कानपुर शूटआउट में घायल सिपाही ने बयां की 8 पुलिसवालों की शहादत की पूरी कहानी, यहां पढ़ें
पुलिस के पास ऐसे पर्याप्त मात्रा में हथियार नहीं थे. वहीं गैंगस्टर विकास दुबे ने अपने गुर्गों के मिलकर पूरी तैयारी कर रखी थी. अजय सिंह सेंगर को भी इस शूटआउट में तीन गोलियां लगी थीं. फिलहाल वह खतरे से बाहर हैं.
कानपुर: कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत आने वाले बिकरू गांव में 2 जुलाई की रात पुलिस टीम पर गैंगस्टर विकास दुबे और उसके साथियों द्वारा किए गए हमले का सच धीरे-धीर सामने आ रहा है. इस शूटआउट में घायल बिठूर थाने के सिपाही अजय सिंह सेंगर ने पूरी कहानी बयां की है.
अजय सिंह के मुताबिक उस रात पुलिस एनकाउंटर विकास दुबे के एनकाउंटर के इरादे से नहीं बल्कि उसे गिरफ्तार करने बिकरू गांव गई थी. पुलिस के पास ऐसे पर्याप्त मात्रा में हथियार नहीं थे. वहीं गैंगस्टर विकास दुबे ने अपने गुर्गों के मिलकर पूरी तैयारी कर रखी थी. अजय सिंह सेंगर को भी इस शूटआउट में तीन गोलियां लगी थीं. फिलहाल वह खतरे से बाहर हैं.
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बिकरू गांव में हुए इस शूटआउट के चश्मदीद सिपाही अजय सिंह सेंगर ने बताया कि 2 तारीख की रात जब वह अपने थाने में बैठे हुए थे तो करीब रात के 12:00 बिठूर एसओ कौशलेंद्र प्रताप सिंह ने उनसे कहा कि एक दबिश के लिए चलना है. अजय सिंह सेंगर के मुताबिक, ''हम लोग चल दिए और हमें शिवली मोड़ पर दूसरे थानों का काफिला मिला. चौबेपुर, शिवराजपुर, बिठूर और बिल्हौर सीओ साहब (शहीद देवेंद्र मिश्रा) का काफिला मिला.''
सिपाही अजय पाल ने आगे बताया, ''बिकरू गांव से पहले हम लोगों ने अपनी गाड़ियों की लाइटें बंद कर दी. दबिश डालने के दौरान यह किया जाता है. हम लोग बिकरू गांव से पहले ही अपनी गाड़ियां खड़ी करके पैदल-पैदल दबिश वाले ठिकाने पर पहुंचे. रास्ते में JCB मिली तो हमने उसको पार किया. समय रात के 12:30 या 12:45 हो रहा होगा.''
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सिपाही अजय ने आगे बताया, ''जेसीबी वाले स्थान से विकास दुबे के घर तक की दूरी ज्यादा थी. उसके ठिकाने के अंदर 20 -30 लोग पहुंच गए थे. अचानक ऊपर से एक आदमी दिखाई दिया. सैंडो बनियान पहने हुए था. अखबार में फोटो देखकर मुझे याद आया कि यह तो विकास दुबे ही था. उसको मैं पहले नहीं पहचानते था. उसने पुलिस टीम को देखकर पकड़ो-पकड़ो चिल्लाया और फायरिंग होने लगी. लगभग एक समय में 30 से 40 गोलियां गिर रही थीं.''
अजय सिंह ने बताया कि पहला फायर उनको लगा और गए. फिर किसी तरह हिम्मत जुटाकर उठे. उन्होंने बताया, ''मेरे पास अंगोछा था तो मैंने उसको कमर में बांधा. एक दीवार की आड़ ली. साथ में साहब (बिठूर एसओ कौशलेंद्र प्रताप सिंह) और अजय कश्यप भी दीवार की आड़ में थे. अजय कश्यप को हाथ में गोली लग चुकी थी. साहब के पैर और हाथ में गोली लग चुकी थी. जहां हम खड़े थे वहां सेफ जोन नहीं था. तब तक आवाज आई बम मारो. हम लोगों ने बगल में एक खंडहर टाइप मकान में आड़ लिया. फिर गली होते-होते गाड़ी के पास पहुंचे.''
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बिठूर सिपाही अजय सिंह ने आगे की कहानी बताई. उन्होंने कहा, ''एसओ साहब ने सभी अधिकारियों को फोन किया. जब अचानक से फायरिंग शुरू हुई तो सब इधर-उधर हो गए. रात में कोई टारगेट नहीं मिल रहा था, गोलियां कहां से आ रही हैं.
बिकरू गांव में जब हम गए तो वहां लाइट नहीं थी. हम 30 से 40 लोग थे, जिस तरीके से गोली लोड करने की आवाज आ रही थी उससे लगा कि वे 20 से 25 लोग थे.''
अजय सिंह ने बताया, ''जब मैं घुसा तो विकास दुबे अपने छज्जे पर खड़ा था. तीनों साइड से छत पर लोग खड़े थे. गलती से बिल्हौर सीओ साहब वहां खुद गए. विकास के मामा के घर के पास और सीओ साहब के साथ जो हुआ सबने जाना. वे लोग बोल रहे थे कि बम मारो, बम मारो. यहां छिपा है, वहां छिपा है, यह गिर गया है. जब मैं घायल होकर गाड़ी के पास पहुंचा तब तत्कालीन चौबेपुर थानाध्यक्ष विनय तिवारी मिले. दबिश के समय विनय तिवारी पीछे थे.''
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