क्या 2024 का मौसम नीतीश ने भांप लिया, सियासी पूंजी दांव पर लगा क्यों BJP में लौटे, जानें 10 बड़ी वजहें
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क्या 2024 का मौसम नीतीश ने भांप लिया, सियासी पूंजी दांव पर लगा क्यों BJP में लौटे, जानें 10 बड़ी वजहें

Nitish Kumar: लोकसभा चुनाव 2024 का सियासी मूड बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शायद भांप लिया है. उन्हें मौजूदा राजनीति का सबसे बड़ा मौसम विज्ञानी भी कहा जाने लगा है.

 

Bihar CM Nitish Kumar PM Modi

Bihar Politics: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के सत्ता और संगठन बचाने को लेकर पलटी मारने पर भले ही सवाल उठ रहे हों, लेकिन इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि वो मौजूदा राजनीति के सबसे बड़े मौसम विज्ञानी हैं. 2024 का रुख भांपकर नीतीश ने अपनी पूरी राजनीतिक छवि, निष्ठा और जनाधार को दांव पर लगाते हुए एक बार फिर पलटी मारते हुए बीजेपी के साथ जाना तय कर लिया है. इससे पहले राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह और लोजपा के रामविलास पासवान को लेकर कहा जाता था कि वो सत्ता का रुख आसानी से भांप लेते हैं.

क्यों नीतीश फिर पलटे---

1. नीतीश कुमार भले ही 17 सालों से मुख्यमंत्री हों, लेकिन जेडीयू लगातार कमजोर हुई है. नीतीश सत्ता के साथ खुद के राजनीतिक अस्तित्व की आखिरी लड़ाई भी लड़ रहे हैं. अविश्वास के चलते ही उन्होंने पार्टी में कभी नंबर दो की हैसियत में किसी नेता को टिकने नहीं दिया. शायद यही वजह है कि विचारधारा, व्यक्तिगत अहम को किनारे रखकर वो लगातार सारे दांव आजमा रहे हैं. 

2.  72 साल के नीतीश कुमार को अपने किसी करीबी पर भरोसा नहीं है. बीजेपी या राजद के साथ गठबंधन हो-कम विधायकों के बावजूद सीएम पद पर रहने के दौरान नीतीश के मन में ये आशंका रहती है कि कहीं उनकी पार्टी में तोड़फोड़ कर उन्हें हाशिये पर धकेल न दिया जाए.

3. केंद्र में मोदी सरकार के पिछले दस सालों के शासन के बावजूद भी सत्ता विरोधी लहर का कहीं कोई अहसास नहीं है. राम मंदिर आंदोलन और मोदी की मजबूत नेता की छवि के आगे भी नीतीश नतमस्तक हैं. नीतीश अच्छी तरह जानते हैं कि बीमारू राज्यों में शामिल बिहार में विकास परियोजनाओं के लिए डबल इंजन सरकार की कितनी जरूरत है. 

4. नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन में घाटा ही घाटा महसूस हो रहा था. पहले तो इंडी अलायंस में उन्हें संयोजक पद न मिलने से अपमानित होना पड़ा. फिर बिहार में अगर राजद, जदयू, कांग्रेस औऱ वाम दलों का गठबंधन होता भी है तो 40 लोकसभा सीटों में 50 फीसदी सीटें मिलना उन्हें मुश्किल है. जबकि एनडीए के साथ लड़े पिछले चुनाव में जदयू ने 17 सीटें जीती थीं.

5. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा भी नीतीश कुमार को रास नहीं आई. उन्हें आभास हो गया है कि अगर लोकसभा चुनाव के नतीजों में विपक्ष की जीत की कोई संभावना बनती भी है तो कांग्रेस या अन्य दल उन्हें कभी प्रधानमंत्री के तौर प्रोजेक्ट नहीं करेंगे. संयोजक पद को लेकर हुई खींचतान से उन्हें स्पष्ट इशारा भी मिल गया है. 

6. लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान,  राष्ट्रीय लोक दल के अजित सिंह की तरह नीतीश कुमार भी बड़े मौसम विज्ञानी हैं. बंगाल में ममता बनर्जी, पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को हैसियत दिखा दी है. यूपी में भी अखिलेश यादव कांग्रेस को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं है. 48 सीटों वाले महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस ने विपक्षी दलों शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को धड़ों में बांट दिया है और बीजेपी -शिवसेना शिंदे गुट के लिए रास्ता साफ हो गया है. 

7. नीतीश को स्पष्ट मालूम है कि महादलितों का जो वोटबैंक जदयू के पास है, वो किसी भी दल को आसानी से ट्रांसफर हो जाता है. ऐसे में बीजेपी हो या विपक्षी गठबंधन-लंबे वक्त का सियासी नफा-नुकसान की परवाह न करते हुए उन्हें साथ लाने में नहीं चूकता. 

8. पीएम मोदी 4 फरवरी को बेतिया में रैली कर 6 हजार करोड़ की परियोजनाओं की सौगात बिहार को देने वाले हैं. बीजेपी और नीतीश चाहते थे कि उसके पहले ही राज्य का सियासी मौसम साफ हो जाए और कमल खिल जाए. 

9. उपेंद्र कुशवाहा, हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी, लोजपा के पशुपति पारस और दूसरे गुट के चिराग पासवान भी नीतीश कुमार से तमाम विरोधाभासों के बावजूद समेत छोटे घटक भी पीएम मोदी को लेकर नीतीश की अगुवाई पर भी सहमत हैं. ऐसे में नीतीश ने भी अब पीएम मोदी की बढ़ती स्वीकार्यता के आगे अब घुटने टेक दिए हैं. 

10. INDI गठबंधन के बैनर तले विपक्षी दलों को साथ लाने की सारी कवायद पर पानी फिरते देख नीतीश ने लोकसभा चुनाव के पहले गलती सुधारने में देर नहीं लगाई. 48 सीटों वाले आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू में भले ही टकराव हो, लेकिन वो दोनों एनडीए के पाले में दिख रहे हैं. ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजद का पीएम मोदी के प्रति झुकाव जगजाहिर है. यूपी में मोदी लहर कैसे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से कैसे अंदर ही अंदर सुनामी का रूप ले रही है, उसे भी वो नजरअंदाज नहीं कर पा रहे. मायावती का एकला चलो रे का रुख इस पर मुहर लगा रहा है. 

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