पहाड़ के लिए पलायन बना नासूर, लोक संगीत के जरिए लगाई गुहार, 'तू ए जा रे पहाड़'
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पहाड़ के लिए पलायन बना नासूर, लोक संगीत के जरिए लगाई गुहार, 'तू ए जा रे पहाड़'

पहाड़ छोड़कर दूसरे राज्यों में गए उत्तराखंडियों को वापस पहाड़ लाने के लिए लोक गायक बीके सामंत ने ये नई तान छेड़ी है. धुर लोक संगीत हो या फिर उत्तराखण्ड आंदोलन का क्रांतिकारी उद्घोष इतिहास इस बात का गवाह है कि यहां के लोक गायकों ने वक्त-वक्त पर अपनी गायकी से देवभूमि उत्तराखंड को संवारने में अहम योगदान दिया है

देश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. 400 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम नागरिक हैं.

हल्द्वानी: उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के लिए पलायन किसी अभिशाप से कम नहीं है. यहां के वीरान पड़े गांव पलायन (Migration) की पीड़ा को बयां करते हैं. ऐसे में सवाल सिर्फ यही खड़ा होता है कि आखिर ये पलायन रुके कैसे? हालांकि कई युवाओं ने पहाड़ को दोबारा आबाद करने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं और अब उत्तराखंड के लोक गायक (Folk singer) भी अपने सुरों के जरिए पहाड़ को दोबारा बसाने की अपील कर रहे हैं, जो गांव तीज- त्योहारों पर सजा करते थे , वो आज बेजान और बंजर हो गए हैं. पहाड़ छोड़कर गए लोगों को अब वापस बुलाने के लिए लोक गायक संगीत का सहारा ले रहे हैं.

पहाड़ छोड़कर दूसरे राज्यों में गए उत्तराखंडियों को वापस पहाड़ लाने के लिए लोक गायक बीके सामंत ने ये नई तान छेड़ी है. धुर लोक संगीत हो या फिर उत्तराखण्ड आंदोलन का क्रांतिकारी उद्घोष इतिहास इस बात का गवाह है कि यहां के लोक गायकों ने वक्त-वक्त पर अपनी गायकी से देवभूमि उत्तराखंड को संवारने में अहम योगदान दिया है. सामंत ने पहाड़ की पीड़ा को बोल दिए. उनके गीत 'तू ए जा ओ पहाड़' को खुद सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने लांच किया और पलायन रोकने की उनकी कोशिश की तारीफ भी की.

उत्तराखंड में पलायन की रिपोर्ट बेहद चिंताजनक है. जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. 400 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम नागरिक हैं.

- साल 2011 में उत्तराखंड के 1034 गांव खाली थे.
- साल 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके हैं. 

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राज्य में 405 गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं. प्रदेश के 3.5 लाख से अधिक घर वीरान पड़े हैं, जहां रहने वाला कोई नहीं है. सीएम त्रिवेन्द्र के गृह जनपद पौड़ी में ही अकेले 300 से अधिक गांव खाली हैं. पलायन आयोग के अनुसार, पलायन के मामले में इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिले शीर्ष पर रहे हैं. पलायन करने वालों में 42.2 फीसदी 26 से 35 उम्रवर्ग के युवा हैं.

एक बार फिर से अब लोकगीतों के माध्यम से उजड़ते पहाड़ को दोबारा बसाने की कोशिश हो रही है. 

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