Mahakumbh 2025: दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्‍यात्‍म का मेला प्रयागराज में संगम किनारे सज रहा है. इस बार महाकुंभ की भव्‍यता देखने लायक होगी. करोड़ों की संख्‍या में श्रद्धालु यहां संगम में डुबकी लगाने आते हैं तो बड़ी संख्‍या में लोग यहां रहकर एक महीने का कल्‍पवास भी करते हैं. महाकुंभ में श्रद्धालुओं को कल्‍पवास कराने का काम यहां के तीर्थपुरोहित प्रयागरवाल करते हैं. सैकड़ों साल से संगम किनारे पूजा अर्चना करा रहे पंडों के पास देशभर के लोगों का बही खाता है.   


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500 साल की वंशावली का लेखा जोखा  
वैसे तो सभी धार्मिक स्‍थलों पर तीर्थ पुरोहित विराजमान रहते हैं, लेकिन प्रयागराज के तीर्थपुरोहित बिल्‍कुल अलग हैं. यहां के तीर्थपुरोहितों से मुलाकात कर ली तो ये आपका नाम पता सहित पूरी वंशावली बता देंगे. प्रयागराज के पंडों के पास देश विदेश में रहने वाले भारतीयों की 500 वर्षों की वंशावली रखी है. इनके पास कई पीढ़‍ियों के हस्‍तलिखित दस्‍तावेज आज भी मिल जाएंगे. हर पंडों के अपने कार्य क्षेत्र अ‍लग-अलग हैं. इनके पास हर जिले और गांव का डेटा मिल जाएगा. 


उच्‍च कोटि के ब्राह्मण होते हैं प्रयागवाल 
इन पंडों को पहले तीर्थ गुरु के नाम से भी जानते थे. तीर्थपुरोहित धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करवाते थे. एक समूह में होने की वजह से इनको प्रयागवाल कहा जाने लगा. प्रयागवाल उच्चकोटि के ब्राह्मण होते हैं. इनमें सरयूपारी और कान्यकुब्ज दोनों आते हैं. इनके पास कौन यजमान कहां से आया, इसका पूरा बही खाता इनके पास होता है. यजमानों के लेखा जोखा रखने का काम ये प्राचीन काल से करते आ रहे हैं. 


रामायण और महाभारत काल से चली आ रही परंपरा 
तीर्थ पुरोहितों की यह परंपरा रामायण काल और महाभारत काल से चली आ रही है. समय के साथ पीढ़ियां तो बदली, इसका विस्तार तो बढ़ा लेकिन परंपराएं जस की तस हैं. मान्यता है कि त्रेतायुग में चौखंडी बारह खंभा के निवासी मिश्र परिवार के पूर्वज भगवान राम के तीर्थ पुरोहित थे. जिस स्थान पर राम जी ने गंगा स्नान किया उसका नाम रामघाट रख दिया गया. राम जी के आगमन और स्नान का आज भी बहुत महत्व है. हर वर्ष देवोत्थान एकादशी पर प्रयागवाल सभा की तरफ से प्रभु राम की यात्रा भी निकाली जाती है. 


 



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