बिना धर्म बताए चुपके से कर लिया था निकाह, कोर्ट से सुरक्षा मांगी तो खुला राज
उत्तराखंड में फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट के तहत यह पहला मामला है. राज्य सरकार ने 2018 में यह कानून लागू किया था. इसमें बिना अनुमति के यदि अब कोई धर्मांतरण या फिर साजिश में शामिल रहता है तो उसे अधिकतम पांच साल जेल की सजा प्रावधान है.
देहरादून: धर्मांतरण में गड़बड़ी को लेकर देहरादून के पटेलनगर कोतवाली में मुफ़्ती सहित चार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. मामले में धर्म परिवर्तन करने वाली युवती और उसके पति को आरोपी बनाया गया है. माना जा रहा है धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत यह राज्य का पहला केस है. पुलिस के मुताबिक एक महिला ने सितंबर में एक मुस्लिम युवक से शादी की थी. इस दौरान उसने कानून के प्रावधानों का पालन किए बिना धर्म परिवर्तन कर लिया था.
इस मामले में महिला और उसके पति के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. उनके चाचा और एक काज़ी को भी पकड़ा गया है. इन्होंने महिला का धर्म बदलवाया था और निकाह कराया था.
सितंबर में धर्म बदल किया था निकाह
दरअसल, देहरादून के पटेलनगर अंतर्गत मेहुवाला के रहने वाले समीर ने इसी वर्ष सितंबर माह में एक युवती से निकाह किया था, लेकिन निकाह से पहले धर्म परिवर्तन के लिए जिला प्रशासन को कोई जानकारी नहीं दी गई थी. निकाह के बाद जब युवक ने सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तब यह बात सामने आई कि धर्म परिवर्तन के लिए बनाए गए कानून का पालन नहीं किया गया. हाई कोर्ट के निर्देश पर दिसंबर की शुरुआत में सीओ पटेलनगर अनुज कुमार ने मामले की जांच शुरू की थी, जिसके बाद कुल चार लोगों के खिलाफ धारा 3/8/12 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.
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केस की विवेचना जारी, सीओ कर रहे जांच
एसपी सिटी श्वेता चौबे ने कहा कि धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में सजा का प्रावधान भी है. इसमें कम से कम 3 माह एवं अधिकतम पांच साल की सजा के साथ आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है. इसके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है वो है धर्म परिवर्तन से पहले जिला प्रशासन को जानकारी देना. मामले में फिलहाल विवेचना जारी है और सीओ इसकी जांच कर रहे हैं. वहीं इस मामले एडवोकेट आशीष नौटियाल ने कहा कि फिलहाल इस मामले में मुकदमा तो दर्ज हो चुका है, लेकिन देखना होगा पुलिस अपनी जांच में और किस तरह के तथ्य शामिल करती है ताकि पुलिस की कार्रवाई एक नजीर बन पाए.
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उत्तराखंड में क्या है कानूनी प्रावधान?
उत्तराखंड में फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट के तहत यह पहला मामला है. राज्य सरकार ने 2018 में यह कानून लागू किया था. इसमें बिना अनुमति के यदि अब कोई धर्मांतरण या फिर साजिश में शामिल रहता है तो उसे अधिकतम पांच साल जेल की सजा प्रावधान है. सरकार ने ऐसे धर्मांतरण को शून्य भी घोषित करने का प्रावधान कर दिया है.
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