नई दिल्ली: टेंट में लगी थी आग... उस आग में देश के पहले प्रधानमंत्री समेत करीब 100 लोगों की जान फंसी हुई थी. चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था. तब  14 साल के एक बच्चे ने बहादुरी दिखाई. ऐसी बहादुरी दिखाई कि वो आने वाले भविष्य के लिए वीरता और जीवटता की मिसाल बन गई. इसी मिसाल ने वीरता और राष्ट्रीय बाल पुरस्कारों को शुरुआत की. आइए जानते हैं पहले वीरता पुरस्कार जीनते वाले हरिश्चंद्र मेहरा की कहानी...


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ये बच्चा ना होता, शायद नहीं होती वीरता पुरस्कारों की शुरुआत
घटना 2 अक्टूबर, 1957 की है. जब गांधी जयंती मौके पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रदर्शन देख रहे थे.  नेहरू उस वक्त कुछ विदेशी मेहमानों के साथ आतिशबाजी का आनंद ले रहे थे. तभी कुछ चिंगारियों की वजह से टेंट में आग लग गई. इस कार्यक्रम में मौजूद 14 साल के हरिश्चंद्र मेहरा बिना सोचे टेंट की पोल पर चढ़ गए. अपनी स्कॉउट चाकू की मदद से शामियाने को फाड़कर लोगों को बाहर निकालने की जगह बनाई. 14 साल के बच्चे की बहादुरी से आग में फंसे प्रधानमंत्री समेत 100 लोगों की जान बच गई. 


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 तीन मूर्ति भवन में किया गया सम्मानित
इस घटना के बाद हरिश्चंद्र मेहरा देश के लिए हीरो बन गए. कुछ दिनों बाद जगजीवन सिंह (तब के रेल मंत्री) ने उन्हें एक सर्टिफिकेट दिया. पीएम नेहरू ने भी कहा कि ऐसे बच्चों को सम्मानित किया जाना चाहिए. घटना के तीन महीने बाद हरिश्चंद्र को बताया गया कि उन्हें वीरता पुरस्कार मिल रहा है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 4 फरवरी 1958 को एक स्पेशल प्रोग्राम रखा गया. तीन मूर्ति भवन में पीएम नेहरू  ने उन्हें सम्मानित किया. इतना ही नहीं 26 जनवरी 1959 को हरिश्चंद्र देश के पहले आम नागरिक भी बने, जो गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए. उन्हें हाथी पर बैठाकर घुमाया गया. 


बाद में गुमनाम हो गए हरिश्चंद्र
इस अवॉर्ड के बाद धीरे-धीरे हरिश्चंद्र गुमनाम हो गए. उनके परिवार को आर्थिक तंगी ने घेर लिया. पढ़ाई छोड़नी पड़ी. हालांकि, वह आगे चलकर UPSC में बतौर क्लर्क काम करने लगे. बाद में कंट्रोलर ऑफ पब्लिकेशन में उनका तबादला कर दिया गया. जानकारी के मुताबिक, साल 2004 में हरिश्चंद्र रिटायर हो गए.


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