टाइम कैप्सूल काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है.
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अयोध्या: लंबी लड़ाई और कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के बाद 5 अगस्त वो शुभ घड़ी है जब राम नगरी अयोध्या में भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी. इस दौरान मंदिर की नींव के 2000 फीट नीचे टाइम कैप्सूल भी रखा जाएगा ताकि भविष्य में यदि कोई मंदिर के इतिहास का अध्ययन करना चाहे तो उसे केवल राम जन्मभूमि से संबंधित तथ्य मिलें. इसकी जानकारी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने दी.
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अब सवाल उठता है कि आखिर टाइम कैप्सूल क्या होता है? इसे जमीन के नीचे गाड़कर क्या फायदा होगा और क्या ये पहली बार है जब किसी मंदिर या फिर धरोहर के नीचे टाइम कप्सूल को रखा जा रहा हो?
क्या होता है टाइम कैप्सूल?
टाइम कैप्सूल आकार में एक कंटेनर की तरह होता है, इसे मुख्य रूप से तांबे के इस्तेमाल से बनाया जाता है. टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम और तापमान का सामना करने में सक्षम होता है. इसे किसी ऐतिहासिक स्थल या स्मारक की नींव में काफी गहराई में दफनाया जाता है. काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है. टाइम कैप्सूल के जरिए उस ऐतिहासिक स्थल या स्मारक की भविष्य में पहचान साबित करना आसान होता है.
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टाइम कैप्सूल को रखे जाने का मकसद
टाइम कैप्सूल को जमीन के इतनी नीचे दफनाने का मकसद सीधे तौर पर उस स्थान से जुड़े इतिहास को सुरक्षित रखना है. यह एक तरह से आने वाली पीढ़ी को संबंधित जगह की जानकारी और महत्ता को बताने की कोशिश होती है. टाइम कैप्सूल से भविष्य में किसी भी युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिलती है.
गौरतलब है कि इससे पहले भी टाइम कैप्सूल को देश के अलग-अलग स्थानों पर रखा जा चुका है. जिसमें प्रमुख नाम दिल्ली का लाल किला, कानपुर का IIT कॉलेज और कृषि विश्वविद्यालय है. टाइम कैप्सूल का इस्तेमाल दुनिया के कई दूसरे देश भी कर चुके हैं.
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