एक ऐसी मजार जहां लोगों के साथ याराना निभाते हैं बिच्छू, जाने पूरी खबर
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एक ऐसी मजार जहां लोगों के साथ याराना निभाते हैं बिच्छू, जाने पूरी खबर

लोग मजार पर चादर चढाने और अगरबत्ती जलाने के साथ-साथ इन बिच्छुओं को हाथ मे उठाकर इनसे खेलते भी हैं. ये मजार 800 साल पुरानी है लेकिन हैरानी की बात ये है कि यहां मौजूद सैकड़ों जहरीले बिच्छु इंसान को अपना दोस्त बना लेते हैं. 

बिच्छू वाली मजार के नाम से जानी जाती है हजरत सैयद शाह शफरुदीन उद्दीन साहब की मजार

विनीत अग्रवाल/अमरोहा: बिच्छू एक ऐसी जहरीली प्रजाती है जिसके डंक मारने भर से इंसान मौत की नींद तक सो सकता है. लोगों में इनका अलग ही खौफ होता है. अगर बिच्छू गलती से दिख भी जाए तो लोगों के शरीर में डर से झुरझुरी दौड़ जाती है. मगर उत्तर प्रदेश के जनपद अमरोहा में एक ऐसी दरगाह है जहां बिच्छू लोगों के बीच रहते हैं. इस दरगाह को लोग बिच्छू वाली मजार के नाम से जानते हैं. वैसे तो ये दरगाह हजरत सैयद शाह शफरुदीन उद्दीन साहब की है मगर ये इसमें रह रहे बिच्छुओं के लिए मश्हूर है. इस मजार पर हर जाति-धर्म के लोग मन्नत मांगने आते हैं. 

 

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लोग मजार पर चादर चढाने और अगरबत्ती जलाने के साथ-साथ इन बिच्छुओं को हाथ मे उठाकर इनसे खेलते भी हैं. ये मजार 800 साल पुरानी है लेकिन हैरानी की बात ये है कि यहां मौजूद सैकड़ों जहरीले बिच्छु इंसान को अपना दोस्त बना लेते हैं. आदमी हो या औरत या बच्चे ही क्यों ना हो ये बिच्छु हर किसा के साथ दोस्ती कर लेते हैं. यहां कदम कदम पर लाखों बिच्छू रेंगते हैं.

मजार के कोने-कोने में चारों तरफ बिच्छुओं की मौजूदगी किसी से छिपी नहीं रहतीऔर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह बिच्छू जहरीले नहीं हैं. माना जाता है कि दरगाह के अंदर ये बिच्छू नहीं काटते लेकिन बाहर निकलते ही ये बिच्छु काट लेते हैं. दरअसल मान्यता यह है कि कोई इंसान इन बिच्छुओं को हफ्ते या दस दिन के लिए बाबा से इजाजत लेकर दरगाह से कहीं बाहर ले जाता है तो वो उसे नहीं काटते. लेकिन समय पर इन्हें वापस ना लौटाने पर ये उसे तुरंत काट लेते हैं.

गौरतलब है कि आज तक यहां आए किसी भी इंसान को बिच्छू ने डंक नहीं मारा है. मजार पर आने वाले लोग बताते हैं कि मजार पर आने वाले लोगों के मन से खुदबखुद बुरे ख्यालात आने बंद हो जाते हैं. ये दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता की भी मिसाल मानी जाती है. यहां  हिंदू-मुस्लिम धर्म के लोग दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं. 

दरगाह के जमीन, छतों, दीवारों और आस-पास के बगीचे के पेड़ों की जड़ों के पास से मिट्टी हटाने पर ढेरों बिच्छू निकलते हैं. कहा जाता है करीब 800 साल पहले ईरान से सैयद सरबुद्दीन सहायवलायत ने अमरोहा में आकर डेरा डाला था. यहां पहले से रह रहे बाबा शाहनसुरूद्दीन ने इस पर एतराज जताया और एक कटोरे में पानी भरकर उनके पास भेजा.

 बिच्छू वाले बाबा ने कटोरे के ऊपर एक फूल रखकर उसे वापस कर दिया और कहा हम इस शहर में ऐसे रहेंगे जैसे कटोरे में पानी के ऊपर फूल. मजार में बिच्छुओं की बदली आदत को कोई हजरत सैयद शाह का चमत्कार बताता है. तो कोई कुदरत का करिश्मा लेकिन जो भी हो ये वाक्या ऐसा है जिसपर आसानी से यकीन करना मुश्किल है लेकिन आंखों देखी बात को भी नकारा नहीं जा सकता. 

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