प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के न्यायिक मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया है कि जब भी उनके सामने नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा और संरक्षा का मामला आए, वे नाबालिग लड़कियों को जुवनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट 2015 के तहत चीफ वेलफेयर  कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के माध्यम से गर्ल्स चिल्ड्रेन होम में भेजें. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में नाबालिग लड़कियों के लिए बनाए गए चिल्ड्रेन होम पर्याप्त नहीं हैं.


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बच्चियों के लिए जल्दी ही चिल्ड्रेन होम खोला जाएगा
यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी तथा जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने काजल और अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. सुनवाई के दौरान सरकार ने जवाबी हलफ़नामा दाखिल कर कोर्ट को आश्वस्त किया है कि जल्दी ही बच्चियों के लिए चिल्ड्रेन होम या तो खुद या एनजीओ के अधीन खोला जाएगा.


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कोर्ट ने इस आधार पर याचिका को निस्तारित करते हुए कहा कि याची को 2015 के एक्ट के तहत सीडब्ल्यूसी (CWC) के माध्यम से गर्ल्स चिल्ड्रेन होम (Girls Children Home) भेजा जाए ताकि एक्ट के तहत युक्तियुक्त आदेश किया जा सके. 


12 जनवरी 2018 के आदेश को दी गई चुनौती 
याचिका दाखिल कर सीजेएम, आगरा के 12 जनवरी 2018 के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें याची को नारी निकेतन भेजा गया. मांग की गई थी कि याची आधार कार्ड (Aadhaar Card) के अनुसार बालिग है. इस कारण उसे पति के साथ रहने की अनुमति दी जाय. शैक्षणिक प्रमाणपत्र के अनुसार याची की जन्म की तारीख 10 मई 2004 है. साथ ही कहा गया था कि यदि पति के साथ भेजना संभव न हो तो उसे गर्ल्स चिल्ड्रेन होम में भेजा जाए.


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