मायावती ने कर दी अखिलेश वाली गलती! दलित पार्टी बसपा ने ब्राह्मणों और मुस्लिमों को बांटे सबसे ज्यादा टिकट
Lok Sabha chunav 2024: बसपा ने अपने कोर वोटर दलितों के साथ मुस्लिम और दलितों को साधने की कोशिश की है. बसपा ने अब तक 56 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. उनमें से 10 ब्राह्मणों के अलावा 14 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के लिये यूपी में एनडीए बनाम इंडिया की लड़ाई के साथ बसपा प्रमुख मायावती की सोशल इंजीनियरिंग ने मुकाबले को रोचक बना दिया है. बसपा ने अपने कोर वोटर दलितों के साथ मुस्लिम और दलितों को साधने की कोशिश की है, जिसकी झलक बसपा की ओर से जारी प्रत्याशियों की सूची में देखने को मिल रही है. बसपा ने अब तक 56 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. उनमें से 10 ब्राह्मणों के अलावा 14 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है, कुछ ऐसे ही नारों के साथ 2007 विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मैदान में थी. वजह थी ब्राह्मणों को अपने साथ लेना, जिसका लाभ भी मायावती को मिला. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इस नारे पर जोर देते हुए मंडलवार ब्राह्मण सम्मेलन किए गए लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में भले ही इस नारे को बल नहीं दिया जा रहा लेकिन उम्मीदवारी तय करते समय ब्राह्मणों को अच्छी खासी जगह मिल रही है.
इन सीटों पर उतारे ब्राह्मण प्रत्याशी
बसपा ने अभी तक 64 उम्मीदवारों की घोषणा की है. जिसमें से 10 सीटों पर ब्राह्मणों को टिकट दिया गया है. अलीगढ़ से हितेंद्र उपाध्याय, फतेहपुर सीकरी से रामनिवास शर्मा, धौरहरा से श्याम किशोर अवस्थी, उन्नाव से अशोक पांडे, फर्रुखाबाद से क्रांति पांडे, अकबरपुर से राजेश कुमार द्विवेदी, बांदा से मयंक द्विवेदी, फैजाबाद से सच्चिदानंद पांडे, बस्ती से दयाशंकर मिश्र और मिर्जापुर से मनीष त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया है.
2007 में इसी समीकरण से मिली थी सत्ता
2007 में इसी समीकरण पर चलते हुए बहुजन समाज पार्टी अपने दम पर सत्ता में आई थी. उस समय सतीश चंद्र मिश्रा की अगुवाई में बृजेश पाठक, नकुल दुबे, विनय शंकर तिवारी, पवन पांडे, रामवीर उपाध्याय, राकेशधर त्रिपाठी, श्याम सुंदर शर्मा, रंगनाथ मिश्रा और अंटू मिश्रा जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया गया था.
2012 और 2017 में किनारा करने से नुकसान
लेकिन 2012 व 2017 के विधानसभा चुनाव में इस फार्मूले से किनारा करके बसपा मैदान में उतरी तो उसका अच्छा खासा नुकसान झेलना पड़ा. यही वजह है कि एक बार फिर से मायावती सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चलते हुए ब्राह्मणों को दिल खोलकर टिकट बांट रही हैं. ब्राह्मणों को मिल रहे टिकट से एनडीए गठबंधन व खास तौर पर भाजपा में खलबली मची हुई है क्योंकि बीजेपी ब्राह्मणों को अपना कोर वोट बैंक मानती है. ऐसे में बसपा के इस फार्मूले से भाजपा खेमे में चिंतन मंथन शुरू हो गया है.
दलित के साथ ब्राह्मणों वोटरों पर नजर
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में लगभग 14% ब्राह्मणों की आबादी है तो वहीं 23% दलित हैं. ऐसे में कुल मिलाकर देखा जाए तो यह 37 फीसदी बैठता है. बीएसपी 23 प्रतिशत दलित मतदाताओं को अपना कैडर वोट मानती है. ऐसे में प्रदेश में ब्राह्मणों की अच्छी खासी आबादी का कुछ प्रतिशत भी अगर बसपा को मिलता है तो चुनाव दिलचस्प हो सकता है.
मुस्लिमों पर भी भरोसा
बसपा प्रमुख मायावती ने मुस्लिमों को भी साथ लेने की कोशिश की है. पार्टी ने अब तक जो 55 टिकट दिए हैं, उनमें 14 मुस्लिम हैं. यानी सूबे में करीब 20 फीसदी आबादी वाले मुस्लिमों को अब तक बसपा 25.45 फीसदी टिकट दे चुकी है. वहीं, गठबंधन ने अब तक घोषित 72 सीटों में से सात मुस्लिम उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं.बसपा ने जिला कोऑर्डिनेटर और जिला अध्यक्ष से उम्मीदवारों के बारे में मिली रिपोर्ट के आधार पर टिकट बांटे हैं. अब यह देखने वाली बात होगी कि जाति आधार पर बैठाया गया समीकरण कितना फिट बैठता है.
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