जब अटल-सुषमा जैसे दिग्गजों ने बिना लड़े ही जीता मैदान, विपक्ष ने दिया वॉकओवर
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जब अटल-सुषमा जैसे दिग्गजों ने बिना लड़े ही जीता मैदान, विपक्ष ने दिया वॉकओवर

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर चुनाव आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा, अब महज दो हफ्तों से भी कम का समय बचा है. बड़ी राजनीतिक पार्टियों का तूफानी चुनाव प्रचार जारी है. भारत में कई चुनाव ऐसे रहे जिनमें कैंडीडेट निर्विरोध चुने गए थे. 

 

Lok sabha elections 2024

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव में बड़े और छोटे दल बड़े ही जोश के साथ मैदान में उतरते हैं. कई बार ऐसा होता है कि राजनीति में ऐसे नाम होते हैं जिनके सामने खड़ा होना अपनी हार सुनिश्चित करना होता है. बहुत से ऐसे मौके आते हैं जब उम्मीदवार खड़े होते हैं और आखिरी में अपने हाथ खींच लेते हैं. कई बार बड़े उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष उम्मीदवार नहीं उतार पाता है. अगर लोकसभा इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि पहले भी ऐसे अवसर आए जब विपक्ष ने सामने से हारने की जगह पीछे हटना जरूरी समझा. हम इस लेख में आपको बताते हैं कि पहले भी ऐसे चार मौकों पर विपक्ष की तरफ से बड़े कैंडीडेट को वॉकओवर दिए गए.

डिंपल चुनी गईं निर्विरोध 
यह बात 2012 लोकसभा उपचुनाव की है. 2012 में यूपी में सपा की सरकार बनी और अखिलेश यादव सूबे के मुख्यमंत्री बने. अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने की वजह से कन्नौज लोकसभा सीट खाली हो गई. अखिलेश ने अपनी पत्नी  डिंपल यादव को इस सीट के लिए कैंडीडेट बनाया. डिंपल के सामने भाजपा ने जगदेव सिंह यादव उतरे लेकिन वह तय समय पर नामांकन दाखिल ही नहीं करने पहुंचे.  कांग्रेस ने सहयोगी के तौर पर उम्मीदवार नहीं उतारा. यहां तक कि कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों ने नामांकन किया लेकिन सबने पर्चा वापिस ले लिया. और आखिर में रिटर्निंग ऑफिसर ने डिंपल को निर्विरोध सांसद घोषित कर दिया. 

अटल बिहारी के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार ने पर्चा वापस लिया
बात 2004 के लोकसभा चुनाव की है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से कैंडीडेट थे. अखिलेश प्रसाद को कांग्रेस ने उनके खिलाफ उम्मीदवार बनाया था. लेकिन चुनाव से पहले अखिलेश ने पर्चा वापस ले लिया था. फिर उसके बाद कांग्रेस ने  निर्दलीय राम जेठमलानी को समर्थन दिया. जेठमलानी इस चुनाव में अटल बिहारी के खिलाफ खूब जमकर बरसे थे,जब रिजल्ट आया तो वे तीसरे पायदान पर थे. अटल बिहारी ने समाजवादी पार्टी के मधु गुप्ता को करीब 2 लाख 20 हजार के बड़े अंतर से हराया था. ये चुनाव अटल बिहारी का आखिरी चुनाव था. वे इसके बाद कभी चुनाव नहीं लड़े.

राजीव गांधी के सामने नहीं उतरा कोई  उम्मीदवार 
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद  देश में 1984 में आम चुनाव कराए गए. राजीव गांधी उस समय प्रधानमंत्री थे, राजीव गांधी ने अमेठी सीट से अपना पर्चा भरा.  1981 में भी राजीव गांधी अमेठी सीट से जीते थे. इस चुनाव की रोचक बात है कि अमेठी सीट से विपक्ष ने किसी भी कैंडीडेट को उनके सामने नहीं उतारा. उस समय विपक्ष में लोक दल और भारतीय जनता पार्टी थी. आखिर में निर्दलीय चुनाव लड़ रही मेनका गांधी का मुकाबला अपने देवर राजीव गांधी से चुनावी मुकाबला हुआ जिसमें वो हार हई. मेनका गांधी अमेठी सीट से इसलिए मैदान में उतरी थीं क्योंकि इस पर उनके पति यानी संजय गांधी थे. मेनका के पति संजय गांधी 1980 में यहां से चुनाव जीते थे. 1981 में एक हादसे में उनकी मौत हो गई.

सुषमा के सामने उम्मीदवार नहीं उतार पाई  कांग्रेस
2009 लोकसभा चुनाव में विदिशा संसदीय सीट से बीजेपी ने तेजतर्रार सुषमा स्वराज को उम्मीदवार बनाकर चुनावी रण में उतारा. उस समय सुषमा  राज्यसभा की सांसद थी. विदिशा सीट तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह क्षेत्र होने की वजह से काफी सुर्खियों में थी. कांग्रेस ने  पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल को उतारने का फैसला किया. लेकिन नामांकन के दौरान उन्होंने  पार्टी का बी फॉर्म जमा ही नहीं कराया. बी-फॉर्म जमा नहीं कराने के कारण रिटर्निंग अधिकारी ने पटेल का नामांकन खारिज कर दिया. इस सीट से जीत के बाद सुषमा का कद पार्टी के भीतर बढ़ा और उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद दिया गया.

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