लखनऊ: नागरिकता कानून को लेकर यूपी में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों के देखते हुए पुलिस ने पॉप्यूलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) नाम के संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. यूपी पुलिस के डीजीपी मुख्यालय ने संबंध में राज्य के गृह विभाग को पत्र लिखा है. ऐसा बताया जा रहा है कि गृह विभाग अब केंद्र सरकार के इस संदर्भ में पत्र भेजेगा. नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान प्रदेश में हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई. वहीं डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी कहा गया है कि यूपी सरकार प्रस्ताव लाकर पीएफआई पर बैन लगाएगी. उन्होंने यह भी कहा है कि सिमी के सदस्य पीएफआई में शामिल हैं. इन्हीं लोगों ने यूपी में हिंसा फैलाई है.


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यूपी के डीजीपी ओपी सिंह ने गृह मंत्रालय को इस संदर्भ में चिट्ठी भी लिखी है.



सिफारिश में कहा गया पीएफआई के कई सदस्य पूर्व में प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी के सदस्य रहे हैं. प्रदेश में हिंसा के दौरान इनके 22 सदस्य गिरफ्तार किए गए हैं.  यह संगठन यूपी समेत 7 राज्यों में सक्रिय है. यह संगठन 2010 से ही सक्रिय है और माहौल खराब करने की कोशिश करता रहा है.



अब तक हुई पुलिस कार्रवाई में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से पीएफआई के करीब डेढ़ दर्जन लोगों गिरफ्तार किया गया है. पुलिस जांच में सामने आया है कि सिमी (SIMI) संगठन पर प्रतिबंध लगने के बाद ये लोग पीएफआई में शामिल हो गए थे. गौरतलब है कि यूपी पुलिस ने लखनऊ में हिंसा के फैलाने के मास्टरमाइंड पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) के नदीम (लखनऊ), वसीम (लखनऊ) और अशफाक (बाराबंकी) को गिरफ्तार किया है. ये सभी पीएफआई के सदस्य हैं. 


पुलिस जांच में सामने आया था कि 19 दिसंबर को किए गए हिंसक प्रदर्शनों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ था. पुलिस ने इन लोगों के पास से भारी मात्रा में भड़काऊ सामग्री बरामद की थी. इसके साथ ही पीएफआई की एक अन्य शाखा सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) भी पुलिस के रडार पर है. 


इस्लामिक कट्टरता को बढ़ाने के भी लगते रहे हैं आरोप
पीएफआई खुद को एक गैर सरकारी संगठन बताता है. इस संगठन पर कई गैर-कानून गतिविधियों में पहले भी शामिल रहने का आरोप है. गृह मंत्रालय ने 2017 में कहा था कि इस संगठन के लोगों के संबंध जिहादी आतंकियों से हैं, साथ ही इस पर इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने का आरोप है. पीएफआई ने खुद पर लगे इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया था, लेकिन अकसर इस संगठन को लेकर विवाद होता रहा है.


धर्मांतरण से जुड़े मामलों में भी आता रहा है नाम
पीएफआई ने अपनी वेबसाइट पर खुद को गरीबों, पिछड़ों के लिए काम करने वाला संगठन और फासीवाद के खिलाफ बताया है. पीएफआई की एक राजनीतिक विंग भी है, जिसका नाम एसडीपीआई यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया है. कर्नाटक सरकार इस राजनीतिक संगठन पर भी प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है. यही नहीं कई रिपोर्ट्स में धर्मांतरण से जुड़े मामलों में भी पीएफआई का नाम लिया जाता रहा है.


6 आतंकी घटनाओं में शामिल रहने का था आरोप
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने 2017 में पीएफआई के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने की बात कही थी. इसमें एनआईए की वह जांच रिपोर्ट भी है, जिसमें इस संगठन पर 6 आतंकी घटनाओं में शामिल रहने का आरोप लगाया है. इसके अलावा राज्यों की पुलिस की रिपोर्ट भी एनआईए के पास है, जिसमें इस संगठन पर धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने, आतंकी गतिविधियों में शामिल रहने और जबरन धर्मांतरण का आरोप भी लगा है.