जनता पार्टी को 352 सीटें मिली थी तब उत्तराखंड यूपी का हिस्सा था.


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इससे पहले, वर्ष 1991 में ‘राममंदिर लहर’ के दौरान हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 221 सीटें जीती थीं. प्रदेश के इतिहास में वर्ष 1951 को छोड़कर जब कुछ सीटों पर दोहरी सदस्यता की व्यवस्था थी, अब तक केवल वर्ष 1977 में जनता पार्टी को प्रदेश विधानसभा की 425 में से 352 सीटें मिली थीं. उसके बाद 1980 में कांग्रेस को 309 सीटें हासिल हुई थीं. कुल मिलाकर यह तीसरा मौका है जब किसी पार्टी को उत्तर प्रदेश में 300 से अधिक यानी तीन चौथाई सीटें मिली हैं.


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नोटबंदी के बाद हुए इस चुनाव में इस मुद्दे का कोई असर नहीं दिखा और जनता ने बेहद पोशीदा तरीके से भाजपा के पक्ष में वोट करके सूबे में उसे 312 सीटों के साथ अब तक की सबसे बड़ी जीत दिला दी. हालांकि बसपा ने भाजपा की इस अभूतपूर्व जीत को इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी का परिणाम बताते हुए चुनाव आयोग से दोबारा चुनाव कराने की मांग की जिसे चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया. वहीं, सपा अध्यक्ष कार्यवाहक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मायावती की शिकायत पर सरकार से जांच कराने को कहा.


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वर्ष 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 47 सीटें मिली थीं, लेकिन साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उसने प्रदेश में 43.3 प्रतिशत वोट हासिल करके कुल 80 में से 71 सीटें जीती थीं. भाजपा ने मोदी लहर पर सवार होकर आज उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वी सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा को पछाड़ते हुए 403 सदस्यीय विधानसभा में 310 सीटें हासिल करने के साथ दो तिहाई बहुमत के आंकड़े को भी पार कर लिया.