Mahakumbh 2025: महाकुंभ में कौन करता है सबसे पहले `शाही स्नान`, जानें इसके पीछे का पौराणिक रहस्य

Mahakumbh 2025: हर 12 साल में जब भी महाकुंभ लगता है तब शाही स्नान का सबसे पहला मौका नागा साधुओं को मिलता है. शास्त्रों में भी यह बताया गया है कि महाकुंभ में शाही स्नान का सर्व प्रथम अधिकारी एक मात्र नागा साधुओं का है. जानते हैं क्यों....

प्रीति चौहान Dec 06, 2024, 11:14 AM IST
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महाकुंभ 2025

साल 2025 के जनवरी महीने में महा कुंभ का आरंभ होने वाला है.  पौष माह की पूर्णिमा से शुरू होकर महाकुंभ महाशिवरात्रि पर समाप्त होगा.13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हो जाएगी और 26 फरवरी को महाकुंभ का आखिरी दिन होगा.  साल 2025 में लगने वाला यह महा कुंभ 12 वर्षों के बाद आयोजित होने जा रहा है.  ऐसे में इसका महत्व और भी बढ़ जाता 

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कुंभ मेला

 कुंभ मेला भारतीय परंपरा और आस्था का प्रतीक है, जो विश्व भर के लोगों को प्रेरित करता है. कुंभ मेला आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ भारतीय परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसका उल्लेख भारतीय महाकाव्यों में पाया जाता है. कुंभ हो या महाकुंभ, नागा साधुओं का इसमें खास स्थान होता है. आइए जानते हैं कि नागा साधु महाकुंभ में सबसे पहले स्नान क्यों करते हैं.

 

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हिंदू धर्म में महाकुंभ

 हिंदू धर्म में महाकुंभ मेला धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है. इसके  साथ ही यह भारत वासियों की आस्था का प्रतीक भी है.  इस भव्य मेले का मुख्य आकर्षण शाही स्नान माना जाता है.  जिसमें सबसे पहले स्नान का अधिकार नागा साधुओं को दिया जाता है। इसके पीछे धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मान्यताएं‌ हैं. 

 

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महाकुंभ में नागा साधु

महाकुंभ में नागा साधुओं के सबसे पहले शाही स्नान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.  नागाओं का शाही स्नान धार्मिक, आध्यात्मिक ऊर्जा और संस्कृति का संगम माना जाता है. शाही स्नान की परंपरा महाकुंभ के अद्भुत महत्व की गहराई को उजागर करती है.

 

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ऐतिहासिक कारण (historical reasons)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नागा साधुओं की परंपरा आदिकाल से लगातार चली आ रही है.  नागा साधु समाज सुधार और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का त्याग कर तपस्या में लीन रहते हैं.  प्राचीन समय में नागा साधु क्षत्रिय धर्म को भी निभाते थे और धार्मिक स्थलों की रक्षा करते थे.यही कारण है इन्हें सबसे पहले स्नान का अधिकार देकर सम्मानित किया जाता है.

 

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धार्मिक कारण (religious reasons)

नागा साधुओं के महाकुंभ में पहले स्नान करने के पीछे धार्मिक कारण भी है. धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की रक्षा करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ था.  इस दौरान अमृत की बूंदें कुंभ के चार स्थानों पर गिरीं थी.  नागा साधुओं को भगवान शिव का अनुयायी माना जाता है. वह भगवान शिव की तपस्या और साधना के कारण इस स्नान को सबसे पहले करने के अधिकारी बनते हैं. उनका स्नान धर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रारंभिक केंद्र माना जाता है.

 

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आध्यात्मिक महत्त्व (spiritual significance)

नागा साधुओं का जीवन एकदम अलग होता है. ये जंगलों में या कहीं पहाड़ों कंदराओं में निवास करते हैं. नागा साधु अपनी तपस्या और साधना के लिए जाने जाते हैं.  सांसारिक मोह माया से दूर होते हैं. साधु साधना और वैराग्य के लिए जाने जाते हैं. वे वस्त्र नहीं पहनते हैं केवल भस्म से अपने शरीर को ढकते हैं.  उनका शाही स्नान कुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है.  मान्यता है कि उनके स्नान से संगम के जल में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है.

 

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समाज में प्रभाव (influence in society)

नागा साधुओं का स्नान सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था को जगाता है.  वहीं यह परंपरा भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता को दर्शाता है.  उनके स्नान के बाद आम श्रद्धालुओं को पवित्र स्नान की अनुमति दी जाती है जो शुद्धिकरण और मोक्ष का मार्ग माना जाता है.

 

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डिस्क्लेमर

यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं.कंटेंट का उद्देश्य मात्र आपको बेहतर सलाह देना है. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.  इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं.

 

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