प्रयागराज: 2025 का महाकुंभ कई मायनों में विशेष होने वाला है. प्रयागराज महाकुंभ में एससी-एसटी समाज से 71 लोगों को महामंडलेश्वर की उपाधि जूना अखाड़ा द्वारा दी जाएगी. इनके महामंडलेश्वर बनने के बाद इन सभी को अखाड़े के मठ-मंदिरों की जिम्मेदारी सौंप दी जाएगी. जिन संतों को महामंडलेश्वर बनाया जाएगा उन्होंने दो से तीन साल पहले ही अखाड़े में संन्यास धारण किया था. 


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कहां के संतों को दी जाएगी महामंडलेश्वर की उपाधि
गुजरात के 15, महाराष्ट्र के 12, छत्तीसगढ़ के 12
झारखंड के 9, मध्य प्रदेश-केरल के आठ-आठ
ओडिशा के 7 एससी-एसटी समाज के लोगों को मिलेगा पद 


एससी-एसटी समाज के 500 लोग
उपाधि मिलने के बाद ये महामंडलेश्वर हरिद्वार, नासिक, के साथ ही उज्जैन, प्रयागराज, वाराणसी, कोलकाता और अहमदाबाद, गांधीनगर समेत देश के अलग अलग शहरों में स्थित अखाड़े के मठ-मंदिरों की जिम्मेदारी लेंगे. वहीं संन्यास की दीक्षा एससी-एसटी समाज के 500 लोगों को दी जाएगी.


इसके पहले अनुसूचित जाति के लोग बने महामंडलेश्वर 
जूना अखाड़ा ने 2018 में इसके पहले अनुसूचित जाति के कन्हैया प्रभुनंद गिरि को महामंडलेश्वर पद दिया और 2021 में एससी समाज के संतों को हरिद्वार कुंभ में 10 महामंडलेश्वर बनाया था. अप्रैल 2024 में महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु तो वहीं कैलाशांनद गिरी को महामंडलेश्वर उपाधि सौंपी गई. गुजरात के साइंस सिटी सोला अहमदाबाद में मंगल दास ले लेकर प्रेम दास, हरि प्रसाद व मोहन दास बाबू को महामंडलेश्वर बनाया गया.


कैसे बनाए जाते हैं महामंडलेश्वर और क्या होता है अखाड़ा? 
पहले आश्रम के अखाड़ बेड़ा कहलाते थे यानी साधुओं का जत्था जिनमें पीर हुआ करते थे लेकिन अखाड़ा शब्द मुगलकाल से अधिक इस्तेमाल में आया. हालांकिन अलख शब्द से ही 'अखाड़ा' शब्द निकलने के बारे में भी कहा जाता रहा है. जानकार साधुओं के अक्खड़ स्वभाव से अखाड़ा नाम को जोड़ते हैं. वहीं, मान्यता है कि जिस समय आदि शंकराचार्य धर्म प्रचार हेतु भारत भ्रमण पर निकले उसी समयावधि में उन्होंने अखाड़े तैयार किए. शैव से लेकर वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के कुल 13 अखाड़े फिलहाल देश में हैं. 


कितने आखाड़ों को मान्यता 
मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों के संत, महंत के साथ ही महामंडलेश्वर को कुंभ के मेले में सुविधा तो दी ही जाती है इसके साथ ही उन्हें पेशवाई में निकलने का अवसर भी दिया जाता है. साल 2016 में उज्जैन 2016 में हुए कुंभ में किन्नर अखाड़े की खूब चर्चा होती है, तभी यह अखाड़ा अस्तित्व में आया था. हालांकि, अखाड़ा परिषद ने उसे मान्यता देने से मना किया लेकिन आगे चलकर श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के हिस्से के रूप में किन्नर अखाड़ा शामिल कर लिया गया. वैसे मान्यता देने के संबंध में विरोध जारी है. फिलहाल, तीन संप्रदायों के अखाड़े हैं जहां महामंडलेश्वर का पद है. इनमें शैव , वैष्णव संप्रदाय और उदासीन संप्रदाय का अखाड़ा आता है. जिसमें शैव संप्रदाय के सात अखाड़े और वैष्णव के तीन आखाड़े हैं. उदासीन संप्रदाय के भी तीन अखाड़े ही हैं.


अब जानिए, अखाड़ों में प्रवेश के बाद किन पदों पर रहते हैं
अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर के साथ ही महंत पद होता है. इन तीन प्रमुख पदों के अलावा काम के अनुसार पद दिए जाते हैं जेसे कि कोठारी, भंडारी, थानापति, कोतवाल, कारोबारी आदि. अखाड़े में प्रवेश के समय साधु-संत को संन्यासी का पद दिया जाता है फिर महापुरुष, कोतवाल, थानापति इसके बाद आसंधारी, महंत, का पद समय के साथ दिया जाता है. इसके आगे महंत श्री, भंडारी, पदाधिकार सचिव का पद होता है. इसके बाद मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर का पद होता है. वहीं, हर अखाड़े का एक-एक आचार्य महामंडलेश्वर का भी पद निर्धारित किया जाता है जोकि अखाड़े का सर्वोच्च पद है. संत समाज में महामंडलेश्वर पद की बड़ महत्ता बताई गई है. ये अपने शिष्य भी बना पाते है. कुंभ के शाही स्नान में ये साधु रथ पर सवार होकर आते हैं और इनको VIP ट्रीटमेंट दिया जाचा है. 


जानिए, महामंडलेश्वर कौन बन सकता है?
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज के अनुसार महामंडलेश्वर पद के लिए खास डिग्री की जरूरत नहीं होती और न तो कोई सीनियॉरिटी होती है यानी सबसे पहली स्टेज वाला संन्यासी भी सीधे महामंडलेश्वर पद धारण कर सकता है. जरूरी है कि आर्थिक रूप से संत संपन्न हो और धर्म में रुचि हो. 


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